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संभोग से समाधि की ओर...
इसलिए हिप्पी कहते हैं कि हम किसी इज्म में नहीं हैं। ऊब चुके तुम्हारे वादों
से, तुम्हारे धर्मों से। हमें निपट आदमी की तरह छोड़ दो-हम जैसे हैं वैसे जीना
चाहते हैं।
यह तो पहला सूत्र है। इसलिए मैंने कहा, यह बात पहले समझ लेना जरूरी है।
हिप्पीइज्म जैसी चीज नहीं है, हिप्पीज हैं। हिप्पीवाद नहीं है, हिप्पी जरूर
हैं। दूसरी बात ध्यान में लेने जैसी है और वह यह है कि हिप्पियों की ऐसी
धारणा है कि न केवल आदमी की तरह जीएं, बल्कि सहज आदमी की तरह जीएं। हजारों
साल की सभ्यता ने आदमी को असहज बनाया है, जैसा वह नहीं है वैसा बनाया है।
हजारों साल की सभ्यता, सस्कार, व्यवस्था ने आदमी को कृत्रिम और झूठा बनाने की
कोशिश की है। उसके हजार चेहरे बना दिए हैं।
मैंने सुना है कि अगर एक कमरे में मैं और आप दो जन मिले तो वहां दो जन नहीं
होंगे, वहां कम से कम 6 जन होंगे। एक मैं-जैसा मैं हूं एक मै-जैसा कि मैं
सोचता हूं कि मैं हूं, और एक मैं-जैसा कि आप मुझे समझते हैं कि मैं हूं। और
तीन आप और तीन मैं। उस कमरे मे जहां दो आदमी मिलते हैं, कम से कम 6 आदमी
मिलते है। 6 कम से कम, मिनिमम-हजार मिल सकतै हैं। क्योंकि हमारे हजार चेहरे
हैं, मुखौटे है।
हर आदमी कुछ है और, कुछ दिखला रहा है। कुछ है, कुछ बन रहा है और कुछ और ही
दिखाई पड़ रहा है। और फिर न मालूम कितने चेहरे-जैसे दपण के आगे दर्पण और
दर्पण के आगे दर्पण और एक दूसरे के प्रतिबिंब और हजार-हजार प्रतिबिंब हो गए
हैं। इन प्रतिबिंबों की भीड़ में पता लगाना ही मुश्किल है कि कौन हैं आप, तय
करना ही मुश्किल है कि कौन है आप?
पत्नी के सामने आपका चेहरा दूसरा होता है। बेटे के सामने दूसरा हो जाता है।
नौकर के सामने एक होता है, मालिक के सामने एक हो जाता है। जब आप मालिक के
सामने खड़े होते हैं तो जो पूंछ आपके पास नहीं है, वह हिलती रहती है। और जब आप
नौकर के पास खड़े होते हैं तब जो पूछ उसके पास नहीं है, आप गौर से देखते रहते
हैं कि वह हिला रहा है या नहीं हिला रहा है।
हिप्पियों की धारणा मुझे प्रीतिकर मालूम पड़ती है। वे कहते, हैं कि हम सहज
आदमियों की तरह जिएंगे-जैसे हम है। धोखा न देंगे। प्रवचना, पाखंड, डिसेप्शन
खड़ा न करेंगे। ठीक है, तकलीफ होगी तो तकलीफ झेलेंगे। लेकिन जैसे हम हैं वैसे
ही रहेंगे।
अगर हिप्पी को लगता है कि वह किसी से कहे कि मुझे आप पर क्रोध आ रहा है और
गाली देने का मन होता है तो वह आपसे आकर कहेगा पास में बैठकर कि मुझे आप पर
बहुत क्रोध आ रहा है और मैं आपको दो गाली देना चाहता हूं।
मैं समझता हूं कि यह बड़ा मानवीय गुण है। और वह क्षमा मांगने नहीं आएगा पीछे,
जब तक उसे लगे न क्योंकि वह कहेगा गाली देने का मेरा मन था मैंने गाली दी और
अब जो भी फल हो उसे लेने के लिए मैं तैयार हूं। लेकिन गाली
भीतर, ऊपर मुस्कराहट, इस बात को वह इंकार कर रहा है। लेकिन हमारी स्थिति यह
है कि भीतर कुछ है, बाहर कुछ। भीतर एक नरक छिपाए हुए हैं हम, बाहर हम कुछ और
हो गए है। एक आदमी एक जीता-जागता झूठ है।
हिप्पी का दूसरा सूत्र यह है कि हम जैसे हैं वैसे हैं। हम कुछ भी रुकावट न
करेंगे, छिपावट न करेंगे।
मेरे एक मित्र हिप्पियों के एक छोटे-से गांव में जाकर कुछ दिन तक रहे तो
मुझसे बोले कि बहुत बेचैनी होती है वहां। क्योंकि वहां सारे मुखौटे उखड़ जाते
है। वहां बजाय एक युवक एक युवती के पास आकर कविताएं कहे, प्रेम की और बात करे
हजार तरह की, वह उससे सीधा ही आकर निवेदन कर देगा कि मैं आपको भोगना चाहता
हूं। वह कहेगा कि इतने सारे जाल के पीछे इरादा तो वही है तो उस इरादे को हम
सीधा कह देते हैं। उस इरादे के लिए इतने जाल बनाने की कोई जरूरत नहीं है। वह
कह सकता है एक लड़की को जाकर कि मैं तुम्हारे साथ बिस्तर पर सोना चाहता हूं।
बहुत घबराने वाली बात लगेगी, लेकिन सारी बातचीत और सारी कविता और सारे संगीत
और सारी प्रेम चर्चा के बाद यही घटना अगर घटने वाली है तो हिप्पी कहता है कि
इसे सीधा हो निवेदन कर देना उचित है। किसी को धोखा तो न हो, वह लड़की अगर न
चाहती हो सोना, तो कह तो सकती है कि क्षमा करो।
एक जाल सभ्यता ने खड़ा किया है, जिसने आदमी को बिल्कुल ही झूठी इकाई बना दिया
है।
अब एक पति है, वह अपनी पत्नी से रोज कहे जा रहा है कि मैं तुम्हे प्रेम करता
हूं और भीतर जानता है कि यह मैं क्यों कह रहा हूं। एक पत्नी है, वह अपने पति
से रोज कहे जा रही है कि मैं तुम्हारे बिना एकक्षण नहीं जी सकती और उसी पति
के साथ एकक्षण जीना मुश्किल हुआ जा रहा है।
बाप बेटे से कुछ कह रहा है। बाप बेटे से कह रहा है कि मैं तुम्हें इसलिए पढ़ा
रहा हूँ कि मैं तुझे बहुत प्रेम करता हूं। और वह पढ़ा इसलिए रहा है कि बाप
अपढ़ रह गया है। और उसके अहंकार की चोट घाव बन गयी है। वह अपने बेटे को पढ़ाकर
अपने अहंकार की पूर्ति कर लेना चाहता है। बेटे के कंधे पर रखकर अहंकार की
बंदूक चलाना चाह रहा है। लेकिन वह कह यह रहा है कि मैं तुझे प्रेम करता हूं
इसलिए पढ़ा रहा हूं! बाप नहीं पहुंच पाया मिनिस्टरी तक, वह बेटे को पहुंचाना
चाहता है। पर वह कहता है, बेटे को मैं बहुत प्रेम करता हूं इसलिए...लेकिन,
उसे पता नहीं है कि बेटे को मिनिस्टरी तक पहुंचाना बेटे को नरक तक पहुंचा
देना है। अगर प्रेम है तो कम से कम बाप एक बात तो न चाहेगा कि बेटा
राजनीतिज्ञ हो जाए।
सब माताएं कह रही हैं कि बेटों से प्रेम करती हैं, लेकिन प्रेम का कुछ पता
नहीं। सब बाप कह रहे हैं कि बेटों से प्रेम करते हैं! सब पति कह रहे हैं सब
पत्नियां कह रही हैं! सारी पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब आदमी एक-दूसरें से कह रहे
हैं कि हम तुम्हें प्रेम करते हैं और हर दस वर्ष में युद्ध की जरूरत पड़ती है,
जिसमें दस-पाँच करोड़ लोगों को मारना पड़ता है! और रोज कहीं वियतनाम, कहीं
कोरिया, कहीं कश्मीर में युद्ध जारी है।
सारी दुनिया प्रेम कर रही है, लेकिन प्रेम का कोई विस्फोट कभी नहीं होता है!
सारी दुनिया प्रेम कर रही है और जब भी विस्फोट होता है तो घृणा का होता है।
हिप्पी कहता है, जरूर हमारा प्रेम कहीं धोखे का है। कर रहे हैं घृणा, कह रहे
है प्रेम।
मैं एक स्त्री को कहता हूं कि मैं तुझे प्रेम करता हूं और मेरी समत्री जरा
पड़ोस के आदमी की तरफ गौर से देख ले तो सारा प्रेम विदा हो गया और तलवार खिंच
गयी। कैसा प्रेम है! अगर मैं इस स्त्री को प्रेम करता हूं तो ईर्ष्यालु नहीं
हो सकता। प्रेम में ईर्ष्या की कहां जगह है? लेकिन जिनको भी हम प्रेम करते
हैं वे सिर्फ एक दूसरे के पहरेदार बन जाते हैं और कुछ भी नहीं, और एक-दूसरे
के लिए ईर्ष्या का आधार खोज लेते हैं। जलते हैं जलाते हैं, परेशान करते हैं।
हिप्पी यह कह रहा है कि बहुत हो चुकी यह बेईमानी। अब हम तो जैसे हैं वैसे
हैं। अगर प्रेम है तो कह देंगे कि प्रेम है और जिस दिन प्रेम चुक जाएगा उस
दिन निवेदन कर देंगे कि प्रेम चुक गया। अब झूठी बातों मे पड़ने की कोई जरूरत
नहीं है, मैं जाता हूं।
लेकिन पुराने प्रेम की धारणा कहती है कि प्रेम होता है तो फिर कभी नहीं
मिटता, शाश्वत होता है। हिप्पी कहता है, होता होगा। अगर होगा तों कह दूंगा कि
शाश्वत है, टिका है। नहीं होगा तो कह दूंगा कि नहीं है।
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