कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
तीसरे यूसुफ मियाँ
जिन सात आदमियों की मृत्यु बादशाह नगर के हंगामे में, अखबारों के अनुसार हुई,
उनमें से एक यूसुफ मियां का रिश्ता मेरे इलाके से रहा है। मेरा इलाका, मतलब
मीनागंज विकास खंड। यूसफ मियां इसी विकास खंड के गांव इस्माइलगंज में रहते
थे। ऐसा कहा जाता है कि अठारह अप्रैल को उनकी मृत्यु छह और लोगों के साथ
बादशाह नगर में हुई।
यही बड़ी अजीब दुर्घटना थी।
प्रधानमंत्री सपरिवार, लखनऊ के तराई क्षेत्र में तीन दिन की छुट्टियां मनाने
जा रहे थे। उनके पीने का पानी बादशाह नगर हेलीपैड पर उतरा था और वहां से एक
खास किस्म की गाड़ी पर तराई जानेवाला था।
यह पानी प्रधानमंत्री और उनके परिवार के लिए ग्रीनलैंड के एक हिमखंड से आता
था। पीने के इस पानी की शुद्धता बनाए रखने के लिए इसे एक ऐसे यंत्रसज्जित
बर्तन में रखा जाता था जो कंप्यूटर से नियंत्रित होता था। दूर से देखने पर
लगता था चमकीले स्टील की नलियों से जुड़े शीशे के एक बड़े मर्तबान में
हीरेभरे हुए हों। पानी रखने के इस अद्भुत बर्तन को सुरक्षित एक जगह से दूसरी
जगह ले जाना भी एक समस्या थी।
प्रधानमंत्री को यह पानी तो एक अमरीकी संस्थान भेजता था पर हमारे देश में इस
पानी में कोई गड़बड़ी न होने पाए इसकी जिम्मेदारी रूस ने ली हुई थी। पानी को
ढोनेवाली गाड़ी वहीं से आई थी। वह इस तरह बनाई गई थी कि हमारे देश के
वायुमंडल का प्रदूषण उस पर कोई असर न डाल सके। पानी की सुरक्षा के लिए विशेष
रूप से प्रशिक्षित एक सैनिक दस्ता साथ चलता था। इसी तरह उनके दस्तरखान के लिए
पिछले दिनों पश्चिमी जर्मनी से कुछ बेशकीमती बर्तन आए थे जो फ्रांस से मंगाए
गए एक खास पाउडर से साफ किए जाते थे। इन बर्तनों और पाउडर को ढोने के लिए भी
प्रदूषण प्रतिरोधी एक शीशे की गाड़ी अलग से मंगाई गई थी। गाड़ी में चारों ओर
लगे शीशों के अंदर वे दमकते हुए बर्तन राजसी गौरव की याद दिलाते थे और
अखबारों में अक्सर उनके चित्र सहित उनकी सुंदरता के ब्योरे छपते रहते थे।
अखबारों से ही लोगों को मालूम हुआ कि विशेष हेलीकॉप्टरों द्वारा पानी और
बर्तनों की दर्शनीय गाड़ियां किस दिन किस वक्त बादशाह नगर उतरेंगी और वहां से
तराई जाएंगी। लोग इन गाड़ियों की झलक से वंचित नहीं रहना चाहते थे इसलिए सुबह
से ही वहां जमा होने लग गए थे। प्रधानमंत्री की यह खास हिदायत थी कि किसी को
इस सुअवसर से वंचित न रहने दिया जाए। लोग इन गाड़ियों में रखी नायाब चीजें
आसानी से देख पाएं इसके लिए जिला प्रशासन ने व्यापक प्रबंध कर रखे थे। खण्ड
विकास अधिकारी के तौर पर मेरी वहाँ कोई खास जरूरत नहीं थी। मेरी जरूरत तो
बहुत बाद में पड़ी।
इतने बड़े इंतजाम में आम लोगों के लिए पीने के पानी की जरूरत भूल जाना कोई
बड़ी बात नहीं थी। लोग अपना पानी अपने साथ ला सकते थे या फिर सुबह घर से ही
काफी पानी पीकर निकल सकते थे।
खुद हेलीकॉप्टर आने में ही दिन के दो बज गए और धूप बेहद असहनीय हो गई। पानी
और बर्तनों की गाड़ियां देखनेवालों की तादाद इतनी थी कि पांच बजे तक भी लोग
निबट नहीं पाए।
इसी बीच पता लगा कि कुछ लोग तपती धूप में गिरे पड़े हैं। वे सभी बेहोश थे,
कोई तीस आदमी, औरतें और बच्चे। अस्पताल पहुंचने पर मालूम हुआ उनमें से सात
पहले ही मर चुके हैं। बाकी ग्लूकोज चढ़ाने से बच गए।
अखबारों ने छापा-प्रधानमंत्री के पीने का पानी देखने आई भीड़ में से तीस ने
प्यास से दम तोड़ दिया।
प्रशासन ने तुरंत इसका खंडन किया-मरे तीस नहीं सिर्फ सात हैं और प्रशासन हर
मृतक को पांच हजार रुपया अनुग्रह राशि दे रहा है।
प्यास से सात आदमी भी मर गए यह शर्मनाक बात है, यह बात प्रशासन को बाद में
याद आई। याद तब आई जब विरोध के दबाव में उसे जांच बैठानी पड़ी।
सात मृतकों में एक यूसुफ मियाँ भी थे, मेरे विकास खंड के गांव इस्माइलगंज के
रहने वाले।
जिस वक्त मैं बुध बाजार में सिपाही खोज रहा था उस वक्त सचिवालय का एक अधिकारी
खुद मेरी तलाश कर रहा था। मैं उसे मिला तो जैसे उसकी जान में जान आई। धीरे से
बोला, "श्रीमान मुख्यमंत्री जी ने पुछवाया है कि आपके विकास खंड में तो यूसुफ
नाम कोई आदमी है ही नहीं, फिर मरनेवालों की सूची में उसका नाम कैसे आ गया?"
मैं देर तक खामोशी से उस आदमी को घूरता रहा या स्थिति पर गौर करता रहा फिर
बोला, “सूची में नाम यूसुफ वल्द हनीफ है। इस्माइलगंज में जो यूसुफ था वो
यूसुफ वल्द अख्तर था। इस मामले में प्रशासन को सावधानी बरतने की आदत होती है।
वल्दियत यूसुफ की रोती-कलपती बीवी ने लिखाई थी पर लिखी तो मैंने थी। फिर बीवी
को लिखना-पढ़ना नहीं आता। सही वल्दियत लिख लेना तो मेरा फर्ज था न।"
इस बात पर वह आदमी मुझे देर तक घूरता रहा फिर उठ गया, "हम लोगों की परेशानी
दूर हो गई।"
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