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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


"नहीं...नहीं..." कंबल परे पटककर, बदहवास-सा वह उठ बैठा, "नहीं, ऐसा नहीं... नहीं, नहीं... !” मुट्ठी भींचकर, दांत पीसकर अंधियारे में छटपटाने-सा लगा।

बाहर हल्की-सी आहट हुई।

उसने देखा- सुबह होने को है। बाहर सारी धरती बर्फ से ढकी है। जहां तक दृष्टि जाती है-सफेदी-ही-सफ़ेदी। सांकल खोलकर काकी । शायद पानी के पास गई है। ताजी बर्फ पर पांवों के धंसने के गहरे निशान हैं...

दबे पांव वह भीतर की ओर मुड़ा, किवाड़ धीरे-से उढ़काकर। तेज़ हवा बह रही थी।

भीतर का दरवाज़ा यों ही बंद था।

थोड़ा-सा खोलकर दरार से उसने झांका-

भेड़िया मुर्दे की तरह लंबा लेटा खर्राटे भर रहा है...

उसकी टटोलती निगाहें इधर-उधर मुड़ीं। दाईं ओर दीवार के सहारे मोटे पत्थर की भारी, चपटी सिल खड़ी करके रखी थी...।

कांछा को न जाने क्या सूझा !

कहां से उसमें इतनी शक्ति आई !

उसने अपने दोनों हाथों से भारी-भरकम सिल ऊपर तक उठाई और सोए हुए भेड़िए के सिर पर धम्म-से दे मारी...

जल्दी से, हांफता हुआ फिर वह बाहर की ओर दौड़ा। अपनी बकरी की रस्सी खोली और उसे गोदी में उठाए, रास्ते में बिछी बर्फ को रौंदता हुआ, पहाड़ी की दूसरी ढलान की ओर निकल भागा-जहां लंबी-चौड़ी सड़क थी, और भी कई रास्ते, जो उसे कहीं भी ले जा सकते थे।



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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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