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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


लेखक चर्म-चक्षुओं से ही नहीं देखता, आंतरिक दृष्टि से भी समय का सत्य परखता है। पात्रों के सुख-दुख का सहभागी बनता है। उनके साथ-साथ जीता ही नहीं, अनेक तरह से मरता भी है। तब पात्रों के सुख-दुख स्वयं उसके सुख-दुख बन जाते हैं। यह परखना मुश्किल हो जाता है कि इनमें कितना अंश काल्पनिक है और कितना यथार्थ। वहां स्वतः एक ऐसे संसार की सृष्टि हो जाती है, जहां सारे विभेद समाप्त हो जाते हैं। अपने पात्र अपने ही जीवन के अभिन्न अंग बन जाते हैं। सच कहूं तो सारे संत्य सच के ही प्रतिरूप दिखलाई देते हैं।

वे बोलते हैं। बातें करते हैं। हंसते हैं, रोते हैं। कभी-कभी शिकायतें जब बहुत अधिक हो जाती हैं, तो अपनेपन के अधिकार के कारण झगड़ भी लेते हैं।

इतना भी सच आप नहीं बोल सकते थे कि मैंने मनुष्य का मांस नहीं खाया है? मैं निर्दोष हूं।”

कैसे समझाऊं उसे कि आज की इस अंधी व्यवस्था में दंड निरपराधी ही पाते हैं? वे ही जेल के सींखचों में आजीवन जकड़े रहते हैं। असली अपराधी तो सीना तानकर बाहर खुले में घूम रहे हैं।

‘सागर तट के शहर' की नायिका बहिरा शफीक को भी अंग्रेजी में अनूदित कहानी की प्रति भेजी थी, प्रतिक्रिया जानने के लिए। काहिरा से अभी चंद दिन पूर्व अबीरा का एक मार्मिक पत्र मिला।

"मम्मा के नाम भेजा आपका पत्र मिला। ध्रुव-प्रदेश के सारे चित्र मम्मा ने अपने अलबम में बहुत सहेज कर रखे थे। नार्वे-यात्रा की बहुत-सी स्मृतियां...। मुझे डॉक्टर बने अर्सा हो गया है। साहिल इंजीनियर है। आजकल अल्जीरिया में है। मम्मा का सारा जीवन संघर्षों में बीता। पर आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हमने जहां तक बन सका, उनके सारे अरमान पूरे किए।”

अंत में लिखा था-

"अफसोस के साथ बतला रही हूं कि मम्मा अब नहीं...। मरते समय तक आपको बहुत याद करती रहीं।”

जहां यथार्थ, विसंगतियों से भरे यथार्थ की सही-सही अभिव्यक्ति में विफल हो जाता है, जहां शब्द अपनी शक्ति खोते हुए से लगते हैं, असमर्थ, वहां फैंटेसी के माध्यम से भाव और भी अधिक प्रभावशाली ढंग से व्यक्त होते हैं।

विभिन्न विषयों एवं भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमियों पर आधारित ये अठारह कहानियां डायरी, संस्मरणों की शैली के अधिक निकट होने के कारण कहानियां कम और सचमुच घटित होती घटनाओं जैसी अधिक लगती हैं।

पर क्या कहानी का कहानी न होना ही कहानी का कहानी होना नहीं है?


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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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