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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मेरे कहने पर चुपचाप तुम चल पड़ी थीं। फिर तुमने कभी कोई तर्क नहीं किया। जैसा-जैसा मैं कहता गया, वैसा-वैसा तुम निश्छल भाव से करती रहीं।

पर इस बार ऐसा क्यों हो रहा है?

घर से चलने लगे तो चाबियां खो गईं !

अभी दस ही क़दम आगे बढ़े तो गाड़ी ने आगे न बढ़ने की क़सम खा ली ! पहिए जाम हो गए थे।

किसी तरह हवाई अड्डे तक पहुंचे तो पता चला, पोखरा जाने वाले वायुयान का अभी तक कहीं कोई अता-पता नहीं।

तुम्हें देखकर लगता था, जैसे इन सबकी कोई प्रतिक्रिया तुम पर नहीं है। तुम वैसी ही शांत। वैसी ही संयत। तटस्थ।

सुबह से कुछ उमस थी। परंतु अब बाहर थोड़ी-सी बूंदा-बांदी के आसार झलक रहे हैं। काठमांडू की इस विशेषता ने मुझे बहुत प्रभावित किया है, थोड़ी-सी गर्मी का अहसास हुआ नहीं कि दो-चार बदलियां, पता नहीं, कहां से घिरकर आ जाती हैं ! फिर झमझम पानी !

यह देखकर आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता कि स्थानीय उड़ानों का संचालन यहां इस तरह से होता है। हवाई अड्डा, हवाई अड्डे जैसा लगता नहीं। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई-जैसा कुछ भी नहीं। दो छोटी-सी इमारतों के बीच एक गलियारे पर, एक आयताकार लंबे तख़्ते पर लोग अपना-अपना सामान रख रहे हैं। एक आदमी उन्हें खोलकर, सामान जांचने की रस्म यों ही अदा कर रहा है। सामान भीतर की ओर धकेलकर वह एक पर्ची पर मुहर लगाकर हाथ में थमा देता है। गलियारे के दूसरी तरफ बढ़ने का इशारा करता है। एक टाट का चौखटा-सा है। आदमी की ऊंचाई जितना परदा हटाकर भीतर घुसते हैं। एक आदमी कपड़ों के बाहर-बाहर शरीर की तलाशी लेकर, भीतर कमरे की ओर बढ़ने के लिए कहता है।

बगल में भी ऐसा ही टाट का चौखटा है, जहां महिला-यात्रियों की जांच-परख हो रही है...

भीतर कमरे के प्रवेश-द्वार पर बैठा अधिकारी बोर्डिंग-कार्ड देखता है। उसके आगे वाला, हैंड बैग की तलाशी में व्यस्त हो जाता है। कुछ भी आपत्तिजनक न पाकर वह अंतिम कक्ष की ओर इशारा करता है।

लगभग मेरे ही साथ, ये औपचारिकताएं पूरी कर तुम भी आ पहुंची थीं। गहरी थकान तुम्हारे चेहरे पर साफ झलक रही थी। तुम्हें सहारा देकर, कतार में लगी प्लास्टिक की कुर्सियों में बिठाकर, पास ही मैं स्वयं भी बैठ जाता हूं।

कल पशुपतिनाथ के मंदिर में प्रवेश करते समय भी तुम्हारी स्थिति ऐसी ही थी। तुम्हारे चेहरे पर पसीने की बूंदें साफ झलक रही थीं।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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