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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


हमारे ही देश में क्रांति हुई और 1947 के बाद हमने सोचा, आजादी आ जाएगी। फिर 1947 के बाद भी हम सोच ही रहे हैं कि 22 साल हो गए अभी तक आई नही? कब आएगी? हां, फर्क हो गया है। सफेद चमड़ी के मालिक बदल गए उनकी जगह काली चमड़ी के लोग बैठ गए। काली चमड़ी वालों को भी लगा कि सफेद चमड़ी होनी चाहिए। चमड़ी तो सफेद करना बहुत मुश्किल थी, कपड़े उसने सफेद कर लिए। बस इतना फर्क हो गया। अंग्रेजों ने जितनी गोलियां नहीं चलायी इस देश में, इन्हें जिनको हम अपने ही आदमी कहें, उन्होंने चलायी। कभी अगर इतिहास पूछेगा तो वह पूछ सकेगा कि गुलाम कौम पर इतनी गोलियां नही चलानी पड़ी, आजाद होने के बाद इतनी गोलियां अपने ही लोगों पर चलानी पड़ीं, यह बात क्या है? हो क्या गया है!

कोई क्रांति सफल नही हो पाई, न होने का कारण है। एक तो यह कि क्रांति के उपकरण बड़े गैर-क्रांतिकारी होते हैं बड़े दकियानूसी होते हैं। दूसरा यह कि क्रांति वस्तुतः प्रतिक्रियात्मक, रिएक्शनरी होती है। उनके प्राण उसी में होते हैं जिससे कि वह लड़ती है। फिर इसलिए शत्रु के मरते ही उसके होने का भी कोई कारण नहीं रह जाता है। क्रांति की सफलता ही मृत्यु बन जाती है।
हिप्पी का खयाल यह है कि क्रांति इसलिए भी सफल नहीं होती कि क्रांति पुनः समाज को ही केंद्र मानकर चलती है। वह कहती है, समाज बदले?
विद्रोह व्यक्ति को केंद्र मानता है, क्रांति समाज को केंद्र मानती है। क्रांति कहती है, समाज बदले।
हिप्पी कहता है भाड़ में जाए तुम्हारा पूरा समाज, मैं बदलता हूं। मैं तुम्हारे
समाज के लिए नहीं रुकूंगा। मैं अकेला बदल जाता हूं। इसलिए हिप्पी व्यक्तिगत विद्रोही है।
और मेरी समझ में यह बात भी बड़ी कीमती है, क्योंकि सब क्रातियां सफल हो गयी फिर भी हम नयी क्रांतियों की बात सोचते चले जाते हैं। असल में क्रांति करने में जो इंतजाम करना पड़ता है, वह क्रांति की ही हत्या कर देता है।
पहले तो क्रांति करने के लिए संगठन बनाना पड़ता है और जैसे ही संगठन बनता है तो संगठन के अपने नियम है। वह संगठन किसी का भी हो-जब संगठन बनता है और कोई विचार इंस्टीट्यूशन बनता है, तब सब रोग वापस लौट आते हैं। जो लोग पुराने संगठन में थे, वे पुराने संगठन की वजह न थे संगठन के कारण कुछ रोग अनिवार्य है।
संगठन होगा तो कोई पद पर होगा, मालिका होगा, कोई अधिनायक, डिक्टेटर होगा। कोई आज्ञा चलाएगा। संगठन होगा तो कुछ थोड़े से लोग शक्तिशाली हो जाएंगे। संगठन होगा तो धन इकट्ठा होगा। संगठन होगा तो भीड़ इकट्ठी होगी। और ध्यान रहे भीड़ सदा परंपरानुगत कंफरमिस्ट है। भीड़ सदा 'हां-हुजूर' है।
हिप्पी यह कहता है कि अब क्रांति से नहीं होगा, अब तो विद्रोह करना पड़ेगा।

विद्रोह का मतलब है कि जिसे लगता है गलत है, वह तत्काल गलत से विदा हो जाए।
उनका एक शब्द है 'ड्रापिंग आउट'। वे कहते हैं रास्ते पर भीड़ चली जा रही है, हम कोई आग्रह नहीं करते कि सारी भीड़ को बदलेंगे। हमें लगता है कि गलत है यह भीड़, गलत है यह रास्ता 'वी जस्ट ड्राप आउट', हम रास्ता छोड़कर नीचे उतर जाते हैं। हम कहते हैं 'नमस्कार, तुम जाओ।'

यह धारणा बड़ी नयी है, व्यक्तिगत विद्रोह की। बड़ी सबल भी है, क्योंकि शायद किसी क्रांतिकारी ने इतना दांव नहीं लगाया। वे कहते हैं, सब बदलेंगे। तो एक कम्मुनिस्ट भी करोड़पति हो सकता है। कोई कठिनाई नहीं है। वह कहता है जब समाज बदलेगा, जब सबकी संपत्ति बंटेगी तो मेरी भी बंट जाएगी। लेकिन जब तक सबकी नहीं बंटी, तब तक मुझे क्यों बांटने की फिकर करना है। लेकिन हिप्पी कहता है, सम्पत्ति अगर रोग है तो मैं तो बाहर हुआ जाता हूं। फिर जब समाज बदलेगा, बदलेगा। लेकिन फिर तुम मुझे जिम्मेदार न ठहरा सकोगे।
अगर वियतनाम में गलत युद्ध हो रहा है तो क्रांतिकारी कहेगा कि आंदोलन चलाओ, हड़ताल करो, घेराव करो। हिप्पी कहता है सब घेराव करो, सब हड़ताल करो, सब आंदोलन चलाओ। लेकिन चलाने में हिंसा चाहिए, घेराव करने में हिंसा चाहिए। और अगर जीत गए तुम किसी दिन तो जीतते-जीतते इतने हिंसक हो जाओगे कि वियतनाम की जगह दूसरा वियतनाम तुम चला दोगे। हिप्पी कहता है कि हमको लगता है कि गलत है वियतनाम, हम युद्ध पर जाने से इंकार करते हैं। तुम हमें गोली मार दो, हम ये बैठे हैं हम नहीं जाएंगे।

व्यक्तिगत विद्रोह-पहली दफा निपट एक व्यक्ति साहस कर रहा है कि सारा समाज गलत लगता है तो हम बाहर हो जाए। वह यह नहीं कह रहा कि समाज के विवाह के नियम बदलेंगे, तब हम सुधरेंगे। वह यह कह रहा है, हमने बदल दिए हैं नियम अपने लिए। अब जो तकलीफ होगी, वह हम सह लेंगे।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga