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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


एक पौधा पूरी चेष्टा कर रहा है-नए बीज उत्पन्न करने की। एक पौधे के सारे प्राण सारा रस नए बीज इकट्ठे करने, जन्मने की चेष्टा कर रहा है। एक पक्षी क्या कर रहा है, एक पशु क्या कर रहा है?

अगर हम सारी प्रकृति में खोजने जाएं तो हम पाएंगे, सारी प्रकृति में एक ही, एक ही क्रिया जोर से प्राणों को घेर कर चल रही है और वह क्रिया है सतत सृजन की किया। वह क्रिया है 'क्रिएशन' की क्रिया। वह क्रिया है जीवन को पुनरुज्जीवित नए-नए रूपों में जीवन देने की क्रिया। फूल बीज को संभाल रहे हैं फल बीज को संभाल रहे हैं। बीज क्या करेगा? बीज फिर पौधा बनेगा, फिर फूल बनेगा, फिर फल बनेगा।

अगर हम सारे जीवन को देखें, तो जीवन जन्मने की एक अनंत क्रिया का नाम है। जीवन एक ऊर्जा है, जो स्वयं को पैदा करने के लिए सतत संलग्न है और सतत चेष्टाशील है।

आदमी के भीतर भी वही है। आदमी के भीतर उस सतत सृजन की चेष्टा का नाम हमने 'सेक्स' दे रखा है, काम दे रखा है। इस नाम के कारण उस ऊर्जा को एक गाली मिल गई एक अपमान। इस नाम के कारण एक निंदा का भाव पैदा हो गया है। मनुष्य के भीतर भी जीवन को जन्म देने की सतत चेष्टा चल रही है। हम उसे सेक्स कहते हैं हम उसे काम की शक्ति कहते हैं।
लेकिन काम की शक्ति क्या है?
समुद्र की लहरें आकर टकरा रही हैं समुद्र के तट से हजारों, लाखों वर्षों से। लहरें चली आती हैं टकराती हैं लौट जाती हैं। फिर आती हैं टकराती हैं लौट
जाती हैं। जीवन भी हजारों वर्षों से अनंत-अनंत लहरों में टकरा रहा है। जरूर जीवन कहीं उठना चाहता है। यह समुद्र की लहरें, जीवन की ये लहरें कहीं ऊपर पहुंचना चाहती हैं; लेकिन किनारों से टकराती हैं और नष्ट हो जाती हैं। फिर नई लहरें आती है, टकराती हैं और नष्ट हो जाती हैं। यह जीवन का सागर इतने अरबों बरसों से टकरा रहा है, संघर्ष ले रहा है, रोज उठता है, गिर जाता है। क्या होगा प्रयोजन इसके पीछे? जरूर इसके पीछे कोई बृहत्तर ऊचाइयां छूने का आयोजन चल रहा है। जरूर इसके पीछे कुछ और गहराइयां जानने का प्रयोजन चल रहा है। जरूर जीवन की सतत प्रक्रिया के पीछे कुछ और महानत्तर जीवन पैदा करने का प्रयास चल रहा है।

मनुष्य को जमीन पर आए बहुत दिन नहीं हुए, कुछ लाख वर्ष हुए। उसके पहले मनुष्य नहीं था, लेकिन पशु थे। पशुओं को आए हुए भी बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ। एक जमाना था कि पशु भी नहीं थे, लेकिन पौधे थे। पौधों को आए भी बहुत समय नहीं हुआ। एक समय था कि पौधे भी नहीं थे। पत्थर थे, पहाड़ थे, नदियां थी सागर थे। पत्थर, पहाड़, नदियों की वह जो दुनिया थी., वह किस बात के लिए पीड़ित थी?

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga