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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


एक गोरी युवती पूर्ण रूप से वस्त्र विहीन, आक्रोश की मुद्रा में खड़ी है। एक व्यक्ति उसे कपड़े से ढकने का विफल प्रयास कर रहा है। जितना अधिक वह तत्पर लग रहा है, युवती की प्रतिक्रिया भी उतनी ही तीव्र होती चली जा रही है। छूते ही वह बिजली के झटके की तरह उसे दूर झटक देती है। दो-तीन और एयर होरटेसें भी सामने खड़ी हैं, ठंडे पानी के बर्तन लिए। उस सर्दी में एक व्यक्ति महिला के सिर पर ठंडा बर्फीला पानी उड़ेल रहा है।

क्रुद्ध सिंहनी की तरह दहाड़कर वह जो कह रही है, अब वह साफ सुनाई दे रहा है। ग्रामोफोन की एक ही स्थान पर रुकी सूई की तरह, हवा में हाथ उछालती हुई, बार-बार दोहराती चली जा रही है, “दे विल डाई डॉग्स डेथ।” “दे विल डाइ डॉग्स डेथ..."

चेहरे पर भरपूर आक्रोश के साथ बार-बार दहाड़ती वह कुत्ते की मौत गरने के लिए न जाने किसे ललकार रही है ! साफ-साफ कुछ समझ में नहीं आता। पर हां, इतना निश्चित है कि वह अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है।

अपनी सीटों पर खड़े होकर कुछ तमाशबीन यात्री उचक-उचककर यह अनहोना दृश्य देख रहे हैं, किंतु कुछ ही दूरी पर शेष यात्री उस शोरगुल के बावजूद झपकियां लेने का प्रयास कर रहे हैं। जैसे इस विक्षिप्तता से उनका कोई संबंध न हो।

अपनी सीट पर लौट आने के पश्चात भी वह आवाज़ एक करुण चीत्कार के साथ उसी तरह गूंजती सुनाई देती है। अपने जीवन में ऐसी अनुभूति मुझे कभी नहीं हुई।

उस रूसी विमान में मेरी बगल में बैठा सहयात्री भी शायद रूसी है। सोवियत संघ के विघटन के बाद की त्रासदी झेल रहा है। स्वयं अंग्रेज़ी बिलकुल नहीं जानता, परंतु बातचीत से लगता है, बगल में बैठी उसकी पत्नी को इसका अच्छा अभ्यास है। शायद इसीलिए उसे लिए-लिए विएतनाम तक हो आया है। व्यापार की कोई योजना बना रहा है।

उसकी पत्नी ने भी कुछ क्षण पूर्व यह नजारा देखा है, इसलिए मेरी ओर देखती हुई कहती है, “मालूम होता है, इसने कोई मादक पदार्थ मात्रा से अधिक ले लिया है। इसलिए ऐसा अस्वाभाविक, अभद्र व्यवहार कर रही है। सार्वजनिक स्थलों पर ऐसा नहीं होना चाहिए। लोगों को अकारण कितनी असुविधा हो रही है।”

साथ में बैठा पुरुष रूसी में कुछ कहता है, जिसे समझ पाना गेरे लिए संभव नहीं, हां, उराके हाव-भाव से प्रतीत होता है, भीतर से वह बहुत उद्विग्न है...

मॉस्को पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गई है। चारों ओर सफेद बर्फ ! हवाई अड्डे में ताप की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं पहुंचते ही सब अपनी-अपनी हड़बड़ी में। अभी कुछ क्षण पहले की घटना अतीत बन चुकी है। सारे यात्री बाड़े में से निकले पशुओं की तरह एक साथ बाहर निकलने के लिए आतुर हैं।

मुझे यहां उतरकर अगली यात्रा पर निकलना है। परंतु इस सबके बावजूद पता नहीं वह क्या है, जो अब तक साथ-साथ चल रहा है-मेरे न चाहने के बावजूद...

प्रातः उठा ही था कि अदित सुबह का समाचार-पत्र लिए कमरे में आता है। सामने की कुर्सी अपनी ओर सरकाता हुआ धीरे-से बैठ जाता है। आज की ख़ास-ख़ास ख़बरों का हिंदी में अनुवाद कर सुनाने लगता है। नार्वेजियन भाषा के इस प्रमुख समाचार-पत्र के मुखपृष्ठ पर नौ वर्षीय मृत शिशु का बड़ा-सा रंगीन चित्र छपा है, जिसके नीचे लिखा है : अधिक शराब पीने के कारण कल रात इसकी मृत्यु हो गई थी। बच्चों के टूर्नामेंट्री के सिलसिले में वह एक कैंप में ट्राम्सो से ओस्लो आया था...।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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