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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


आप जरा खयाल करना कि अपनी पत्नी के सामने आप दूसरे आदमी होते हैं अपने बेटे के सामने तीसरे, अपने बाप के सामने चौथे, अपने नौकर के सामने पांचवें, अपने मालिक के सामने छठवें। दिनभर आप अलग-अलग आदमी होते हैं। सामने का आदमी बदला कि आपको बदलना पड़ता है। नौकर के सामने आप शानदार आदमी हो जाते हैं। और मालिक के सामने-वह जो हालत आपके नौकर की आपके सामने होती है, वही-मालिक के सामने आप की हो जाती है!

आप कुछ हों या नहीं पर हर दर्पण आपको बनाता है! जो सामने आ जाता है, वही आपको बना देता है! बहुत अजीब बात है। हम हैं?

हम हैं ही नहीं। हम एक अभिनय हैं एक ऐक्टिंग हैं। से शाम तक अभिनय चल रहा है। सुबह कुछ है, दोपहर कुछ है, शाम कुछ। हमारे खीसे में पैसे हों, तो हम वही आदमी नहीं रह जाते हैं बिल्कुल दूसरे आदमी हो जाते हैं। जब पैसे नहीं होते हैं खीसे में, तब बिछल दूसरे आदमी हो जाते हैं।
किसी मिनिस्टर को देखें, जब वह पद पर हो-और फिर जब वह मिनिस्टर
न रह जाए तब उसको देखें। जैसे कि कपड़े की क्रीज निकल गयी हो, ऐसा वह हो जाता है। सब खत्म। आदमी गया। आदमी था ही नहीं जैसे।
मैंने सुना है, जापान के एक गाव में एक सुंदर युवा फकीर रहता था। सारा गांव उसे श्रद्धा और आदर देता था।
लेकिन एक दिन सारी बात बदल गयी। गांव में अफवाह उड़ी कि उस फकीर से किसी लड़की को एक बच्चा पैदा हो गया है। उस स्त्री ने अपने बाप को कह दिया है कि उसी फकीर का बच्चा है, जो गांव के बाहर रहता है। वही फकीर इसका बाप है।
सारा गांव टूट पड़ा उस फकीर पर। जाकर उसकी झोपड़ी में आग लगा दी। सुबह सर्दी के दिन थे, वह बाहर बैठा था। उसने पूछा कि ''मित्रो, यह क्या कर रहे हो? क्या बात है?''
तो उन्होंने उस नवजात बच्चे को उसकी गोद में पटक दिया और कहा, हमसे पूछते हो, क्या बात है? यह बच्चा तुम्हारा है।''
उस फकीर ने कहा, ''इज इट सो? क्या ऐसी बात है? अगर तुम कहते हो, ठीक ही कहते होओगे। क्योंकि भीड़ तो कुछ गलत कहती ही नहीं, भीड़ तो हमेशा सत्य ही कहती है। अब तुम कहते हो, तो ठीक ही कहते होओगे।''
वह बच्चा रोने लगा तो वह फकीर उसें थपथपाने लगा। गांव भर के लोग उसे गालियां देकर वापस लौट आए और उस बच्चे को उसके पास छोड़ आए।

फिर दोपहर को जब फकीर भीख मांगने निकला, तो उस बच्चे को लेकर भीख मांगने निकला गांव में। कौन उसे भीख देगा? आप भीख देते? कोई उसे भीख नहीं देगा। जिस दरवाजे पर वह गया, दरवाजे बंद हो गए। उस रोते हुए छोटे बच्चे को लेकर उस फकीर का उस गांव से गुजरना...। बड़ी अजीब सी हालत हो गयी उसकी। लोगों की भीड़ उसके पीछे चलने लगी, उसे गालिया देती हुई।

फिर वह उस दरवाजे के सामने पहुंचा, जिसकी बेटी को यह बच्चा हुआ था। और उसने उस दरवाजे के सामने आवाज लगायी कि कसूर मेरा होगा इसका बाप होने में, लेकिन इसका मेरा बेटा होने में क्या कसूर हो सकता हें। बाप होने में मेरी गलती होगी, लेकिन बेटा होने में इसकी तो कोई गलती नहीं हो सकती। कम से कम इसे तो दूध मिल जाए।
उस बच्चे को जन्म देनेवाली लड़की द्वार पर खड़ी थी। उसके प्राण कैप गए फकीर को भीड़ से घिरा हुआ, पत्थर खाते हुए देखकर छिपाना मुश्किल हो गया। उसने बाप के पैर पकड़ लिए कहा, ''क्षमा करें, इस फकीर को तो मैं पहचानती भी नहीं। सिर्फ इसके असली बाप को बचाने के लिए मैंने इस फकीर का झूठा नाम ले लिया था!'' बाप आकर फकीर के पैरों पर गिर पड़ा और बच्चे को फकीर से छीन लिया। और फकीर से क्षमा मांगने लगा।
फकीर ने पूछा, ''लेकिन बात क्या है? बच्चे को क्यों छीन लिया तुमने? उसके बाप ने कहा लड़की के बाप ने, ''आप कैसे नासमझ है। आपने ही क्यों न बताया कि यह बच्चा आपका नहीं है?'' उस फकीर ने कहा, ''इज इट सो, क्या ऐसा है? मेरा बेटा नहीं है? तुम्हीं तो सुबह कहते थे कि तुम्हारा है, और भीड़ तो कभी झूठ बोलती नहीं है। अगर तुम बोलते हो नहीं है मेरा, तो नहीं होगा।''

लोग कहने लगे कि ''तुम कैसे पागल हो! तुमने सुबह कहा क्यों नही कि बच्चा तुम्हारा नहीं है। तुम इतनी निंदा और अपमान झेलने को राजी क्यों हुए?''

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga