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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


पत्नी आग की तरह यह समाचार सारे मोहल्ले में फैला देती है। पति के पराक्रम की 'गाथा' को वह बढ़ा-चढ़ाकर सुनाती है, "कुत्ता तो पायदान के ऊपर पांव धरने को तैयार न था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खींचकर ऊपर चढ़ाया। डब्बे में यों ही छोड़ने पर, वह किसी भी समय नीचे कूद सकता था। इसलिए उसे टॉयलेट के भीतर डालकर बाहर से कुंडा लगा दिया था..."

जो कोई भी शाम को ऑफिस से घर लौटता उसे सबसे पहला समाचार बच्चों से यही सुनने को मिलता कि इना के पापा कुत्ते को आज रेल में चढ़ा आए हैं।

सबने चैन की सांस ली-चलो, रोज़-रोज़ के झंझट से मुक्ति मिली।

हां, आज रात नीरवता रही। इतनी नीरवता कि वह भी अखरने लगी। कहीं एक तिनका तक न हिला। सब चैन से सोए। बहुत दिनों बाद, गहरी नींद !

परंतु, प्रातः पौ फटने से पूर्व सारा मोहल्ला सहसा फिर जाग उठा। बाथरूम जाने के लिए अंधियारे में आंखें मलता हुआ वह जागा ही था कि लगा उसके पांवों के नीचे की धरती घंस गई।है। आंखें खुली की खुली रह गईं-कमरे की सारी चीजें नदारद ! टाइम पीस, ऊनी कपड़ों का बक्स, जेवर-कुछ भी न था।

देखते-देखते बहुत-से लोग एकत्र हो गए। पिछले तीन-चार महीने में यह पहली चोरी थी।

जब से कुत्ता आया था, एक भी चोरी नहीं हुई थी। वह पत्नी को सारा दोष देता है कि यदि वह 'असहयोग आंदोलन शुरू न करती तो वह कुत्ते को रेल पर छोड़ने नहीं जाता। शहरों में शोरगुल कहां नहीं होता?

पत्नी मोहल्ले वालों पर बरसती है। कहती है कि मोहल्ले वालों के तानों से परेशान होकर वह झगड़ा किया करती थी। क्या बुरा था ! बच्चे खेल लेते थे। रूखी रोटी के बचे-खुचे टुकड़े दे देते। थे। किसी की गांठ से क्या जाता था ! परंतु अब... गहनों की याद आते ही वह रुआंसी हो आती है।

रपट दर्ज कराने वह पुलिस स्टेशन गया। वहां पुलिस इंस्पेक्टर उल्टा उसी पर बरस पड़ा कि वह इतनी गहरी नींद क्यों सोया था ! कमरे में आदमी के होते हुए क्या इतना सामान उठाकर कोई ले जा सकता है ! फिर ऐसी चोरियां आए दिन होती रहती हैं इतना बड़ा शहर है, चालीस लाख आबादी का।

इस 'व्यर्थ की जिरह और कागजी कार्यवाही से वह बुरी तरह थक गया था। हारे हुए जुआरी की तरह वह दोपहर को घर लौटा तो देखा कि वही कुत्ता कीचड़ से सना हुआ न जाने कब से आंगन में बैठा है और टुकुर-टुकुर उसकी ओर देख रहा है !



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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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