कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
"जी, कहानी साधारण है। छपने के स्तर की नहीं...।" मैं अभी कह ही रहा था कि जैनेंद्र जी कुछ ऊंचे स्वर में बोले, "अरे भई, तुम्हें कैसे पता कि यह छपने लायक नहीं है। कहानी अच्छी है, बहुत अच्छी। जाओ, दे आओ।”
'ऋषि-भवन' से दस दरियागंज।
पांच मिनट में रास्ता तय कर वहां पहुंच तो गया, पर मन को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। भले ही अब तक खाता भी खुला नहीं था, कुछ भी छपा नहीं था, फिर भी किसी के कहने पर कुछ छपे, मेरा स्वाभिमान इसे स्वीकार करने को तैयार न था।
अक्षय जी संपादक थे। कार्यालय में बड़ी चमक-दमक थी, पर कहीं मेरा दम घुट-सा रहा था। दरवाजे के बाहर खड़े चपरासी को रचना सौंप कर मैं सीढ़ियों से उतर पड़ा।
मुक्ति का जैसा अहसास हुआ।
छपना क्या था उसे ! बात आई-गई हो गई। मैं भागदौड़ में भूल भी गया उस रचना को।
लगभग दो महीने बाद, अपने रैन-बसेरे के पास सुबह-सुबह चाय पीने बैठा था। लकड़ी की हिलती हुई पुरानी मेज पर, मरी हुई चील के से डैने फैलाए एक समाचार-पत्र पंखे की हवा से फड़फड़ा रहा था।
यों ही पढ़ने के लिए उठाया तो देखा-मेरी कहानी !
एक ही सांस में पूरी पढ़ गया। एक भी शब्द कहीं बदला नहीं था।
यह मेरी पहली कहानी थी।
तब से आज तक यानी उस पहली कहानी से लेकर 'सागर तट के शहर' तक पचास वर्ष लंबा समय बिखरा है। यानी आधी शताब्दी का लेखन।
हां, लेखन का क्रम निरंतर थोड़ा-बहुत सदैव चलता रहा। कहानी-संग्रह, उपन्यास, संस्मरण-कागज़ काले करता रहा। इसे मैं अपना सौभाग्य कहूं या पाठकों की स्नेहशीलता या निव्र्याज उदारता-सदैव उदात्त भाव सबका प्यार मिलता रहा।
दिल्ली अभी आया-आया ही था। एकदम अजनबी।
उस वर्ष राजधानी में आयोजित कहानी-प्रतियोगिता में मित्रों ने मेरी कहानी 'अंततः' भी भिजवा दी। मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब मैंने देखा कि सर्वश्रेष्ठ कहानी का सम्मान उसे मिला। दूसरे वर्ष फिर आयोजन हुआ तो फिर मेरी ही रचना को प्रथम पुरस्कार मिला।
तभी ‘प्रगतिशील प्रकाशन' द्वारा 'स्वाधीनता के पश्चात हिंदी की श्रेष्ठ कहानियां' में 'अंततः' को भी शामिल किया गया। पहली कृति 'अरण्य' को तभी ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान' का 'प्रेमचंद पुरस्कार' मिला।
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर