कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
पर इधर मैं अधिक काम नहीं कर पाता। जबसे इंदौर से लौटा हूं, परेशान हूं। मेरी उम्र भर की कमाई कोई निष्ठुर मेरी अनुपस्थिति में समेटकर, झाड़-पोंछकर ले गया है। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी कोई विशेष उम्मीद बंधती नहीं। लोग कहते हैं, फसल और घेर-बाड़ का संबंध, रक्त और मांस का संबंध है। एक-दूसरे का महत्व जाने बिना कोई कैसे जी सकता है !
पर आज एस.पी. मेरे पास आया था। कहता था, चोर मेरठ में पकड़ा जा चुका है। उसने अपराध मान लिया है। माल भी उससे बरामद हो चुका है।
अब तक अलग-अलग सात स्थानों पर सात चोर पकड़े जा चुके हैं। सातों ने अपना-अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। सातों के पास माल भी बरामद हो चुका है।
मैं पत्नी को इस विषय में सविस्तार बतलाऊ, इसके पहले वह गहनों की पोटली मेरे हाथों में रख देती है। मैं कुछ पूछे, इसके पूर्व कहना आरंभ कर देती है, “देखो, कलमुंहे दाढ़ीजार की करामात ! बरतन साफ करते-करते हाथ यहां तक साफ कर गया ! अभी रोता-रोता आया था। कहता था, 'मां जी, भूल हो गई है !' बीवी, जिसके लिए यह सब करम-अकरम किया था, कल कपड़ों में आग लगाकर मर गई है...!”
डाकिया आज फिर पत्रों का कोई बहुत बड़ा बंडल उठाए आ रहा है। मैं दूर से ही देखकर पहचान जाता हूं।
मेरे हाथों में अधखुला ताज़ा अख़बार पड़ा है, जिसके पहले ही पृष्ठ पर लोकेश नाम के किसी व्यक्ति का फोटो छपा है, जिसने अब तक पांच हत्याएं की हैं। पुलिस को पिछले दस साल से जिसकी तलाश है। कल जिसे फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया है-पटना हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार।
नीचे लिखा है, उत्तर प्रदेश के एक गरीब गांव में जनमे इस अपराधी को छिछली चट्टानों पर चढ़ने-उतरने की बहुत बड़ी मजबूरी थी। निद्रा की अवस्था में प्रायः प्रतिदिन, हर रात घर से निकल पड़ता था और दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़कर अपने को जान-बूझकर मुसीबत में डाल लेता था। कहते हैं, पहले कभी यह ट्रक ड्राइवर भी रह चुका है। तीन वर्ष की, स्कूल से लौटती किसी राह चलती बच्ची को जान-बूझकर बड़ी बेरहमी से कुचलने के अपराध में इसे छह साल की सज़ा भी हुई थी। एक बस-एक्सीडेंट में इसका दाहिना हाथ टूट गया था। लगभग तीन महीने तक किसी दूसरे आदमी के नाम से सफदरजंग अस्पताल में पड़ा रहा था। पिछले साल इसने गहनों की एक बहुत बड़ी चोरी की थी। इसे पत्र भेजने का भी रोग रहा। यह अपने अजीबोगरीब पत्रों के उत्तर की रोज़ प्रतीक्षा किया करता था...
मैं देख रहा हूं, लोग कह रहे हैं, यह लोकेश नाम का व्यक्ति मैं ही हूं और यह अख़बार में छपा चित्र भी और किसी का नहीं, मेरा ही है-लोगों ने जिसे कल फांसी के तख्ते पर लटका दिया है...
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- कथा से कथा-यात्रा तक
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