कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
कौन-सा अधूरा काम? डॉक्टर ने पूछा नहीं। वे अबोध भाव से उनके चेहरे की ओर देखते रहे। बोले कुछ भी नहीं। केवल सिर हिलाकर, सामने बैठे मरीज़ की पर्ची पर कुछ लिखते रहे।
तीसरे दिन लैब से रिपोर्ट आनी थी, वे समय से पहले ही पहुंच गए थे। नए ‘एक्स-रे' की रिपोर्ट भी साथ थी।
"फिलहाल छह महीने तक यह दवा ले लीजिए। एक महीने बाद फिर 'एक्स-रे, ब्लड टेस्टों की रिपोर्ट के साथ आइएगा...।”
उन्हें लग रहा था, एक अंधेरी सुरंग से निकलकर वे फिर दूसरी-तीसरी सुरंगों में जा रहे हैं। अंधियारे का अंत कहीं दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा है।
“ख़तरे की बात नहीं ! घर पर रहकर भी इलाज हो सकता है। डॉक्टर के इस सुझाव के पश्चात घर पर ही एक 'अछूत बस्ती' उनके लिए बन गई।
अपनी थाली-कटोरी वे स्वयं धोते। उन्हें अलग रखते। अपने कमरे में पढ़ते-लिखते या आराम करते...।
अपने सहिष्णु स्वभाव के कारण भले ही वे महसूस नहीं कर पा रहे थे, पर समय के साथ-साथ परेशानियों का दबाव बढ़ता चला जा रहा था। सपने और भयावहः आ रहे थे। कभी-कभी वे रात में चीख़ते हुए जाग पड़ते। उन्हें लगता जैसे कोई विशालकाय दानव उन्हें दबोचने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।
वे आक्रोश में अंधे होकर उस पर टूट पड़ते।
पता नहीं उनके दुर्बल तन में इतनी शक्ति कहां से आ जाती है ! हांफते हुए वे देखते, वह सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ नीचे जा रहा है।
किसी-किसी दिन मुक्का दानव को लगने के बदले दीवार पर लगता तो हाथ लहूलुहान हो जाता। सुबह पट्टी बांधनी पड़ती। पांवों, घुटनों में नीले-नीले निशान उभर आते और वे कई दिनों तक दुखते रहते।
छाया-आकृतियां पहले की तरह अब भी दीखतीं। पर अब यह एक नया सिलसिला शुरू हो रहा था।
उस दिन तो गज़ब ही हो गया।
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