लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
हाँ, मेरा बेहद मन होता है कि किसी दिन दुनिया की सभी लड़कियाँ लड़का बन जायें। लड़कियों का कहीं कोई नामोनिशान तक न हो। तब शायद पुरुषतन्त्र भी ख़त्म हो जाये। पुरुषतन्त्र तो औरतों को कुचलने-पीसने के लिए बना है। जब लड़कियाँ ही नहीं रहेंगी, तो पीसेंगे किसे? पुरुष वर्ग संघर्ष करेगा, मरेगा। लेकिन यह पुरुष वर्ग ही सज़ा की भी बात करेगा। वर्ग-संघर्ष और साम्य की माँग के साथ सड़कों पर उतरेगा। स्वाभाविक कारणों से ही पुरुष समकामी हो जायेगा। अपने-अपने भगवान से जरायु-कामना करेगा, ताकि वह जरायु किसी शुभ-क्षणों में बालिका-सन्तान धारण कर सके। पुरुष सपना देखेंगे कि बेटी का जन्म होने के बाद, दुनिया के सभी पुरुष मिल कर उसका बलात्कार कर रहे हैं। वे लोग हर पल, हर मुहूर्त तब तक उस बालिका से बलात्कार करते रहेंगे, जब तक वह ज़िन्दा है। वह बालिका जब किसी और बालिका को जन्म देगी, उसके पैदा होते ही वे लोग उसके साथ भी बलात्कार शुरू कर देंगे।
लेकिन, पुरुष का यह सपना कभी सफल नहीं होगा। खैर, पुरुष इस किस्म के सपने देखते रहेंगे, जब तक वे लोग एक-एक करके मर नहीं जाते और मानव जाति से विलुप्त नहीं हो जाते।
मानव जाति को टिकाये रखने के लिए, जीवन भर पुरुषों के अन्यान्य-अत्याचार सहन करते हुए औरतों को मर-मरकर जीना होगा। इस जाति को टिकाये रखने की जिम्मेदारी औरतें किस वजह, किस स्वार्थ से अपने ऊपर लें? इससे तो विलुप्ति ही बेहतर है। जो प्राणी सुख-चैन से जीते हैं, समानता के अधिकार और प्यार से भरे-पूरे रहते हैं। जो लोग दूसरों को नोच-खसोट कर नहीं खाते, टुकड़ों-टुकड़ों में काटकर, इन्सान को जान से नहीं मारते, दूसरों के खून की होली नहीं खेलते, वे लोग जीते रहें, इस पृथ्वी नामक ग्रह में! मनुष्य इतिहास बनता रहे, पुरुष के कलंक का इतिहास!
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं