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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...

: १३:

'लोचनसिंह के हाथ में सारी सेना नहीं है। मैं कभी नहीं मानूंगी कि सब सरदार उसके कहने या तावे में हैं।' रानी ने उस दिन देर तक कुंजरसिंह को तटस्थ की तरह बात करते हुए सुनकर कहा।


अपनी पहले की कही हुई बातों पर डिगने या आशान्वित होने का कोई लक्षण न दिखाते हुए कुंजरसिंह बोला, 'राव अपनी ही घात में हैं और दीवान साहब अपने को महाराज से भी बढ़कर हकदार समझते हैं, लोचनसिंह शूरता में उन सब स्वार्थियों से बढ़कर है और किसी विशेष पक्ष में नहीं समझा जाता है, इसलिए लोग उसकी बात मानने का कम से कम दिखावा अवश्य करते हैं।'


'जो आदमी संसार में यह प्रकट करता है कि मैं हथेली पर जान लिए फिरता हूँ और बात-बात में सिर दे डालने का दंभ करता है, उसे शूर, बोदापन कह सकता है। उस दिन तो तुम कहते थे कि तुम्हारे कहने में आ जाएगा।'

'आपने भी तो आज्ञा की थी, आप जनार्दन को ठीक कर लेंगी।' 'वह तो होगा ही अंत में।' रानी बोली, परंतु इसमें तुम्हारे किस प्रयत्न को गौरव और पुरस्कार मिलेगा?'
कुंजर ने उत्तर दिया, 'संभव है, काकाजू स्वस्थ हो जाएँ।' 'असंभव है।' रानी ने बिना किसी छद्म के कहा, 'अब तो उनके कष्ट की घड़ियाँ बढ़-भर रही हैं।'

इतने में एक दासी ने आकर खबर दी कि रामदयाल आना चाहता है। बुला लिया गया।

एक बार कुंजर और दूसरी बार रानी की ओर बिजली की तेजी के साथ देखकर बोला, 'महाराज आज पंचनद की ओर जाने की तैयारी कर रहे हैं। निवेदन कराया है कि आप भी चलें।'

जरा अचंभे में आकर रानी ने कहा, 'जी कैसा है?' 'कुछ अच्छा है-यों ही है।' 'जनार्दन ने भी मान लिया है?' 'उन्होंने यह कहकर समर्थन किया है कि स्थान-परिवर्तन से लाभ होगा।' कुंजरसिंह ने पूछा, 'कौन-कौन जा रहा है? लोचनसिंह भी जा रहे हैं?' 'हाँ राजा।' भृत्य ने झुककर उत्तर दिया, 'सेना भी उनके साथ जाएगी, जितनी साथ के लिए आवश्यक होगी।'


रानी ने कहा, 'छोटी महारानी जाएंगी?' 'हाँ महाराज।' उत्तर मिला। 'अच्छा, जाओ।' रानी बोली, 'मैं थोड़ी देर में उत्तर भेजूंगी।'

रामदयाल जाने लगा। रानी ने रोककर कहा, 'महाराज की अनुपस्थिति में और यहाँ से अनेक लोगों के चले जाने पर सेना किसके हाथ में छोड़ी गई है?'
उसने जवाब दिया, 'शर्माजी ने प्रबंध कर दिया है।'
रामदयाल चला गया।

कुंजरसिंह बोला, 'जनार्दन ने अलीमर्दान को शांत करने के लिए आगा हैदर को कालपी भेजा है। जान पड़ता है उस दिशा से अब भय का कारण नहीं है। इसलिए जनार्दन मान गए हैं। मेरी समझ में आपको वहीं चलना चाहिए, जहाँ जनार्दन और लोचनसिंह महाराज के साथ जाएँ। छोटी रानी साथ न जाती, तब भी आपका जाना आवश्यक होता।'


बड़ी रानी ने भी साथ जाने की सहमति प्रकट की।

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