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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


बाहर निकलकर क्षमा मांगने लगा कि बड़ी भूल हुई जा रही है, मै क्या करू, क्या न करूं, यह क्या हो गया है मुझे। आज तक मेरी जिंदगी में कपड़ों ने डस तरह से मुझे नहीं पकड़ा था। किसी को नहीं पकड़ा था। लेकिन अगर तरकीब उपयोग में करें तो कपड़े पकड़ ले सकते हैं। मित्र ने कहा मैं जाता नहीं तुम्हारे साथ। पर वह हाथ जोड़ने लगा कि 'नहीं ऐसा मत करो। जीवन-भर के लिए दुःख रह जाएगा कि मैंने क्या दुर्व्यवहार किया। अब मैं कसम खाकर कहता हूं कि कपड़े की बात ही नहीं उठानी है, मैं बिल्कुल भगवान की कसम खाता हूं कि कपड़े की बात नहीं उठानी है।'
और कसम खानेवालों से हमेशा सावधान रहना जरूरी है, क्योंकि जो भी कसम खाता है, उसके भीतर उस कसम से भी मजबूत कोई बैठा है, जिसके खिलाफ वह कसम खा रहा है। और वह जो भीतर बैठा है, वह ज्यादा भीतर है। कसम ऊपर है और बाहर है। कसम चेतन मन से खाई गई है। और जो भीतर बैठा है, वह अचेतन की परतों तक समाया हुआ है। अगर मन के दस हिस्से कर दें तो कसम एक हिस्से ने खाई है, नौ हिस्सा उल्टा भीतर खड़ा हुआ है। बह्मचर्य को कसमें एक हिस्सा खा रहा है मन का और जो हिस्सा परमात्मा की दुहाई दे रहा है। वह जो परमात्मा ने बनाया है, वह उसके लिए ही कहे चले जा रहा है।

गए तीसरे मित्र के घर। अब उसने बिल्कुल ही अपनी सांसों तक का संयम कर रखा है।

संयमी आदमी बड़े खतरनाक होते हैं क्योंकि उनके भीतर ज्वालामुखी उबल रहा है, ऊपर से वह संयम साधे हुए हैं।
और इस बात को स्मरण रखना कि जिस चीज को साधना पड़ता है-साधने में इतना श्रम लग जाता है कि साधना पूरे वक्त हो नहीं सकती। फिर शिथिल होना पड़ेगा, विश्राम करना पड़ेगा। अगर मैं जोर से मुट्ठी बांध लूं, तो कितनी देर बांधे रह सकता हूं? चौबीस घंटे? जितनी जोर से बांधूगा, उतना ही जल्दी थक जाऊंगा और मुट्ठी खुल जाएगी। जिस चीज में भी श्रम करना पड़ता है, जितना श्रम करना पड़ता है, उतनी जल्दी थकान आ जाती है, शक्ति खतम हो जाती है और उल्टा होना शुरू हो जाता है। मुट्ठी बांधी जितनी जोर से. उतनी ही जल्दी मुट्ठी खुल जाएगी। मुट्ठी खुली रखी जा सकती है चौबीस घंटें, लेकिन बांधकर नहीं रखी जा सकती। जिस काम मे श्रम पड़ता है उस काम को आप जीवन नहीं बना सकते। कभी सहज नहीं हो सकता है वह काम। श्रम पड़ेगा तो फिर विश्राम का वक्त आएगा ही।
इसलिए जितना सधा हुआ संत है उतना ही खतरनाक आदमी होता है, क्योंकि उसके विश्राम का वक्त आएगा। चौबीस घंटे में, घंटे-भर तो उसे शिथिल होना ही पड़ेगा। उसी बीच दुनिया-भर के पाप उसके भीतर खड़े हो जाएंगे। नरक सामने आ जाएगा।
तो उसने बिल्कुल ही अपने को सांस-सांस रोक लिया और कहा कि अब कसम खाता हूं, इन कपड़ों की बात ही नहीं उठानी है।
लेकिन आप सोच लें उसकी हालत! अगर आप थोड़े-बहुत भी धार्मिक आदमी होंगे, तो आपको अपने अनुभव सें ही पता चल सकता है कि उसकी क्या हालत हुई होगी? अगर आपने कसम खाई हो, व्रत लिए हों, संकल्प साधे हों, तो आपको भली-भांति पता होगा कि भीतर क्या हालत हो जाती है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga