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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7535
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...


आप लोग शायद यह सोच रहे होंगे कि उसी दिन से पौली से मेरा सम्बन्ध विच्छेद हो गया-नहीं, जी नहीं। यह तो काचनगर का बेपरवाह छोकरा अतीन बोस न था जिसके पास यानी कौड़ी भी नहीं थी। जो एक कपड़े में गृहत्याग कर सकता था या पत्नी से सम्बन्ध-विच्छेद कर सकता।
यह तो अतनू बोस अमीरी का विशेषण जिसके साथ है। जिसका व्यवसाय अपनी पत्नी के पिता के साथ साझेदारी का था।
उस रात को स्मरजित कहां गया या गया कि नहीं मुझे नहीं मालूम पर बीच रात में जब बेबी आया-आया करके रो रही थी-तब पौली खट कर आकर बेटी को खींच कर ले गई।
तभी सुना चुप-चुप एक बार भी गले से आवाज निकाला तो खून कर डालूंगी। देखा था आया को कैसे मारा था?
आश्चर्य मेरे जीजान की कोशिश से जो नहीं हो पाया वह उस धमकी से सम्भव हो पाया-बेबी शान्त! शायद खुशामद के रास्ते सारी चीखों को बन्द करने का तरीका ही गलत है।

अगले दिन मि. पाइन अचानक आये। यह कोई नई बात नहीं थी वे अक्सर अपने बेटी-दामाद के घर में दो-चार मिनट के लिए आते थे।
उस दिन काफी देर तक रहे। पहले मुझे ही बुलाया और कहने लगे-पौली रात-दिन कुछ आवारा छोकरों के साथ घूमती है। उसकी मौसी बता रहीं थीं जो उसके साथ गाड़ी में घूमते हैं वे बिल्कुल सड़क छाप लड़के हैं। यह हो कैसे रहा है?'' मैंने भी हाथ उलट कर कहा कैसे जानूंगा बताइये।
कैसे जानूंगा मतलब! पाइन साहब दबे स्वर से धमकी देते हुए बोले-''तुम्हारा क्या पत्नी के प्रति कोई दायित्व ही नहीं है?''
''होने से क्या होगा। पौली क्या वैसी लड़की है कहने से ही सुन लेगी?''

''रुको यह कोई बात ना हुई। जैसे भी हो इसे समझाना ही पड़ेगा। मैं तो सोचता था तुम अपने दो बार वाले अनुभव को काम में लगाओगे। पौली बार में जाकर शराब पीती है, तुम्हारे साथ किसी पार्टी में नहीं जाती, उन मतलबी आवारा छोकरों के साथ घूमती है। यह सब ठीक नहीं हो रहा है।''
मैं इसका जबाव देने ही वाला था कि पौली दौड़कर अपने बाप के ऊपर आकर गला पकड़ कर झूलती हुई कहने लगी-''बापी तुम बड़े शौतान होते जा रहे हो। इस घर में आकर मेरे साथ पहले बात ना कर उस बाहरी बेकार के आदमी के साथ बातें कर रहे हो।''
पौली के गले से बनावटी नखरे वाला शहद निकल रहा था।

उनका असर पाइन साहब के गले में भी पड़ा। पाइन साहब का कुछ समय पूर्व वाला निरक्ति पूर्ण गाम्भार्य कहां चला गया-उसकी जगह ले ली पितृस्नेह वाले चेहरे ने जिससे प्यार, आनन्द और बढ़ावे का झरना बह रहा था।
''क्यों नहीं बोलूं तुम कहां रहती हो पता नहीं?''
बापी-तुम मुझे तुम कहकर बुला रहे हो। तुम मुझ पर खफा हो? जल्दी से तू कहो नहीं तो अभी रो पड़ूंगी।''
पाइन साहब ने हँस कर उसके सिर को सहलाकर कहा-तू-तू। मैं लेकिन खफा हूं। तुम आजकल कुछ फालतू लड़कों के साथ मिलती हो-''सभा, समिति करती हो।''
-बापी बुरे नहीं-''वे तो बड़े ही अच्छे लड़के हैं। वे सब भारी नरम, दयालु जहां भी दुःख-तकलीफ है उसी ओर अपनी दया-दृष्टि ले जाते हैं। पहले मैं क्या जानती थी इस पृथ्वी पर इतना दारिद्रय है। इतनी दुःख-तकलीफ भी हो सकती है? अब हम लोग मेदिनीपुर के पीड़ितों के लिए एक गीतिनाट्य करने वाले हैं।''

दुखियों के लिए गीतिनाट्य।

पाइन साहब ने अपने नेत्र विस्फारित कर लिए-गीतिनाट्य माने?
आह कितनी मुश्किल है-डान्स-ड्रामा नहीं जानते?''
ओह डान्स-ड्रामा-नाच-नाटक-उन दुखियों को क्या उनका दुःख नाच-गाने दिखाकर भुलाना चाहती है?

''बापी-ओ बापी। तुम कितने अच्छे पर चालू हो।''
उस तेज-तर्रार व्यक्तित्व सम्पन्न रोबदाब वाले पाइन साहब का गला पकड़ कर झूलते-झूलते वह बोली-हम एक चैरिटी शो करेंगे। सरकार से ऐंमूजमेंट टैक्स पास करा लेंगे। जितना खर्चा लगेगा वह रखके हम बाकी वहीं भेज देंगे। दो-तीन बार तो किया। तुम्हें क्या कुछ भी देखने का या सुनने का समय नहीं रहता है। एक बार दिल्ली चले गये, एक बार बम्बई से आने को कहकर भी नहीं आये, अब तुम्हें रहना भी पड़ेगा और ज्यादा पैसा भी देना होगा।''
पाइन साहब ने कंठलग्ना बेटी को हटा कर थोड़ी अवज्ञा के लहजे में यही कहा-जा जा यह सब क्या भले घर के लोगों का काम है? इसे कहते हैं-
तुझे यह सब कौन सिखा रहा है?
बापी तुम कितने निष्ठुर हो। इनको कितना कष्ट है?

बापी सयंमित स्वर से बोले-जानता हूं और यह भी पता है तुम्हारे नाच-नाटक से कुछ भी नहीं होगा। वे जिस कष्ट में हैं उसी में ही रहेंगे। मैं व्यवसायी हूं भाग्य पर विश्वास करता हूं। जिसके भाग्य में साड़ी, गहना, गाड़ी-कोठी भोग करना है तो वे इन सबका भोग करेगा। जिनके भाग्य में दुःख सहना लिखा है वे दुःख सहेंगे भी। तुम बेकार में बुद्धू लोफरों के साथ क्यों घूम कर अपना समय बर्बाद करोगी। इन आवारा छोकरों के पास ना काम है, ना माल तभी इस बहाने कुछ पैसा आमदनी कर लेते हैं। समझी। उसका साथ छोड़ो और बाहर घूमना भी बन्द करो।
पौली की आंखों से अग्निशिखा दहकने लगी। पौली फोंस कर उठी-''बाहर घूमना बन्द करके और क्या करूं? घर में ही कौन-सा सुख है?''
क्या आश्चर्य की बात है? घर में ही तो सुख है। तू अपने लिए ही सुख है, सुन्दर-सी बेबी है तेरी। जब तू छोटी-सी बेबी थी तब तेरी मां चली गई, तू ही मेरा सुख थी। ''वह तो है-पर तुम्हारा बिजनेस वही तो असल सुख था। मेरे पास है?''
पाइन साहब ने प्यार से एक हल्का चांटा रसीद कर बेटी को प्यार से कहा-''तेरे पास पति है।''

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