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संभोग से समाधि की ओर...
सींकचे तो दिखाई पड़ते हैं लोहे के, कारागृह दिखाई पड़ते हैं लोहे के, लेकिन
विचार के कारागृह दिखाई नहीं पड़ते! और जो कारागृह जितना कम दिखाई पड़ता है,
उतना ही खतरनाक है।
अभी मैं एक नगर से विदा हुआ। बहुत-से मित्र छोड़ने आए थे, जिस कंपार्टमेंट में
मैं था उसमें एक और साथी थे। उन्होंने देखा कि बहुत मित्र मुझे छोड़ने आए हैं।
तो जैसे ही मैं अंदर प्रविष्ट हुआ, गाड़ी चली, उन्होंने जल्दी से मेरे पर छुए
और कहा कि महात्मा जी, नमस्कार करता हूं। बड़ा आनंद हुआ कि आप मेरे साथ होंगे।
मैंने उनसे कहा कि ठीक से पता लगा लेना था कि मैं महात्मा हूं या नहीं। आपने
तो जल्दी पैर छू लिए। अब अगर मैं महात्मा सिद्ध न हुआ तो पैर छूने को वापस
कैसे लेंगे?
उन्होंने कहा, नहीं-नहीं ऐसा कैसे हो सकता है, आपके कपड़े कहते हैं। मैने कहा
अगर कपड़ों से कोई महात्मा होता तो तब तो पृथ्वी सारी की सारी कभी की महात्मा
हो गयी होती। उन्होंने कहा कि नहीं इतने लोग छोड़ने आए थे? तो मैंने कहा कि
किराए के आदमी इतने लोगों को छोड़ने आते हैं कि उसका कोई मतलब नहीं रहा है। वे
कहने लगे, कम से कम आप हिंदू तो हैं?
उन्होंने सोचा कि न सही कोई महात्मा हों, हिंदू होंगे तो भी चलेगा। कोई
ज्यादा गुनाह नहीं हुआ, पैर छू लिए। तो मैंने कहा नहीं हिंदू भी नहीं हूं। तो
उन्होंने कहा, आप आदमी कैसे है? कुछ तो होंगे, मुसलमान होंगे, ईसाई होंगे?
मैंने उनसे पूछा कि क्या मेरे सिर्फ आदमी होने से आपको कोई एतराज है? क्या
सिर्फ आदमी होकर मैं नहीं हो सकता हूं, मुझे कुछ और होना ही पड़ेगा? उनकी
बेचैनी देखने जैसी थी। कंडक्टर को बुलाकर वे दूसरे कंपार्टमेंट में अपना
सामान ले गए।
मैं थोड़ी देर बाद उनके पास गया और मैंने उनको कहा आप तो कहते थे सत्सग होगा,
बड़ा आनंद होगा। आप तो चले गए! क्या एक आदमी के साथ सफर करना उचित नहीं मालूम
पड़ा? हिंदू के साथ सफर हो सकता था। आदमो के साथ सफर बहुत मुश्किल है।
आज पश्चिम में जिन युवकों ने हिप्पियों का नाम ले रखा है, उनकी पहली बगावत यह
है कि वे कहते हैं कि हम सीधे आदमी की तरह जीएंगे; न हम हिंदू होगे, न हम
कम्युनिस्ट होंगे, न हम सोशलिस्ट होंगे, न हम ईसाई होंगे,; हम सीधे निपट आदमी
की तरह जीने की जो भी कोशिश है, वह मुझे तो बहुत प्रीतिकर है।
और मेरी समझ में जीसस भी निपट आदमी की तरह जीए-बुद्ध भी, महावीर भी। इसलिए
अभी एक वक्तव्य में जब मैंने कहा कि जीसस, बुद्ध महावीर और कृष्ण इन सबको
हिप्पियों के लम्बे इतिहास में जोड़ लिए जाना चाहिए तो कुछ लोगों को बहुत
हैरानी हुई।
हिप्पी नाम तो नया है, लेकिन घटना बहुत पुरानी है। मनुष्य के इतिहास में आदमी
ने कई बार निपट आदमी की तरह जीने की कोशिश की है। निपट आदमी
की तरह जीने में बहुत-से सवाल हैं।
धर्म नहीं चर्च नहीं, समाज नहीं-अंतत: देश भी नहीं; क्योंकि देश, राष्ट्र सब
उपद्रव हैं सब बीमारियां हैं।
कल तक पाकिस्तान की भूमि हमारी मातृभूमि हुआ करती थी। अब वह हमारे शत्रु की
मातृभूमि है! जमीन वही है, कहीं टूटी नहीं कहीं दरार नहीं पड़ी।
मैंने सुना है, एक पागलखाना था हिंदुस्तान के बंटवारे के समय हिंदुस्तान
पाकिस्तान की सीमा पर। अब यह भी सवाल उठा कि पागलखाने को कहां जाने
दें-हिंदुस्तान में कि पाकिस्तान में! कोई राजनैतिक उत्सुक न था कि वह
पागलखाना कहीं भी चला जाए। तो पागलों से ही पूछा अधिकारियों ने कि तुम कहां
जाना चाहते हो, हिंदुस्तान में या पाकिस्तान में? तो उन पागलों ने कहा हम तो
जहां हैं वहां बड़े आनंद में हैं। हमें कही जाने की कोई इच्छा नहीं है। पर
उन्होंने कहा कि जाना तो पड़ेगा ही, यह इच्छा का सवाल नहीं -त् और तुम घबड़ाओ
मत। तुम हिंदुस्तान में चाहो हिंदुस्तान में चले जाओ, पाकिs ग़न में चाहो तो
पाकिस्तान में चले जाओ। तुम जहां हो वहीं रहोगे। यहां से हटना न पड़ेगा।
तब तो वे पागल बहुत हंसने लगे। उन्होंने कहा, हम तो सोचते थे कि हम ही पागल
हैं। लेकिन ये अधिकारी और भी पागल मालूम होते हैं, क्योंकि ये कहते है कि
जाना कहीं न पड़ेगा और पूछते हैं जाना कहां चाहते हो! उन पागलों ने कहा, कि जब
जाना ही नहीं पड़ेगा तो 'जाना चाहते हो' का सवाल क्या है? उन पागलों को समझाना
बहुत मुश्किल हुआ। आखिर आधा पागलखाना बीच से दीवार उठाकर पाकिस्तान में चला
गया, आधा हिंदुस्तान में चला आया!
मैंने सुना है कि अभी वे पागल एक-दूसरे की दीवार पर चढ़ जाते हैं और आपस में
सोचते हैं कि बड़ी अजीब बात है, हम वहीं के वहीं हैं लेकिन तुम पाकिस्तान में
चले गए और हम हिंदुस्तान में चले गए!
ये पागल हमसे कम पागल मालूम होते हैं। हमने जमीन को बांटा है, आदमी को बांटा
है।
हिप्पी कह रहा है, हम बांटेंगे नहीं; हम निपट बिना बंटे हुए आदमी की तरह जीना
चाहते हैं।
और वाद बांटते हैं। बांटने की सबसे सुविधापूर्ण तरकीब वाद है, इज्म है।
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