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संभोग से समाधि की ओर...
जब कोई आदमी एल एस डी की एक टिकिया लेता है तो कई घंटों के लिए उसकी सारी
दुनिया बदल जाती है। जैसे 'ब्लेक' की कविता हम पढ़ें तो ऐसा लगता है कि ब्लेक
कुछ ऐसे रंग जानता है, जो हम नहीं जानते। उसे फूल कुछ ऐसा दिखायो देता पड़ता
है, जैसा हमें दिखाई नहीं पड़ता।
लेकिन एल एस डी लेकर हम भी वही जान पाते हैं। पत्ते-पत्ते रंगीन हो जाते है,
फूल-फूल अद्भुत हो जाता है। एक आदमी की आंख में इतनी गहराई दिखाई पड़ने लगती
है, जितनी कभी नहीं दिखाई पड़ी। एक साधारण-सी कुर्सी भी एक जीवत अर्थ ले लेती
है। थोड़ी देर के लिए जगत और ढंग का दिखाई पड़ने लगता है। जैसे कि बिजली चमक
जाए अंधेरी रात में, और एक सेकेंड को वृक्ष दिखाई पड़े, फूल दिखाई पड़े, रास्ता
दिखाई पड़े। बिजली तो गयी तो फिर अँधेरा भर गया, लेकिन अब हम वहां आदमी नहीं
हो सकते, जो बिजली के पहले थे।
इन साइकेडेलिक ड्रग्स का, इन रासायनिक तत्वों का हिप्पा बड़े पैमाने पर प्रयोग
कर रहे हैं। मेरी समझ में सोमरस इससे भिन्न बात न थी। अल्डुअस हक्सले ने तो
एक किताब लिखी है। तो उसमें सन् 2000 वर्ष के बाद जो विकसित साड्केडेलिक ड्रग
रासायनिक द्रव्य होगा उसका नाम ही सोमा दिया है, सोमरस के आधार पर ही।
और एल एस डी और मेस्केलीन जिन्होंने लिया है तो पहली दफा उनके खयाल आया कि
वैदिक ऋषियों को देवी-देवता एकदम जमीन पर चलते-चलते नजर क्यों आते थे। वे
हमको भी आ सकते हैं। भांग में कुछ थोड़ी-सी बात है, बहुत ज्यादा नहीं, बहुत
थोड़ी। लेकिन भांग के पीछे थोड़ा-सा 'हैंग ओवर' होता है। एल एस डी का कोई 'हैंग
ओवर' नहीं है। गांजे में कुछ थोड़ी बात है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। हजारों
साल से साधु भाग गांजा, अफीम का उपयोग करते रहे है। वह अकारण नहीं है। और इधर
जितनी खोज होती है, उससे कुछ हैरानी के तथ्य सामने आते हैं।
अगर एक आदमी बहुत देर तक उपवास करे तो भी शरीर में जो फर्क होते है, वे
केमिकल हैं। अब ऊपर से देखने मे लगता है कि महावीर तो गांजे के बिल्कुल खिलाफ
हैं। लेकिन उपवास के बहुत पक्ष में हैं। हालांकि उपवास से भी 3० दिन भूखा
रहने से शरीर में जो फर्क होंगे, वे केमिकल हैं। कोई फर्क नहीं है।
प्राणायाम से भी जो फर्क होते हैं, वे केमिकल हैं। अगर एक आदमी विशेष विधि से
श्वास लेता है तो आक्सीजन की मात्रा के अंतर पड़ने शुरू हो जाते है। ज्यादा
आक्सीजन कुछ तत्वों को जला देती है, कुछ तत्त्वों को बचा लेती है। भीतर जौ
फर्क होते हैं वै केमिकल हैं।
हिप्पी यह कह रहा है कि अब तक की जितनी साधना पद्धतियां है, वे किसी न किसी
रूप में केमिकल फर्क ही ला रही हैं। तो कैमिकल फर्क एक गोली से भी लाया जा
सकता है।
चौथा जो हिप्पी का जोर है, जिसकी वजह से वह परेशानी में पड़ा हुआ है, वह इन
ड्रग्स के कारण है। कानून इनके खिलाफ है। कानून उन्होंने बनाया था, जिनको एल
एस डी का कुछ भी पता नहीं था।
डा० लियरी एक अद्भुत आदमी हैं इस दिशा में, जिस आदमी ने इधर बहुत काम किया कि
ड्रग्स कैसे मनुष्य को समाधि तक पहुंचा सकते हैं।
और जिन लोगो ने एक बार इस तरह का प्रयोग किया है, वे आदमी और ही तरह के हो
गए, उनकी जिंदगी और ही तरह की हो जाती है। जैसे हम जीते हैं एक तनाव में,
जैसे ही कोई इस तरह के ड्रग्स लेता है तो सारा मन रिलेफ्ल, विश्रामपूर्ण हो
जाता है। जीते हैं फिर आप-तनाव मे नहीं, अभी और यही। हिप्पीज का जो शब्द है
उसके लिए वह है, 'टर्निंग आन'-कोई एक टर्न है, मोड़ है, दरवाजा है, जो एक गोली
देने से आपके लिए खुल जाता है। जैसे 'ड्रापिंग आफ', रास्ते के किनारे उतर
जाना; ऐसे ही 'टर्निंग आन' जहां हम हैं वहां से कहीं और मुड़ जाना-उस दुनिया
में, उस आयाम, डायमेंशन में जिसका हमें कोई पता नहीं है। रासायनिक प्रयोग के
द्वारा मनुष्य की चेतना विस्तीर्ण हो सकती है और सौंदर्यबोध, एस्थेटिक से भर
सकती है।
इस दिशा में डा० लियरी बड़े गहरे प्रयोग कर रहे है। छोटी-छोटी उनकी जमातें बनी
हुई है-जंगलों में. पहाड़ो मेँ, गांवों के बाहर। पुलिस उनका पीछा कर रही है।
उन्हें उखाड़ रही है।
केवल अमेरिका में दो लाख हिप्पी हैं। और यह तो ठीक गणना की संख्या है। लेकिन
बहुत-से लोग जो पीरियाडिकल, सावधिक हिप्पी हो जाते हैं-कोई दो चार महीने के
लिए फिर वापिस दुनिया में लौट आते हैं उनकी संख्या भी बड़ी है। बहुत से
सेंटर्स है, जहां बैठकर इन सबका प्रयोग चल रहा है। जहां बिल्कुल ही ठीक
सायंटीफिक निरीक्षण में लोग एल एस डी और ये सारो चीजें ले रहे है।
एल्डुअस हक्सले ने एक किताब लिखी है, 'डोर्स ऑफ परसेपांस'। उस किताब में उसने
कहा है कि कबीर और नानक को जो हुआ, मैं अब जानता हूं कि क्या हुआ। एल एस डी
लेने के बाद हक्सले को लगता है कि क्या हुआ! क्योंकि जिस तरह की बातें वे कह
रहे हैं कि अनहद नाद बज रहा है और अमृत की वर्षा हो रही है और आकाश में बादल
ही बादल घिरे है और अमृत ही अमृत बरस रहा है और कबीर नाच रहे हैं। अब यह जो
हम कविता में पढ़कर समझने की कोशिश करते हैं लेकिन न तो कभी कोई बादल दिखाई
पड़ते हैं, जिनमें अमृत भरा हो। न कभी अमृत बरसता दिखाई पड़ता है, न कोई अनहद
नाद सुनाई पड़ता है।
लेकिन एल एस डी लेने पर ऐसी ध्वनियां सुनाई पड़नी शुरू होती हैं, जो कभी नहीं
सुनी गयी। और ऐसी बरखा शुरू हो जाती है, जो कभी नहीं हुई। और इतना मन हल्का
और नया हो जाता है, जैसा कभी न था।
चौथी बात, हिप्पीज को जो नवीनतम वह है, 'एक्सपांशन आफ कांशसनेस थ्रू ड्रग्स',
रासायनिक द्रव्यों द्वारा चेतना का विस्तार। ये चार सूत्र में मौलिक मानता
हूं।
मेरी क्या प्रतिक्रिया है, वह मैं संक्षेप में कहूं।
हिप्पियों ने छोटी-छोटी कम्यून बना रखी हैं। वे कम्यून वैकल्पिक समाज,
आल्टरनेट सोसायटी हैं। वे कहते हैं एक समाज तुम्हारा है 'हां-हुजूरों' का,
वियतनाम में लड़ने वालों का, कश्मीर किसका है यह दावा करने वालों का। और एक
हमारा है, जिनका कोई दावा नहीं है। जिनका वियतनाम में किसी से कोई संघर्ष
नहीं कश्मीर में जिनका कोई झगड़ा नहीं राजधानियो में जाने की जिनकी कोई इच्छा
नहीं।
एक समाज तुम्हारा है, जिसमें तुम कहते हो कि भविष्य मे सब कुछ होगा। एक हमारा
है जो कहते हैं अभी और यही, जो होना है वह हो। एक आल्टरनेट सोसायटी, एक
वैकल्पिक समाज है हिप्पियों का। तो इस समाज से जो ऊब गए घबड़ा गए परेशान हो गए
वे उस समाज में प्रवेश कर जाते हैं।
हिप्पी अभी और यहीं-सदा आनंद में है। जो कहता है इसी वक्त आनंद में हूं और कल
की चिंता नहीं करता।
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