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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


एक आदमी एक गंदे घर में बैठा है। दीवालें अंधेरी हैं और धुएं से पुती हुई हैं। घर बदबू से भरा हुआ है। लेकिन खिड़की खोल सकता है। उस गंदे घर की खिड़की में खड़े होकर वह देख सकता है दूर आकाश को, तारों को, सूरज को, उड़ते हुए पक्षियों को। और तब उसे उस घर के बाहर निकलने में कठिनाई न रह जाएगी।

जिस दिन आदमी को संभोग के भीतर समाधि की पहली, थोड़ी-सी भी अनुभूति होती है; उसी दिन सेक्स का गंदा मकान सेक्स की दीवालें, अंधेरे से भरी हुई व्यर्थ हो जाती हैं और आदमी बाहर निकल जाता है।

लेकिन यह जानना जरूरी है कि साधारणतया हम उस मकान के भीतर पैदा होते हैं जिसकी दीवालें बंद हैं जो अंधेरे से पुती हैं जहां बदबू है, जहां दुर्गंध है और इस मकान के भीतर ही पहली दफा मकान के बाहर का अनुभव करना जरूरी है, तभी हम बाहर जा सकते हैं और इस मकान को छोड़ सकते हैं। जिस आदमी ने खिड़की नहीं खोली उस मकान की और उसी मकान के कोने में आंख बंद करके बैठ गया है कि मैं इस गंदे मकान को नहीं देखूंगा, वह चाहे देखे और चाहे न देखे, वह गंदे मकान के भीतर ही है और भीतर ही रहेगा।

जिनको आप ब्रह्मचारी कहते हैं तथाकथित जबरदस्ती थोपे हुए ब्रह्मचारी, वे सेक्स के मकान के भीतर उतने ही हैं जितना की कोई भी साधारण आदमी है। आंख बंद किए बैठे हैं आप आंख खोले हुए बैठे हैं इतना ही फर्क है। जो आप आंख खोलकर कर रहे हैं वे आंख बद करके भीतर कर रहे है। जो आप शरीर से कर रहे हैं वे मन से कर रहे हैं। और कोई भी फर्क नहीं है।

इसलिए मैं कहता हूं कि संभोग के प्रति दुर्भाव छोड़ दें। समझने की चेष्टा प्रयोग करने की चेष्टा करें, और संभोग को एक पवित्रता की स्थिति दें।

मैंने दो सूत्र कहे। तीसरी एक भाव दशा चाहिए संभोग के पास जाते समय। वैसी भाव दशा जैसे कोई मंदिर के पास जाता है, क्योंकि संभोग के क्षण में हम परमात्मा के निकटतम होते हैं इसीलिए तो संभोग में परमात्मा सृजन का काम करता है और नए जीवन को जन्म देता है। हम क्रिएटर के निकटतम होते हैं।
संभोग की अनुभूति में हम सृष्टा के निकटतम होते हैं।
इसीलिए तो हम मार्ग बन जाते हैं और एक नया जीवन हमसे उतरता है और गतिमान हो जाता है। हम जन्मदाता बन जाते हैं।
क्यों?
सृष्टा के निकटतम है वह स्थिति। अगर हम पवित्रता से, प्रार्थना से सेक्स के पास जाएं तो हम परमात्मा की झलक को अनुभव कर सकते हैं लेकिन हम तो सेक्स के पास एक घृणा एक दुर्भाव एक कंडमनेशन के साथ जाते हैं। इसलिए दीवाल खड़ी हो जाती है और परमात्मा का वहां कोई अनुभव नहीं हो पाता।

सेक्स के पास ऐसे जाएं, जैसे मंदिर के पास। पत्नी को ऐसा समझें, जैसै कि वह प्रभु है। पति को ऐसा समझें कि जैसे कि वह परमात्मा है। और गंदगी में, क्रोध में कठोरता में, द्वेष में, ईर्ष्या में, जलन में, चिंता के क्षणों में कभी भी सेक्स के पास न जाएं। होता उल्टा है। जितना आदमी चितित होता है, जितना परेशान होता है, जितना क्रोध से भरा होता हे, जितना घबराया होता है, जितना एंग्विश में होता है, उतना ही ज्यादा वह सेक्स के पास जाता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga