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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7535
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...


कावेरी हाथ छुड़ा कर चली गई। उसी पल मुझे अनेकों व्यंग्यात्मक हँसी की आवाजें सुनाईं दीं।
निर्मल की शान्त तीखी हँसी।
पौली-तीखी तलवार की धार जैसी।
प्रभा-भरे मोटे गले से जोर से।
माधवी-टूटे स्वर से।

कहना चाहती थी कैसा अब तो परास्त हुए। शक्ति का अहंकार, उम्र का घमण्ड, पैसे का नशा। उस हँसी की गूंज पूरे कमरे में झमझम कर फैलती गई और मुझ पर दोषारोपण करती रही। मेरे दिमाग में सब कुछ उलझ गया। उन हँसी की आवाजों को पकड़ने गया-पकड़ा दबा दिया-फिर बन्द...।
आप लोग क्या कहते हैं? मैंने दो हाथों से नर्स कावेरी का गला दबाया था। फिर साथ जमीन पर गिर पड़ा था। यानि बेहोश हो गया था।
श्मशान से आने वाली हँसी की आवाजों ने मुझे बेहोश कर डाला। तभी तो मैंने कावेरी नामक उस मीठी-सी लड़की का गला दबाया-फिर भी उन हंसी-आवाजों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। वह हँसी की झंकार तो मुझे गिरते देखकर ही बन्द हो गई।
अब आप लोगों ने मुझे हिरासत में रख दिया क्योंकि मैं जमानत पर रिहाई नहीं मांगता। जाऊंगा भी कहां यहां से छूट कर? उसी घर में? अगर वही हँसी मुझे आकर छेड़े तो? उससे तो यही जेल ही ठीक है जहां मुझको कोई नहीं जानता। लेकिन मेरा मामला इतने दिनों तक लटका क्यों पड़ा है? मेरा न्याय जल्दी क्यों नहीं हो रहा? विचार क्यों थोड़ा जल्दी नहीं किया जा सकता?

'इन्डियन क्रिश्चियन एसोसिएशन' की तरह से मेरे विरुद्ध एक काफी काबिल वकील खड़ा हुआ था। जो परिहास युक्त लहजे में कह रहा था-देखिये धर्मावतार यह आसामी कितने महान चरित्र का इंसान है-जो बाइस साल की उम्र में अपने गांव में ब्याह कर चुका था-और वही महान गुणवाला पति था जिसने अपनी किशोरी पत्नी को (जिसे बालिका कहना उचित होगा) असहाय नारी को गले में फांसी डालकर मरने पर मजबूर कर दिया।

फिर यह महाप्राण व्यक्ति तपस्वी बन बैठे। श्रीमान तपस्वी का जामा डाल कर कृच्छ साधना में लग गये। हालांकि यही इंसान अपनी पत्नी के जीवन काल में अपने महान चरित्र का आदर्श प्रतिमान स्थापित कर चुके थे। लोगों को दिखावा किया ब्रह्मचर्य का। और जीवन का कैसे कम से कम प्रयोजन से रहा जाता है इसका निदर्शन बन गये।
फिर महान या बड़े लोग जो करते हैं अपना भेष बदल लेते हैं। उन्होंने भी तपस्वी का मुखौटा उखाड़ डाला। फिर एक सुन्दर, व्यस्का, स्वास्थ्यवती स्त्री का पाणिग्रहण किया।
पर उनका बड़प्पन इतना प्रभावशाली था कि वह पत्नी भी गृहत्याग करने को विवश थी। वह महिला बुद्धि की मालकिन थीं तभी उन्होंने प्राणत्याग का रास्ता ना चुन कर गृहत्याग कर पलायन किया।
हमारे यह महानपुरुष-उन्होंने भी धनी होने की खातिर घर छोड़ा। देख ही, रहे हैं धनी बने भी हैं नीति, दुर्नीति सब विसर्जित कर चोरी के रास्ते से भाग्यदेवी को अपने कब्जे में कर ही लिया।
पर शैतान कभी स्वर्ग में जाकर भी शान्त रहता है? श्रीमान जे.एन.पाइन की तरह विख्यात धनी व्यवसायी की एकमात्र कन्या का साथ पाकर गौरवशाली हो गये, उनकी तृतिय पत्नी पौली बोस जो अब संसार में नहीं है गुणों की खान थीं।
इस श्रेष्ठतम व्यक्तित्व सम्पन्न इंसान ने उसकी भी हत्या कर दी-विद्युत का आघात देकर।

इसकी शैतानी की कोई सीमा नहीं उसने ऐसा जाल बुना कि सन्देह की गुंजाइस ही नहीं छोड़ी और होने से भी क्या? पैसे से सब सम्भव है। पैसा जिसके हाथ में है सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में है। पैसे से तो ईश्वर से झूठ कहलवाया जा सकता है-इंसान कहां की चीज है। मुझे देख रहे हैं-अगर आसामी पैसा दिखाकर मुझे अपना वकील बनाये तो मैं भी उल्टी दलीलें पेश करना शुरू कर दूंगा।
याद है-उस वक्त अदालत में सब हँसने लगे। फिर उन्होंने फिर से भाषण शुरू किया-पत्नी, यानि तृतीया की आकस्मिक दुर्घटना के बाद इसने क्या किया। विदेश प्रस्थान कर गये। मतलब वे भाग गये। अगर उनके ससुर पाइन साहब अपनी बेटी की अचानक मौत का बदला लेने की कोशिश करे-इस डर से कुछ समय समुद्र पार कर भागे। और काफी समय वहीं रह आये।

मैं भी उस वकील की कथा मोहित होकर सुन रहा था और सोच कर ताज्जुब कर रहा था कि इसने मेरे बारे में इतनी बातें कैसे जान लीं? और यह भी सोच रहा था मैं ही क्या शैतान, धन्धेबाज व्यक्ति हूं जैसा यह वकील बयान कर रहा है। मैं किसी भी दलील का खण्डन नहीं कर सकता। वकील बोलता चला जा रहा था। विलायत से वापिस लौट कर इस महापुरुष ने एक दूसरा ही रूप धरा। उन्होंने अपना प्रासादोत्तम घर छोड़ कर दमदम की तरह एक विश्रामकुंज की स्थापना की और सीधे-सादे जीवन का चरमोत्कर्ष दिखा दिया। और श्रीमान हँसियेगा मत। वहां इन्होंने एक बार और ब्याह रचाया। इस समय एकबार और अदालत में हँसी की लहर बह गई।
वकील धूआंधार बोलते रहे-गरीब घर की काली सीधी लड़की जो कभी भी अपना सिर ऊंचा ना कर पाये। मनोविज्ञान समझते हैं एक कहानी है-एक आदमी रोज रात को ब्याह रचाता और अगले दिन सुबह उसको मार डालता। इसी को जन्मजात खूनी कहते हैं।
हमारा आसामी भी इन खूनियों में एक है। पत्नी चुनने में उदासीनाता की वजह परिणाम तो जाना-बूझा ही है। उद्देश्य तो स्त्री सहवास ना था बल्कि स्त्री हत्या था-लेकिन यह अपराधी उस कहानी के नायक से और भी ज्यादा खतरनाक निकला। वह तो एक रात में ही स्त्री की हत्या करके सन्तोष कर लेता, पर कई बरस पत्नी संग भोग कर उस पत्नी को चुपचाप इस दुनिया से हटा देता। कोई भी प्रमाण कभी कोई ना पा सका। यानि इतना धूर्त कहीं कोई चिह्न बिना छोड़े हत्या करता।

गरीब लड़की अपने पति की गृहस्थी के लिए जी-जान से पति का मनोरंजन करने में लग गई, उस पर इस अपराधी को जरा भी दया नहीं आई, बिना वजह अचानक उसकी मौत विषय प्रयोग से सम्पत्र कर डाला।
मैं भी उसकी कथा सुनते-सुनते मोहाछन्न हो गया। मैं विमूढ़ हो सोचता रहा यह क्या अर्न्तयामी है जो मेरे बारे में सब जानता है, जितना मैं भी अपने बारे में नहीं जानता। वे मुझे स्वयं से अधिक जानते हैं।

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