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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


जो व्यवस्था विकसित की है दो सौ वर्षों में प्रेम-विवाह की, वह मानसिक तल तक सेक्स को ले जाती है और इसलिए पश्चिम में समाज अस्त-व्यस्त हो गया है। क्योंकि मन का कोई भरोसा नहीं है, वह आज कहता है कुछ, कल कुछ कहने लगता है। सुबह कुछ कहता है, शाम कुछ कहने लगता है। घड़ी भर पहले कछ कहना हैं. घड़ी भर बाद कुछ कहने लगता है।
शायद आपने सुना होगा कि बायरन ने जब शादी की तो कहते हैं कि तब तक वह कोई साठ-सत्तर स्त्रियों से सबंधित रह चुका था। एक स्त्री ने उसे मजबूर हो कर दिया विवाह के लिए। तो उसने विवाह किया और जब वह चर्च से उतर रहा था विवाह करके अपनी पत्नी का हाथ हाथ में लेकर, घंटियां बज रही हैं चर्च की। मोमबत्तियां अभी जो जलाई गई हैं जल रही हैं। अभी जो मित्र स्वागत करने आए थे, वे विदा हो रहे हैं और वह अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर सामने खड़ी घोड़ा-गाड़ी में बैठने के लिए चर्च की सीढ़ियां उतर रहा है, तभी उसे चर्च के सामने ही एक और स्त्री जाती हुई दिखाई पड़ी। एक क्षण को वह भूल गया अपनी पत्नी को, उसके हाथ को, अपने विवाह को। सारा प्राण उस सी का पीछा करने लगा। जाकर वह गाड़ी में बैठा। बहुत ईमानदार आदमी रहा होगा। उसने अपनी पत्नी से कहा, तूने कुछ ध्यान किया! एक अजीब घटना घट गई। कल तक तुझसे मेरा विवाह नहीं हुआ था, तो मैं विचार करता था कि तू मुझे मिल पाएगी या नहीं। तेरे सिवाय मुझे कोई भी दिखाई नहीं पड़ता था और आज जबकि विवाह हो गया है, मैं तेरा हाथ पकड़कर नीचे उतर रहा हूं, मुझे एक खी दिखाई पड़ी गाड़ी के उस तरफ जाती हुई और मैं तुझे भूल गया और मेरा मन उस स्त्री का पीछा करने लगा और एक क्षण को मुझे लगा कि काश! यह स्त्री मुझे मिल जाए!

मन इतना चंचल है। तो जिन लोगों को समाज को व्यवस्थित रखना था, उन्होंने मन के तल पर सेक्स को नहीं जाने दिया। उन्होंने शरीर के तल पर रोक लिया। विवाह करो, प्रेम नहीं। फिर विवाह से प्रेम आता हो तो आए, न आता हो तो न आए। शरीर के तल पर स्थिरता हो सकती है। मन के तल पर स्थिरता बहन मुश्किल है। लेकिन मन के तल पर सेक्स का अनुभव शरीर से ज्यादा गहरा होता है।

पूरब की बजाए पश्चिम का सेक्स का अनुभव ज्यादा गहरा है।
पश्चिम के जो मनोवैज्ञानिक हैं फ्रायड से जुंग तक, उन सारे लोगों ने जो भी लिखा है, वह सेक्स की दूसरी गहराई है, वह मन की गहराई है।
लेकिन मैं जिस सेक्स की बात कर रहा हूं, वह तीसरा तल है। वह न आज तक पूरब में पैदा हुआ है, न पश्चिम में। वह तीसरा तल है स्प्रिचुअल, वह तीसरा तल है आध्यात्मिक। शरीर के तल पर भी एक स्थिरता है। क्यों शरीर जड़ है और आत्मा के तल पर भी एक स्थिरता है, क्योंकि आला के तल पर कोहु परिवर्तन कभी होता ही नहीं। वहां सब शांत हैं, वहां सब सनातन हैं। बीच में एक नल है मन का जहां तरलता, पारे की तरह तरल है मन। जरा में बदल जाता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga