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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


जब हम पीछे मुड़ने लगे तो सूरज फिसलता हुआ क्षितिज के समीप पहुंच चुका था।

फार्म की सीमा-रेखा के निकट, एक ऊंचे वृक्ष की शाखाओं पर, हवा में झूलती एक झोंपड़ी-सी लटकी थी-इतनी छोटी कि एक आदमी पांव फैलाकर सो भी न पाए।

"यह किसलिए?"

“रात में पहरेदारी के लिए यह मचान बना रखा है कि कहीं। कोई कैदी निकल न भागे।"

"पहरेदारी कौन करता है?"

''इन्हीं कैदियों में से..."

तभी सामने से गुजरते किसी कैदी को आवाज़ लगाई तो वह सहमता हुआ खड़ा हो गया।

"आजकल यही पहरेदारी कर रहा है।"

"सारी रात इस जंगल में अकेले बैठे डर नहीं लगता?"

वह बोला कुछ नहीं बस, यों ही देखता रहा।

''कभी घर जाने को मन करता है?"

उसने मात्र सिर हिला दिया।

"अब कितने बरस बाक़ी हैं?"

''....''

"यहां की जिंदगी बहुत कष्टकर है न?"

इस बार भी वह काठ-सा देखता रहा।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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