ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
|
248 पाठक हैं |
संभोग से समाधि की ओर...
शरीर अस्थिर चीज नहीं है। शरीर बहुत स्थिर चीज है। उसमें परिवर्तन बहुत
धीरे-धीरे आता है और पता भी नहीं चलता। शरीर जड़ता का तल है। इसलिए जिन समाजों
ने यह समझा कि विवाह को स्थिर बनाना जरूरी है-एक ही विवाह पर्याप्त हो,
बदलाहट की जरूरत न पड़े, उनको प्रेम अलग कर देना पड़ा। क्योंकि प्रेम होता है
मन से और मन चंचल है।
जो समाज प्रेम के आधार पर विवाह को निर्मित करेंगे, उन समाजों में तलाक
अनिवार्य होगा। उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा। विवाह स्थाई व्यवस्था
नहीं हो सकती। क्योंकि प्रेम तरल है।
मन चंचल है। शरीर स्थिर और जड़ है।
आपके घर में एक पत्थर पड़ा हुआ है। सुबह पत्थर पड़ा था, सांझ भी पत्थर वहीं
पड़ा रहेगा। सुबह एक फूल खिला था, शाम तक मुर्झा जाएगा और गिर जाएगा। फूल
जिंदा है, जन्मेगा, जिएगा, मरेगा। पत्थर मुर्दा है, वैसे-का-वैसा सुबह था।
वैसा ही शाम पड़ा रहेगा। पत्थर बहुत स्थिर है।
विवाह पत्थर की तरह है। शरीर के तल पर जो विवाह है, वह स्थिरता लाता है, समाज
के हित में है। लेकिन एक-एक व्यक्ति के अहित में है। क्योंकि वह स्थिरता शरीर
के तल पर लाई गई है और प्रेम से बचा गया है।
इसलिए शरीर के तल से ज्यादा पति और पत्नी का संभोग और सेक्स नहीं पहुंच पाता
गहरे में। एक यांत्रिक, एक मेकेनिकल रूटीन हो जाती है। एक यंत्र की भांति
जीवन हो जाता है सेक्स का। उस अनुभव को रिपीट करते रहते हैं और जड़ होते चलें
जाते हैं! लेकिन उससे ज्यादा गहराई कभी भी नहीं मिलती।
जहां प्रेम के बिना विवाह होता है उस विवाह में, औंर वेश्या के पास जाने में
बुनियादी भेद नहीं, थोड़ा-सा भेद है। बुनियादी नहीं है वह। वेश्या को आप एक
दिन के लिए खरीदते हैं और पत्नी को आप पूरे जीवन के लिए खरीदते हैं। इससे
ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जहां प्रेम नहीं है, वहा खरीदना ही है। चाहे एक दिन
के लिए खरीदो, चाहे पूरी जिंदगी के लिए खरीदो। हालांकि साथ रहने में रोज़-रोज
एक तरह का संबध पैदा हो जाता है एसोसिएशन सें। लोग उसी को प्रेम समझ लेते
हैं। वह प्रेम नहीं है। प्रेम और ही बात है। शरीर के तल पर विवाह है इसलिए
शरीर के तल से गहरा संबंध कभी भी नहीं उत्पन्न हो पाता है। यह एक तल है।
दूसरा तल है सेक्स का-मन का तल, साइकोलॉजिकल। वात्स्यायन से लेकर पंडित कोक
तक जिन लोगों ने भी इस तरह के शात लिखे हैं सेक्स के बाबत, वे शरीर के तल में
गहरे नहीं जाते। दूसरा तल हैं मानसिक। जो लोग प्रेम करते हैं और फिर विवाह
में बंधते हैं उनका सेक्स शरीर के तल से थोड़ा गहरा जाता है। वह मन तक जाता
है। उसकी गहराई साइकोलॉजिकल है। लेकिन वह भी रोज़-रोज़ पुनरुक्त होने से थोड़े
दिनों में शरीर के तल पर आ जाता है और यांत्रिक हो जाता है :
|