लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
समूची दुनिया में सिर्फ भारत में ही, तलाक का अनुपात निर्लज्ज ढंग से कम है। इतनी कम संख्या और कहीं, किसी देश में भी नहीं है। अन्यान्य देशों में तलाक़ होने के सोलह वैध कारण दर्ज हैं। भारत में मुख्यतः पाँच कारण हैं। चूँकि यहाँ कोई अभिन्न दीवानी कानून नहीं है, इसलिए इस देश में भिन्न-भिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के लिए भिन्न-भिन्न क़ानून हैं। जिन कारणों से हिन्दू तलाक़ होगा उन कारणों से ईसाइयों में तलाक़ नहीं हो सकता। हिन्दू में तलाक़ की वजहें हैं-1. व्यभिचार 2. पति का लापता हो जाना 3. निर्ममता 4. यौन-अक्षमता 5. अर्से से मानसिक और शारीरिक अस्वस्थता, यौन-रोग।
हालाँकि औरत-मर्द, दोनों ही व्यभिचार करने में सक्षम होते हैं लेकिन व्यभिचार सिर्फ पुरुष करता है व्यभिचार करने की तमाम सुयोग-सुविधाएँ मर्द अपने लिए रखते हैं और ज़ाहिर है कि उन लोगों ने औरत के लिए कुछ भी नहीं रखा। मर्द के व्यभिचार की शिकार होती है औरत और वही शिकार औरत बदनाम हो कर 'व्यभिचारिणी' कहलाती है। व्यभिचार या विवाहेतर यौन सम्पर्क पति ही करता है, औरत वह सब सिर झुकाकर क़बूल करती है। चूंकि वह दिमाग़ से भोथरी होती है इसलिए क़बूल कर लेती है।
तीन वर्ष एक ही घर में अगर निवास न किया हो, तो तलाक हो सकता है। लेकिन, औरतें क्या उस कारण से अपने पति को तलाक दे सकती हैं? वह तो अपने पति को खोज-खाजकर हैरान-परेशान होती हैं। उसके बाद नाले से उठाकर मंगल-शंख बजा कर, धान-दूवी चढ़ाकर वरण कर लाती हैं।
पति, अपनी पलियों को पीट-पीटकर भुर्ता बना देते हैं। उसके बाद भी औरत-बिरादरी है कि उन लोगों को देवता मानने की उनकी आदत नहीं छूटती। शारीरिक तौर पर, मानसिक तौर पर औरत लगातार अत्याचार झेल रही है। उन पत्थर-दिल मर्यों से अपने रिश्ते ख़त्म करने को, औरत...डरपोक औरतें आज भी तैयार नहीं हैं।
यौन-अक्षमता मर्दो के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। वर्षों-वर्षों से, युगों-युगों से लाखों-लाखों औरतें यौन-अक्षम पतियों के साथ ज़िन्दगी गुज़ार देती हैं, जुबान पर ताला जड़े। सेक्स और उसका आनन्द सिर्फ़ मर्दो का मामला है। औरत तो सिर्फ़ बच्चे पैदा करने और सन्तानों के लालन-पालन के लिए होती है। औरतों को यही सिखाया गया है। इस कठिन-कठोर पुरुषतन्त्र ने ऐसा कोई उपाय बाक़ी नहीं रखा कि औरत हक़ीकत को जाने-समझे-सीखे, औरत का भोथरा दिमाग तेज़ हो।
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं