कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
नौ साल का बच्चा ! ...शराब ! ...मृत्यु ! ये तीनों बातें सच होते हुए भी कहीं सच नहीं लग पातीं।
चाय पीकर प्रातः सैर के लिए निकल जाता हूं। हमारी बस्ती यानी मार्टिन लिंगे वॉई के ठीक नीचे, एक फर्लाग से भी कम दूरी पर एक लंबी-सी निर्मल झील है, जहां इन दिनों प्रवासी पक्षियों की भरमार रहती है। बत्तख़ों के आकार के ये धुमरैले रंग के निश्छल पक्षी झुंड की शक्ल में पानी पर तैरते रहते हैं। मुझे यह देखकर कम आश्चर्य नहीं होता, जब ये पानी की सतह से बाहर निकल कर दूर तक फैली हरी दूब-जैसी नरम-नरम घास में चहलकदमी करते हुए हर किसी आगंतुक के पीछे-पीछे चलने लगते हैं।
शायद दक्षिणी ध्रुव के इन निरीह प्राणियों का अभी तक इस सत्य से साक्षात्कार नहीं हो पाया है कि इस संपूर्ण सृष्टि में मनुष्य से अधिक हिंस्र कोई और जीव नहीं है, तभी तो इतनी उमंग के साथ, लपक लपककर निर्दृद्व भाव से चलने लगते हैं। अबोध शिशुओं की तरह।
उत्तरी ध्रुव प्रदेश में इन धुर दक्षिणी ध्रुव प्रदेश के प्रवासियों का प्रतिवर्ष इस तरह आना, कुछ महीने मुक्त भाव से यहां की झीलों में विचरण करना, और फिर एक दिन घर की ओर लौटते हुए लंबी यात्रा पर निकल पड़ना मुझे कम आहलादकारी नहीं लगता।
सुबह या शाम जब भी अवसर मिलता है, मैं अकेले ही निकल पड़ता हूं। यह सब देखना, इन पक्षियों के सान्निध्य में कुछ क्षण बिताना बड़ा रोमांचकारी लगता है। जैसे किसी नए संसार में आ गया हूं, जहां प्रकृति और मनुष्य के बीच की दूरी समाप्त हो गई है।
बच्चे घर में डबल रोटी आदि के बचे-खुचे टुकड़े ‘डीप फ्रिज में रख देते हैं। जब भी इधर जाता हूं, पॉलीथिन की थैली में उन्हें समेटकर ले आता हूं। मजे से घास पर बैठकर इन्हें खिलाता हूं। इन निरीह प्राणियों का सान्निध्य कितना कुछ सोचने के लिए विवश करता है !
मात्र हम ही ऐसा नहीं करते, इस क्षेत्र के प्रायः सभी लोगों का यह एक नित्य का नियम जैसा है। बच्चे किलकते हुए उनके साथ दौड़ते-भागते ही नहीं, बल्कि मनुहार से सहलाते हुए उन्हें खिलाते भी हैं। उनके लिए इधर आना किसी उत्सव से कम नहीं होता।
कल अमल बतला रहा था, नॉर्वे के उत्तरी सागर तक दक्षिणी धव प्रदेश से मछलियां भी तैरती हुई आ जाती हैं। यह दुर्गम यात्रा कितनी लोमहर्षक होती होगी। दिशाओं का इतना सही-सही ज्ञान इन निश्छल, निरीह, निरक्षर गूंगे प्राणियों को कैसे होता होगा?
यहां आकर एक तरह से अपने को अनपढ़-सा अनुभव करता हं। यहां की भाषा बिलकुल समझ में नहीं आती। अंग्रेजी का इरतेमाल भी यहां नहीं के बराबर होता है। फिर संवाद कैसे हो?
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
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- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
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- स्मृतियाँ
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