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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7535
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...


सिर्फ एक भयभीत शिशुकंठ को आर्त्तनाद-फिर किसी चीज के गिरने की आवाज-''फिर सब शान्त। उसे खींच कर खड़ा कर दिया गया था पर उसके घुटने कमजोर थे सो वह गिर पड़ी। बेचारी का शरीर ज्वर से तप रहा था। ऐसी हालत में उसे खड़ा करना...।
अगले दिन मैं बेबी को सुरक्षित जगह पर रख आया जहां से कोई उसे खींच कर उठा नहीं सकता, कोई उसे उत्पीड़ित नहीं करेगा और ना ही बोर्डिंग स्कूल भेजने की कोशिश करेगा।
''उसके कुछ दिनों के बाद पाइन साहब की प्यारी बेटी पौली भी मर गई। हां, एक दुर्घटना से, आकस्मिक इलेक्ट्रिक तार से...।''
पेपर में जिसका शीर्षक था-'तहिताहत'। यह तो सिर्फ एक घटना थी, दुर्घटना थी जो अखबार के विशिष्ट परिच्छेद पर प्रकाशित होनी जरूरी थी। प्रख्यात धनी श्री जे.एन.पाइन की एकमात्र कन्या, विख्यात धनी श्री अतनू बोस की पत्नी श्रीमती पौली की अकस्मात् 'तहिताहत' द्वारा मृत्यु-यह एक विशिष्ट समाचार नहीं था?

ना जाने कैसे एक साधारण बड़े स्विच के तार से वह विपदा घटी। उसका विशद विवरण भी अखबार में दिया गया था।
मैं शौक से इस प्रकार विह्वल था कि जिसने भी मुझसे प्रश्न किया मैं उचित जबाव ना दे पाया, उन्होंने नौकरों से ही सब सुना। वे यानि अखबार वाले पुलिस के लोग।
आपके धर्माधिकारण के अनुचर-वे आये कहीं कोई अधर्म घटा या नहीं यह देखना भी तो उनके कर्त्तव्य में शामिल है। वे आये, जिरह किया फिर स्वाभावि़क घटना बता कर रिपोर्ट भी पेश की।

पौली बोस के संग विवाहित जीवन की यही यवनिका खींची गई। यह छह बरसों का काल था। सबसे लम्बा पाइन साहेब-वे कुछ दिनों के लिए किसी जरूरी काम से लिवरपुल गये थे। उनके पास जब समाचार पहुंचा तब वे लौटे। उनका स्थायी पता मालूम न था तभी ट्रंककॉल ना किया जा सका।
जब वे लौटे तो तब क्या छानबीन करते? टूटा हो। पाइन साहब की एकमात्र कन्या की मृत्यु अतनू बोस की भी तो-साथ में पत्नी थी। मुझे कौन इस बात पर धमकी देगा कि इलेक्ट्रिक लाइन में गड़बड़ थी तो देखा क्यों नहीं?
पाइन साहब भी दामाद को मन में शान्ति लाने का उपदेश देकर चले गये।

अतनू बोस का महल पौली बोस के बड़े-बड़े चित्रों से भर गया। दीवार, टेबिल, सेल्फ, अल्मारी सभी उच्च स्थलों पर उसकी तस्वीरें लगा दीं गईं। उसमें सारी अदायें कैद थीं।
निर्मला बोस की तरह तो उसको फोटो का अकाल ना था। असंख्य तस्वीरें-लेटी, बैठी हुई, खड़ी हुई, आधी लेटी, आधी बैठी खड़ी कितनी ही मुद्राओं में तस्वीरें थीं।
यह सब अतनू बोस को चारों ओर से घेरे हुए थी। दिन-रात वह अकेले कमरे में इन्हीं के साथ रहता। समझ ही रहे हैं कि अतनू बोस कितने मजबूत दिल वाले थे। हां, जी हां, उनका कलेजा पत्थर का था, नहीं तो पौली बोस का परिच्छेद खत्म कर कोई योरोप भ्रमण के लिए निकल सकता है?
तब लोगों के पास पैसा होता तो घूमने में कुछ भी परेशानी ना थी। आजकल की तरह इतने कायदे-कानून नहीं बने थे।
अतनू बोस भी गये। पासपोर्ट मिलने में देरी नहीं हुई। डेढ़ बरसों तक योरोप के मशहूर स्थलों पर घूमा।

पौली बोस की अदम्य वासना थी 'कैन्टीमेंट' टूर करने की पर वह ना जा पाई। उसकी तस्वीरें भी कलकत्ते में ही पड़ी रह गईं।
सिर्फ बेबी बोस एक छोटी छवि बन कर सर्वत्र घूमी। आकाश में उड़ी, पाताल में भी गई, पानी में विचरी, पहाड़ पर भी चढ़ी।
डेढ़ बरस बाद अतनू बोस तरोताजा होकर वापिस लौटा। मैं ही तो अतनू बोस हूं। मैं ही तो बोलता जा रहा हूं आप लोग टेप कर रहे हैं। मैंने ही यह सब किया था। धर्मावतार के दरबार में इन सबका न्याय होगा।

दूसरी तरफ का वकील कहेगा, देखिये धर्मावतार यह इंसान कितने गर्हित किस्म का है। इसका चरित्र कितना भयंकर है जिसने एक के बाद एक पत्नियों को...।
वाह इतनी सारी बीवियां सुनकर परेशान हो रहे है। पहले ही तो कहा था मैं आप लोगों को पांच पत्नियों के बारे में बताऊंगा फिर जूरी विचार करेगी मैं किस कदर पत्थर दिल हूं।

भ्रमणोपरान्त मैंने उन विशाल घरों से अपना डेरा शहरतली की तरफ नये छोटे फ्लैट में जमाया। छोटा-सा घर जैसे तस्वीरों को देखते हैं, सामने बगीचा, आस-पास पड़ौसी भी नहीं थे।
ना ही पुराने नौकर थे ना ही पुराना असबाब। नये जीवन की साधना में लग गया।
यहां आकर मैंने तय किया। एक बार और अग्निपरीक्षा में कूदा जाय। पुराने ख्याल त्याग कर नये ख्याल...।
इसी इरादे से एक 'बारासात' की लड़की से शादी की जो लड़की नहीं महिला ही कह सकते हैं। पर जिस घर से उसे लाया वहां महिला शब्द का प्रयोग होता है या नहीं पता नहीं।
उस लड़की ने कुछ पढ़ाई-लिखाई की थी। शायद खुद रोजगार करने की तागीद ने उसे पढ़ने पर मजबूर किया था। उनके घर में दुर्भिक्ष का जोर था।

उम्र शायद तीस से चालीस के भीतर। एक तरह का चेहरा होता है जिससे उम्र का पता नहीं लगता। बाईस भी हो सकता है, बयालीस भी। जो भी हो मेरा इससे क्या लेना-देना।
मेरे बड़ा बाजार के दफ्तर को छोकरा था उसकी ममेरी बहन थी। वह छोकरा एक दिन अपनी बहन के संघर्ष की कथा सुना रहा था। फ्री में स्कूल में पढ़ कर मैट्रिक पास कर प्राइवेट पढ़ कर उसने बारहवीं भी' पास कर डाला। साथ में एक फोटो भी था पात्र पक्ष को दिखाने के लिए नाम था माधवी घोष। मैंने परिहास कर कहा-''देखूं कैसी लड़की है-तुम्हारी ममेरी बहन...।''
उस छोकरे ने कृतार्थ हो फोटो दे दिया। कहा दीदी यानि थोड़ी बड़ी, बड़ी गरीब है। सोचा होगा शायद गरीब का कन्यादान बनाकर कुछ पैसे ऐंठ लेगा। पैसे के ऐंठने का ही उसने सोचा था...।
मैंने देख कर ही उसे लौटा दिया और कहा-''बिल्कुल ही बदसूरत-पर चौथे पति का इतना ना-नुक्स निकालना शोभा नहीं पाता-चाहे उसके बैंक में पैसा रहे या कलकत्ते में पांच-पांच घर हों तो भी...।''
वह छोकरा मेरी ओर आंखें फाड़ कर देखता रह गया-''क्या कह रहे हैं सर?''
''क्या कह रहा हूं मगज में आता नहीं-तुम सब पूरे-के-पूरे कोरे हो-क्या कुछ भी समझते नहीं-तुम लोगों को बात समझाने के लिए कुदाली से खोद-खोद कर बात को दिमाग में डालना पड़ेगा।''
तब भी वह लड़का अजीब-सी निगाह से पूछता रहा-''सर क्या कह रहे हैं? सच, मैं समझ नहीं पा रहा।''

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