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संभोग से समाधि की ओर...
बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को ठीक नहीं लगेगा क्योंकि बुद्धिमान बेटा बहुत
बार बाप को भी निर्बुद्धि सिद्ध कर देगा। बहुत क्षणों में बाप को भी लगेगा कि
मैं भी निर्बुद्धि मालूम पड़ रहा हूं। बड़ी चोट है, अहंकार को। वह कठिनाई में
डाल देगी।
इसलिए हजारों साल से बाप, पीढ़ी, समाज 'हां' कहने की आदत डलवा रहा है। उसका वह
अनुशासन कहे, आज्ञाकारिता कहे और कुछ नाम दे, लेकिन प्रयोजन एक है, और वह यह
है कि विद्रोह नहीं होना चाहिए बगावती चित्त नहीं होना चाहिए।
हिप्पियों का तीसरा सूत्र है कि अगर चित्त ही चाहिए हो तो सिर्फ बगावती ही हो
सकता है। अगर चित्त ही न चाहिए हो तब बात दूसरी। अगर आत्मा चाहिए हो तो वह
'रिबैलियस' ही होगी। अगर आत्मा ही, न चाहिए तो बात दूसरी।
कंफरमिस्ट के पास कोई आत्मा नहीं होती।
यह ऐसा ही है, जैसे एक पत्थर पड़ा है सड़क के किनारे। सड़क के किनारे पड़ा हुआ
पत्थर मूर्ति नहीं बनता है। मूर्ति तो तब बनता है, जब छैनी और हथौड़ी उस पर
चोट करती और काटती है। जब कोई आदमी 'न' कहता है और बगावत करता है तो सारे
प्रासमें पर छैनी और हथौड़िया पड़ने लगती है। सब तरफ से मूर्ति निखरनी शुरू
होती है। लेकिन जब कोई पत्थर कह देता है 'हां' तो छैनी हथौड़ी नहीं होती वहां
पैदा। वह फिर पत्थर ही रह जाता है सड़क के किनारे पड़ा हुआ।
लेकिन समस्त सत्ताधिकारियों को, चाहे वे पिता हो, चाहे मां-बाप हों, चाहे बड़े
भाई हों, चाहे राजनेता हों-समस्त सत्ताधिकारियो को 'हां-हुजूरी' की जमात
चाहिए।
हिप्पी कहते हैं, इससे हम इंकार करेंगे। हमें जो ठीक लगेगा, वैसा ही जीएंगे।
निश्चित ही तकलीफ है और इसलिए हिप्पी भी एक तरह का संन्यासी है। असल में
संन्यासी कभी एक दिन एक तरह का हिप्पी ही था. उसने भी इंकार किया था,
अ-नागरिक था, समाज छोड़कर भाग रहा था।
जैसे महावीर नग्न खड़े हो गए। महावीर जिस दिन बिहार में नग्न खड़े हुए होगे,
उस दिन मैं नहीं समझता कि पुरानी जमात ने स्वीकार किया हो इस आदमो को। यहां
तक बात चली कि अब महावीर को मानने वालों के दो हिस्से हैं। एक तो कहता है कि
वस पहनते थे, लेकिन वे अदृश्य वस्त्र थे, दिखाई नहीं पड़ते थे! यह पुराना
कफरमिस्ट जो होगा, उसने आखिर महावीर को भी वस्त्र पहना दिए, लेकिन ऐसे वस्त्र
जो दिखाई नहीं पड़ते! इसलिए कुछ लोगों को भूल हुई कि वे नंगे थे। वे नंगे नहीं
थे, वस्त्र पहनते थे।
जीसस, बुद्ध या महावीर जैसे लोग सभी बगावती हैं। असल मे मनुष्य जाति के
इतिहास मे जिनके नाम भी गौरव से लिए जा सकें, वे सब बगावती हैं।
और कृष्ण से बड़ा महा-हिप्पी खोजना तो असंभव ही है। इसलिए कृष्ण को मानने वाला
कृष्ण को काट-काटकर स्वीकार करता है। अगर सूरदास के पास जाएं तो वे कृष्ण को
बच्चे से ऊपर बढ़ने ही नहीं
देते। क्योंकि बच्चे के ऊपर बढ़कर वह जो उपद्रव करेगा वह सूरदास की पकड़ से
बाहर है। तो बाल कृष्ण को ही वे स्वीकर कर सकते हैं छोटे बच्चे को! तब उसकी
चोरी भी निर्दोष हो जाती है। लेकिन सूरदास सोच ही नहीं सकते कि उनका कला रास
रचा रहा है, गोपियों से प्रेम कर रहा है और नहाती हुई स्त्रियों के कपड़े लेकर
वृक्ष पर चढ़ गया है। फिर पुराना कफरमिस्ट जब आएगा व्याख्या करने तो वह कहेगा,
वे गोपियां नहीं हैं। गोपी का मतलब होता है इंद्रियां। तो इंद्रियों को
निवारण करके वे वृक्ष पर चढ़ गए हैं किसी स्त्री को निवारण करके नहीं।
कंफरमिस्ट बार-बार लौटकर विद्रोही को भी अपने कैम्प में खड़ा कर लेता है।
इसलिए जीसस को सूली देनी पड़ती है। लेकिन दो-चार सौ वर्ष बाद जीसस भी उसी कतार
में खड़े हो जाते हैं। अब कभी हमने नहीं सोचा कि जीसस को सूली देने का कारण
क्या था?
जीसस को सूली देने के कारण बड़े अजीब थे। बड़े से बड़े कारणों में से एक तो यह
था कि गैर-पारंपरिक, नान-कंफरमिस्ट थे। वे अंध-स्वीकारी नहीं थे। वे इंकार
करने वाले व्यक्ति थे। लोगों ने कहा, वह मेग्दलीन वेश्या है, उसके घर मे मत
ठहरो। तो जीसस ने कहा, मैं भी अगर वेश्या के घर में नही ठहरुंगा तो फिर कौन
ठहरेगा।
इसलिए जानकर हैरानी होगी कि जिस दिन जीसस को सूली हुई, उस सूली के पास न तो
जीसस का कोई अनुयायी था, न कोई शिष्य था। उस सूली के पास जीसस के बुद्धिमान
शिष्यों में से कोई भी न था। जीसस के पास सिर्फ दो औरतें थी। एक तो वही
वेश्या थी, जो उनकी फांसी का भी एक कारण थी। सूली से जिसने लाश को उतारा है,
वह मेग्दलीन थी।
तो जीसस को स्वीकार करना, उस समाज के लिए असंभव रहा होगा। इसलिए जीसस को जब
सूली दी तो दो चोरों के बीच में सूली दी। दो तरफ दो चोर लटकाए बीच में जीसस
को लटकाया। और जनता में से लोगों ने यह भी चिल्लाकर कहा कि इन चोरों को क्यों
मार रहे हो, लेकिन किसी ने यह न कहा कि जीसस को क्यों मार रहे हो! यह आदमी
फिर करोड़ो लोगो का मसीहा हो गया! फिर हम व्याख्या कर लेते हैं! फिर हम इंतजाम
कर लेते है। फिर हम साफ-सुथरा कर लेते हैं।
बगावत आत्मा का जन्म है।
हिप्पी विद्रोह को जी रहा है।
इस संबंध में एक बात और मुझे कह लेने जैसी है कि हिप्पी क्रांतिकारी,
रिव्योल्यूशनरी नहीं है-विद्रोही रिबेलियस है। क्रांतिकारी नहीं है-बगावती
है, विद्रोही है।
और क्रांति और बगावत के फर्क को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। असल में हजारों साल
में कितनी ही क्रांतियां हो चुकी, लेकिन सब क्रांतियां असफल हो गयीं। हिप्पी
का कहना है, सब क्रांतियां असफल हो गयी क्योंकि क्रांति सफल हो ही नहीं सकती
है। सफल हो सकता है, केवल अनियोजित विद्रोह। 1917 की क्रांति असफल हो गयी,
क्योंकि एक जार को मारा और दूसरा जार उसकी जगह पर बैठ गया। सिर्फ नाम बदल गया
है। स्टेलिन हो गया उसका नाम। वह दूसरा जार है। किसी जार ने इतने आदमी न मारे
थे।
स्टेलिन ने अपनी जिंदगी में एक करोड़ लोगों की हत्या की, किसी जार ने अथवा सब
जारों ने मिलकर भी इतने आदमी नहीं मारे थे! तो बड़ी कठिन बात है कि क्रांति भी
होती है तो फिर उसके ऊपर एक जार बैठ जाता है। नाम बदल जाता है, झंडा बदल जाता
है, बैठने वाले नहीं बदलते। वही चंगेज, वही तैमूर, फिर वापिस बैठ जाता है।
हिटलर सोशलिस्ट था। उनकी पाटीं का नाम था 'नेशनलिस्ट सोशलिस्ट पार्टी',
राष्ट्रीयवादी समाजवादी दल! किसने सोचा था कि हिटलर यह करेगा, जो उसने किया।
क्रांतियां जब सफल होती हैं, तब पता चलता है कि सब व्यर्थ हो गया। जब तक सफल
नहीं होती तब तक तो लगता है बहुत कुछ हो रहा है। फिर एकदम व्यर्थ हो जाती
हैं।
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