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संभोग से समाधि की ओर...
अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाए कि भोजन छिपकर खाना, कोई देख न
ले! अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टर सड़कों
पर लगने लगेंगे फौरन। क्योंकि आदमी तब पोस्टरों से भी तृप्ति पाने की कोशिश
करेगा। पोस्टर से तृप्ति तभी पाई जाती है, जब जिदगी तृप्ति देना बंद कर देती
है और जिंदगी में तृप्ति पाने का द्वार बंद हो जाता है।
वह जो इतनी अश्लीलता और कामुकता और सेक्सुअलटी हैं, वह सारी कि सारी वर्जना
का अंतिम परिणाम है।
मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न हो उसमें
सेक्स को वर्जित मत करना, अन्यथा आदमी और भी कामुक-से-कामुक होता चला जाएगा।
मेरी यह बात देखने में बड़ी उल्टी लगेगी। अखबार वाले और नेतागण
चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करते हैं कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूँ।
सचाई उलटी है कि मैं लोगों को काम से मुक्त करना चाहता हूँ और प्रचार वे कर
रहे हैं! लेकिन उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि हजारों साल की परंपरा
से उनकी बातें सुन-सुनकर हम अंधे और बहरे हो गए हैं। हमें खयाल ही नहीं रहा
कि वे क्या कह रहे हैं। मन के सूत्रों का, मन के विज्ञान का कोई बोध ही नहीं
रहा कि वे क्या करवा रहे है? इसलिए आज जितना कामुक आदमी भारत में है, उतना
कामुक पृथ्वी के किसी कोने में नहीं है।
मेरे एक डाक्टर मित्र इंग्लैड के एक मेडिकल कांफ्रेंस में भाग लेने गए थे।
व्हाइट पार्क में उनकी सभा होती थी। कोई पांच सौ डाक्टर इकट्ठे थे। बातचीत
चलती थी। खाना-पीना चलता था। लेकिन पास की बेंच पर एक युवक और युवती गले में
हाथ डाले अत्यंत प्रेम में लीन आंखें बंद किए बैठे थे। उन मित्र के प्राणों
में बेचैनी होने लगी। भारतीय प्राण में चारों तरफ झांकने का मन होने लगा। अब
खाने में उनका मन न रहा। अब चर्चा में उनका रस न रहा। वे बार-बार लौटकर उस
बेंच की तरफ देखने लगे। पुलिस क्या कर रही है? वह बंद क्यों नहीं करती यह सब?
यह कैसा अश्लील देश है। यह लड़के और लड़की आंख बंद किए हुए चुपचाप, पांच सौ
लोगों की भीड़ के पास ही, बेंच पर बैठे हुए प्रेम प्रकट कर रहे हैं! कैसे लोग
हैं यह क्या हो रहा है? यह बर्दाश्त के बाहर है। पुलिस क्या कर रही है?
बार-बार वहां देखते।
पड़ोस के एक आस्ट्रेलियन डाक्टर ने उनको हाथ से इशारा किया और कहा बार-बार मत
देखिए नहीं तो पुलिस वाला आपको यहां से उठाकर ले जाएगा। वह अनैतिकता का सबूत
है। यह दो व्यक्तियों की निजी जिंदगी की बात है। और वे दोनों व्यक्ति इसलिए
पांच सौ लोगों की भीड़ के पास भी शांति से बैठै हैं क्योंकि वे जानते हैं कि
यहां सज्जन लोग इकट्ठे हैं कोई देखेगा नहीं, किसी को प्रयोजन भी क्या है?
आपका यह देखना बहुत गर्हित है, बहुत अशोभन है, बहुत अशिष्ट है। यह अच्छे आदमी
का सबूत नहीं है। आप पांच सौ लोगों को देख रहे हैं कोई फिक्र नहीं कर रहा
हैं। क्या प्रयोजन है किसी को? यह उनकी अपनी बात है। और दो व्यक्ति इस उम्र
में प्रेग करें तो पाप क्या है? और प्रेम में वे आंख
बंद करके पास-पास बैठे हों तो हर्जा क्या है? आप परेशान हो रहे हैं! न तो कोई
आपके गले में हाथ डाले हुए है, न कोई आपसे प्रेम कर रहा है।
वह मित्र मुझसे लौटकर कहने लगे कि मैं इतना घबड़ा गया कि ये कैसे लोग हैं।
लेकिन धीरे-धीरे उनकी समझ में यह बात पड़ी कि गलत वे ही थे।
हमारा पूरा मुल्क ही एक-दूसरे घर में, दरवाजे में 'को होल' रहता है न, उसमें
से झांक रहा है-कहां क्या हो रहा है, कौन क्या कर रहा है? कौन कहां जा रहा
है, कौन किसके साथ है? कौन किसके गले में हाथ डाले है, कौन किसका हाथ हाथ में
लिए है? क्या बदतमीजी है, कैसी संस्कारहीनता है! यह सब क्या है? यह क्यों हो
रहा है? यह हो रहा है, इसलिए कि भीतर वह जिसको दबाता है, वह सब तरफ से दिखाई
पड़ रहा है, वही दिखाई पड़ रहा है।
युवकों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम्हारे मां-बाप, तुम्हारे पुरखे, तुम्हारी
हजारों साल की पीढ़ियां सेक्स से भयभीत रही हैं। तुम भयर्भत मत रहना। तुम
समझने की कोशिश करना उसे। तुम पहचानने की कोशिश करना। तम बात करना। तम सेक्स
के संबंध में आधुनिक जो नई खोजे हुई हैं उनको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की
कोशिश करना कि क्या है सेक्स? क्या है सेक्स का मेकेनिज्म? उसका यंत्र क्या
है? क्या है उसकी आकांक्षा? क्या है प्यास? क्या है प्राणों के भीतर छिपा हुआ
राज? इसको समझना। इसकी सारी की सारी वैज्ञानिकता को पहचानना। इससे भागना,
'एस्केप' मत करना आंख बंद मत करना। और तुम हैरान हो जाओगे कि तुम जितना
समझोगे, उतने ही मुक्त हो जाओगे। तुम जितना समझोगे, उतने ही स्वस्थ हो जाओगे।
तुम जितना सेक्स के फैक्ट को समझ लोगे, उतना ही सेक्स के 'फिक्शन' से
तुम्हारा छुटकारा हो जाएगा।
तथ्य को समझते ही आदमी कहानियों से मुक्त हो जाता है और जो तथ्य से बचता है,
वह कहानियों में भटक जाता है।
कितनी सेक्स की कहानियां चलती हैं। और कोई मजाक ही नहीं है हमारे पास, बस एक
ही मजाक है कि सेक्स की तरफ इशारा करें और हंसे। हद हो गई! तो जो आदमी सेक्स
की तरफ इशारा करके हंसता है, वह आदमी बहुत ही क्षुद्र है। सेक्स की तरफ इशारा
करके हंसने का क्या मतलब है? उसका एक ही मतलब है कि आप समझते ही नहीं।
बच्चे तो बहुत तकलीफ में हैं कि उन्हें कौन समझाए किससे वे बातें करें, कौन
सारे तथ्यों को सामने रखे? उनके प्राणों में जिज्ञासा है, खोज है, लेकिन उसको
दबाए चले जाते हैं रोके चले जाते हैं। उसके दुष्परिणाम होते हैं। जितना रोकते
हैं उतना मन वहां दौडने लगता है और उस रोकने और दौड़ने में सारी शक्ति
और ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
यह मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जिस देश में भी सेक्स की स्वस्थ रूप से
स्वीकृति नहीं होती, उस देश की प्रतिभा का जन्म ही नहीं होता है।
पश्चिम में तीन वर्षों में जो जीनियस पैदा हुआ है, जो प्रतिभा पैदा हुई है,
वह सेक्स के तथ्य की स्वीकृति से पैदा हुई है।
जैसे ही सेक्स स्वीकृत हो जाता है, वैसे ही जो शक्ति हमारी लड़ने में नष्ट
होती है, वह शक्ति मुक्त हो जाती है, वह रिलीज हो जाती है। और उस दिन शक्ति
को फिर हम रूपांतरित करते हैं-पढ़ने में, खोज में, आविष्कार में, कला में,
संगीत में, साहित्य में।
और अगर वह शक्ति सेक्स में ही उलझी रह जाए जैसा कि सोच लें कि वह आदमी जो
कपड़े में उलझ गया है-नसरुद्दीन, वह कोई विज्ञान के प्रयोग कर सकता था बेचारा?
कि वह कोई सत्य का सृजन कर सकता था? कि वह कोई मूर्ति का निर्माण कर सकता था?
वह कुछ भी करता कपड़े ही कपड़े उसके चारों तरफ घूमते रहते और वह कुछ भी नहीं कर
पाता।
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