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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


कुछ लोग हड्डियां बटोर-बटोर कर ट्रकों में भर रहे हैं। कहते हैं इन्हें विदेश भेजेंगे, इनसे फॉरेन-एक्सचेंज मिलेगा।

बिना सिर और धड़ के, कटे आदमी, शहरों की भीड़-भरी सड़कों पर, चीखते-चिल्लाते दौड़ रहे हैं।...दूर कहीं कारख़ानों की ऊंची-ऊंची चिमनियां दिन-रात धुआं उगल रही हैं। कहते हैं-ये सब कपड़े की मिलें हैं--इनमें अब कफन बन रहा है..

मकानों के भीतर अब किराये पर मकान रहा करते हैं। सड़कों पर, पैदल सड़कें चला करती हैं। नदियों अपना जल स्वयं पीकर सूख रही हैं।

छोटे-छोटे बच्चों ने कल अपने स्कूल की इमारत, अपने ही हाथों फेंक डाली है। अध्यापकों को छेद-छेदकर क्रॉस पर लटकाकर ईसा बना दिया है...

ऋतु के कपड़े तार-तार फटे हैं। अपनी तमाम पुस्तकों के साथ-साथ वह स्कूल से नए एटलस को भी फाड़ लाई है...

उसकी बीमार मां आज सारा दिन बाहर धूप में बैठी, उसके कपड़े सिल रही है। फटे नक्शे को गोंद से चिपका रही है।

वे आंखें कम देखती हैं। मुझे लगता है—उसने सारे टुकड़े गलत चिपका दिए हैं। केरल का हिस्सा पश्चिमी बंगाल से जोड़ दिया है। कश्मीर का कच्छ से। नगालैंड की जगह, केवल पुराने अख़बार का फटा चिथड़ा लटक रहा है-और अक्साइचिन समेत समूचा लद्दाख उसने हिंद महासागर की नीली लहरों में कहीं डुबो दिया है, लंका से भी दूर।

सोचता हूं-समुद्र में डूबी धरती अब कैसे ऊपर निकलेगी ! इतनी बड़ी क्रेन कहां से आएगी, जो इस भू-भाग को पानी से निकालकर, उसे अपनी जगह बिठला सके !

हां, भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर का सारा इस्पात अगर लगा दिया जाए तो... !

किंतु विशेषज्ञों की राय कुछ दूसरी है। वे कहते हैं कि इतनी बड़ी क्रेन भी अब पर्याप्त नहीं होगी। इस देश की ज़मीन इतनी खोखली हो गई है कि कोई क्रेन, किसी भी तरह अब धरातल पर खड़ी नहीं हो सकती। इस सारे देश को सागर में डूबने से अब कोई भी नहीं बचा सकता।

बर्फीले पहाड़, रेतीले मैदान, गहरी नदियां, सागर-सब जल रहे। हैं। सारी सीमाओं पर विषैला बारूद धधक रहा है।

आग की लपटों के बीच, स्थितप्रज्ञ की-सी मुद्रा में, पहाड़ की तरह एक अस्थि-पिंजर खड़ा है-कंधे पर बंदूक उठाए–जिसकी खाल और हड्डियों के बीच मात्र सूखी नसों का जाल बिछा है।

पिछले बीस साल से वह इसी तरह अचल खड़ा है।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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