| कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
जले मकान के कैदी
      किसी जली हुई इमारत में कैदी होना एक अजीब अनुभव होता है। हम लोग ऐसी ही
      इमारत में थे। उसके मालिक को मैं जानता था-मीम नसीम।
      
      उन्नीस सौ पचहत्तर में इंदिरा गांधी ने जब इस देश में आपतकालीन व्यवस्था लागू
      की थी, उन दिनों उन्हें इस बुरी तरह जलील किया गया था कि उन्हें दुबारा कभी
      किसी ने देखा ही नहीं। एक अफवाह उड़ी कि उनहोंने आत्महत्या कर ली है। कुछ
      लोगों का कहना है कि वे जियारत को निकले थे और आज भी दरगाहों में से किसी में
      नजर आ जाते हैं। जिन्होंने उन्हें दरगाहों में भटकते देखा था, उन्होंने उनकी
      सूरत को भी काफी बदल लिया था। बेहतरीन तराशी हुई साफ चमकीली काली दाढ़ी की
      जगह उलझी हुई बेतरतीब और सन सफेद दाढ़ी-मूंछे, पतलून, कोट वेस्टकोट और उम्दा
      टाई की जगह काला चोगा इत्यादि।
      
      पर यह सब बहुत पहले की बात है। धीरे-धीरे मीम नसीम बिल्कुल भुला दिए गए।
      
      इसी इमारत में उनका चिकन के कपड़ों का काफी बड़ा कारोबार था। काम कुछ दिन
      उनकी बीवी और उनके नौकर देखते रहे, बस इतना-भर अब लोग जानते थे।
      
      नसीम विश्वविद्यालय में सहपाठी थे। अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र हमलोग साथ-साथ
      पढ़ते थे, पर मित्रता ज्यादा गहरी नहीं थी।
      
      इस जली हुई इमारत में दाखिल होते हुए मीम नसीम की याद आई थी-बहुत चुप। चेहरे
      पर न मुस्कुराहट, न गुस्सा। बहुत गोरा चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें। न जिज्ञासा, न
      उदासीनता। बहुत मुलायम आवाज, जैसे शहद में लिपटे हुए कांच के पारदर्शी नन्हे
      खिलौने हों।
      
      यह सब कोई बहुत तरतीब से याद नहीं आया था। उस वक्त हम सबके चेहरों पर एक
      जबर्दस्त तनाव था। मेरी एक बांह चोट से लगभग झूल गई थी और दूसरे हाथ की दो
      उंगलियाँ, जो जूते से दबाकर मसली गई थीं, इस तरह जल रही थीं कि दूसरे की हालत
      का सही अनुमान लगा पाना ही मुश्किल था। यहां कैद किए जाने से पहले हम लोग एक
      बरवाद किए कारखाने के गोदाम में रखे गए थे, जहां सांस लेना भी मुश्किल था।
      उससे यह जगह बेहतर थी। मीम नसीम के इस मकान को मैंने पहचान लिया। शायद कुछ
      अच्छा भी लगा कि ये लोग एक परिचित मकान में ले आए।
      
      मकान के आसपास की चहारदीवारी बहुत ऊंची थी। इसमें रहना ज्यादा तकलीफदेह न
      होता अगर हम लोगों की तादाद बहुत ज्यादा न होती। कमरों से घिरा एक काफी बड़ा
      आंगन भी था, लेकिन उसका इस्तेमाल मुश्किल था क्योंकि मौसम बारिश का था।
      
      बारिश थम जाने पर थोड़ी ही देर बाद इतनी ज्यादा उमस हो जाती थी कि हम पसीने
      से तर हो जाते थे।
      
      उन लोगों ने चूंकि खिड़कियों की जली हुई चौखटों पर मजबूत कीलों से मोटे-मोटे
      तख्ते जड़ दिए थे, इसलिए अंदर बेपनाह बदबू भरने लगी थी। छत पर पंखे थे, मगर
      जो आग लगाई गई होगी वह इतनी भीषण थी कि पंखे पिघल गए थे और डैने लटक आए थे।
      छत तक गई सीढ़ियों का दरवाजा भी तख्ने जड़कर बंद कर दिया गया था।
      
      यूं तो इन कमरों में उजाला आने की गुंजाइश बची ही नहीं थी, पर रात होते-होते
      कमरे और ज्यादा काले पड़ गए थे, क्योंकि दीवारों पर धुआं जमा हुआ था। ऐसे में
      लगता था, जैसे छत पर बदमाश गिद्ध आ बैठे हों, हममें से किसी को भी असावधान
      पाकर हमला करने को तत्पर।
      
      यहां लाकर कैद किए जाने के बाद कुछ देर हमलोग चारों ओर अटे पड़े जले सामान का
      कूड़ा धीरे-धीरे उलटते-पलटते रहे। जले कागज, कोयले और कपड़ों के ढेर के बीच
      से कोई टुकड़ा ऐसा भी निकल आता था, जो जलने से बच गया हो। उसी काले कूड़े में
      एक किताब भी मिली, काफी जली हुई। दरअसल वह किताब नहीं, जिल्द बँधी हुई
      पांडुलिपि थी। सुर्ख और काली स्याही से नागरी लिपि में लिखी वह ज्योतिष की एक
      किताब थी, जो जरूर मीम नसीम के संग्रह का अवशेष होगी।
      
      हमें ज्यादा चलना नहीं पड़ा था, पर हम सभी बुरी तरह थके हुए थे, इसलिए भी कि
      पिछली रात में हममें से शायद ही किसी को बैठने का मौका मिला हो। इस बीच खाना
      भी शायद ही किसी ने खाया हो। इनमें से ज्यादातर लोग अंधेरे में ही घरों से
      उठा लिए गए थे। चूंकि आग की वजह से वहां ऐसा कुछ भी नहीं था, जो काला न हो
      गया हो, इसलिए अंधेरा उतरते ही ऐसा लगा, जैसे रात बहुत तेजी से गहरी हो गई।
      
      इस अंधेरे में एक दहशत भी जुड़ गई थी। हमें अंदर धकेलने के बाद जब बहुत
      फुर्ती से दरवाजे पर भी बहुत मोटे-मोटे तख्ते जड़े जाने लगे तो हमने देखा, उन
      लोगों में से एक लोहे का एक दिन चहारदीवारी के पास पटक गया था। टिन में
      मिट्टी का तेल है, यह हमें जल्दी ही पता लग गया था, क्योंकि उसकी गंध तेजी से
      चारों तरफ फैल गई थी।
      
      उस टिन को हम लोग बहुत देर तक घूरते रहे थे, बल्कि जब दरवाजा उन तख्तों से
      पूरी तरह बंद हो गया तो भी हमलोग सन्नाटे में आए देर तक खड़े रहे थे।
      
      दरसअल बिना कुछ बोले हमलोगों में से हर किसी ने यह अनुमान लगा लिया था कि
      हमलोगों के बाहर निकलने का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाने के बाद वे लोग टिन का
      यह तेल चारों तरफ छिड़ककर एक बार फिर आग लगा देंगे। दरवाजे के करीब खड़े लगभग
      सभी लोगों ने यह कल्पना की होगी, क्योंकि थोड़ी देर में उस बदबू के और बढ़ते
      ही वहां एक हलचल हुई। सभी लोग पीछे हटने लगे।
      
      मैंने कल्पना की कि इस तरह आग लगा दिए जाने पर मुझे क्या करना होगा।
      
      मीम नसीम का मकान मैंने कभी अंदर से नहीं देखा था। क्या उसमें कोई चोर दरवाजा
      भी होगा? क्या छत से बच निकलने का कोई दरवाजा भी होगा?
      मैंने सोचा, अगर मिट्टी का तेल दरवाजे से अंदर नहीं आता तो अंदर थोड़ी देर
      जिंदा रहने का मौका जरूर मिलेगा।
      
      लोग आतंक के पहले धक्के में पीछे हटे जरूर, लेकिन फिर ठिठक गए थे। एक तो
      इसलिए भी कि पीछे हट सकने की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी और कुछ इसलिए भी कि अब
      तक जो कुछ हो चुका था, उसने हमारे भय को भी किसी कदर थका दिया था। बहुत
      ज्यादा लंबे महसूस होने वाले कुछ मिनटों के बाद ही हमें पता लगा कि स्थिति
      कुछ और थी। आसपास कहीं भी रोशनी नहीं थी और वे लोग कहीं से मिट्टी के तेल की
      लालटेनें ले आए थे।
      			
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