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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


कुछ थोड़े-से सूत्र आपको कहता हूं। उन्हे थोड़ा ख्याल में रखेंगे तो ब्रह्मचर्य की तरफ जाने में बड़ी यात्रा सरल हो जाएगी। संभोग करते क्षणों में श्वास जितनी तेज होगी, संभोग का काल उतना ही छोटा होगा। जितनी शांत और शिथिल हीगी, संभोग का काल उतना ही लंबा हो जाएगा। अगर श्वास को बिल्कुल शिथिल रहने का थोड़ा-सा अभ्यास किया जाए तो संभोग के क्षणों को कितनो ही लंबा किया जा सकता है। और संभोग के क्षण जितने लंबे होंगे, उतने ही संभोग के भीतर से समाधि का जो सूत्र मैंने आपसे कहा है-निरहंकार भाव, इगोलेसनेस और टाइमलेसनेस का अनुभव शुरू हो जाएगा। श्वास अत्यत शिथिल होनी चाहिए। श्वास के शिथिल होते ही संभोग को गहराई, अर्थ और नए उद्घाटन शुरू हो जाएंगे।

और दूसरी बात, संभोग के क्षण में ध्यान दोनों आंखों के बीच, जहां योग आज्ञाचक्र को बताता है। वहां अगर ध्यान हो तो संभोग की सीमा और समय तीन घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। और एक संभोग व्यक्ति को सदा के लिए ब्रह्मचर्य मे प्रतिष्ठित कर देगा-न केवल इस जन्म के लिए बल्कि अगले जन्म के लिए भी।
किन्हीं एक बहिन ने पत्र लिखा है और मुझसे पूछा है कि विनोबा तो
बाल-ब्रह्मचारी हैं, क्या उनको समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा? मेरे बाबत पूछा है कि मैंने तो विवाह नहीं किया, मैं तो बाल-ब्रह्मचारी हूं, मुझे समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा?

उन बहिन को अगर वह यहां मौजूद हों तो मैं कहना चाहता हूं, विनोबा को या मुझे या किसी को भी बिना अनुभव के ब्रह्मचर्य उपलब्ध नहीं होता। वह अनुभव चाहे इस जन्म का हो, चाहे पिछले जन्म का हो-जो इस जन्म में ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होता है, वह पिछले जन्मों के गहरे संभोग के अनुभव के आधार पर और किसी आधार पर नहीं। कोई और रास्ता नहीं है।

लेकिन अगर पिछले जन्म में किसी को गहरे संभोग की अनुभूति हुई हो तो इस जन्म के साथ ही वह सेक्स से मुक्त पैदा होगा। उसकी कल्पना के मार्ग पर सेक्स कभी भी खड़ा नहीं होगा और उसे हैरानी होगी दूसरे लोगों को देखकर कि यह क्या बात है। लोग क्यों पागल है?ऐ क्यों दीवाने हैं? उसे कठिनाई होगी यह जांच करने में कि कौन स्त्री है, कौन पुरुष है? इसका भी हिसाब रखने में और फासला करने में कठिनाई होगी।

लेकिन कोई अगर सोचता हो कि बिना गहरे अनुभव के कोई बाल-ब्रह्मचारी हो सकता है तो बाल-ब्रह्मचारी नहीं होगा, सिर्फ पागल हो जाएगा। जो लोग जबरदस्ती ब्रह्मचर्य थोपने की कोशिश करते हैं वे सिर्फ विक्षिप्त होते हैं और कही भी नही पहुंचते।
ब्रह्मचर्य थोपा नहीं जाता। वह अनुभव की निष्पत्ति है। वह किसी गहरे अनुभव का फल है। और वह अनुभव संभोग का ही अनुभव है 'अगर वह अनुभव एक बार भी हो जाए तो अनंत जीवन की यात्रा के लिए सेक्स से मुक्ति हो जाती है।
तो दो बातें मैंने कहीं, उस गहराई के लिए-श्वास शिथिल हो, इतनी शिथिल हो कि जैसे चलती ही नहीं और ध्यान सारी अटेंशन आज्ञाचक्र के पास हो। दोनों आंखों के बीच के बिंदु पर हो। जितना ध्यान मस्तिष्क के पास होगा, उतनी ही संभोग की गहराई अपने आप बढ़ जाएगी। और जितनी श्वास शिथिल होगी, उतनी लंबाई बढ़ जाएगी। और आपको पहली दफा अनुभव होगा कि संभोग का आकर्षण नही है मनुष्य के मन में। मनुष्य के मन मेँ समाधि का आकर्षण है। और एक बार उसकी झलक मिल जाए, एकबार बिजली चमक जाए और हमें दिखाई पड़ जाए अंधेरे में कि रास्ता क्या है फिर हम रास्ते पर आगे निकल सकते हैं।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga