लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
मैंने फ़तवाबाज़ों के लिए सज़ा का इन्तज़ाम करने पर जोर दिया। नीलोफ़र ने कहा, 'इन लोगों की परवाह करना बेमतलब है।' उनकी आवाज़ में गहरा आत्मविश्वास था। नीलोफ़र को यकीन था कि क्षुद्र कट्टरवादी ताकतें हार जायेंगी और इस जंग में जीत उन्हीं की होगी। जीत न पाने की कोई वजह भी नहीं थी, क्योंकि उन्होंने कोई ग़लती या गुनाह नहीं किया था। पैराशूट जम्पिंग में सफल हो कर वे रस्म के मुताबिक़ अपने प्रशिक्षक के गले लगी थीं। यह अर्से पुरानी बात नहीं है। नीलोफ़र यह सोच भी नहीं सकती थीं कि असल में कटटरवादियों को ही कबल किया जायेगा, उनकी हिमायत नहीं की जायेगी। लगातार धमकियों का सामना करते-करते पार्टी, सरकार, अवाम-किसी का समर्थन न पाकर, आख़िरकार नीलोफ़र को इस्तीफ़ा देने को लाचार होना पड़ा या पार्टी या सरकारी दबाव, उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। कट्टरवादी या नीलोफ़र? बेशक नीलोफ़र ही हारी। कोई गुनाह न करने के बावजूद, उन्हें सज़ा झेलना पड़ी। नीलोफ़र ने सोचा था कि वे देश की मन्त्री हैं, इसलिए उनके पास प्रचुर क्षमता है। लेकिन वे भूल गयीं कि वे औरत हैं। यह भी भूल गयीं कि औरत क्षमताहीन होती है। वे भूल गयीं कि पुरुषवादी पुरुषों की भीड़ में वे कुछ भी नहीं हैं, कुछ नहीं, कुछ नहीं। उनकी क्षमता बस उतनी-सी ही है, जितनी क्षमतावान पुरुषों ने उन्हें दी है। वे लोग किसी भी पल, एक चुटकी में सारी क्षमता वापस ले सकते हैं। नीलोफ़र भूल गयीं कि वे औरत हैं, भूल गयीं कि कोई भी जंग हो, उन्हें हार जाने को लाचार कर दिया जायेगा, भूल गयी थीं कि यह दुनिया, पुरुषों की दुनिया है।
औरतें यह बात बार-बार भूल जाती हैं, ख़ासकर थोड़ी-बहुत सुयोग-सुविधा जीती हुई औरतें, जाति में ज़रा ऊपर उठी हुई औरतें, मसनद पर आसीन औरतें!
औरतें भूल जाती हैं कि मर्द उन्हें किसी भी ऊँचाई से धकेलकर नीचे गिरा सकते हैं। किसी भी पल!
नीलोफ़र अब मन्त्री नहीं रहीं। राजा-वज़ीर-नज़ीर-सभापति-सेनापति-दलपतिराष्टपति-ये सभी बडे-बडे पद. मर्दो ने मर्दो के लिए ही तैयार किये थे। औरतों को ये पद हासिल करने का मौका दे कर कछेक मर्द यह समझाने की कोशिश करते हैं कि औरत-मर्द का अधिकार बराबर है। लेकिन बराबर कहीं से भी नहीं है। इसके लिए आँख-कान बहुत ज़्यादा खोलने की ज़रूरत नहीं है। बस, ज़रा-से खुले रखें, सब कुछ समझ में आ जायेगा।
कट्टरवादी फ़तवाबाज़ गिरोह कितना ताकतवर है जो नीलोफ़र को गद्दीच्युत कर सकता है, हम निश्चित रूप से अन्दाज़ा लगा सकते हैं। इधर मन्त्री हो कर भी कोई गुनाह किये बिना ही, सिर्फ आत्मविश्वास और भरपूर मनोबल के बावजूद, सिर्फ औरत होने के जुर्म में नीलोफ़र को कैसे गद्दीच्युत होना पड़ता है, यह हम सिर्फ़ देख सकते हैं। लेकिन नीलोफ़र का जुर्म, किसी पराये मर्द को स्पर्श करना या आलिंगन करना नहीं है। नीलोफ़र का जुर्म यह है कि वह औरत है। आज, अगर वह औरत न होती, तो उस पर किसी को स्पर्श या आलिंगन करने का इल्ज़ाम न आता। उन्हें सज़ा इसलिए नहीं झेलना पड़ी कि वे किसी से गले मिलीं, बल्कि इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने औरत के रूप में जन्म लिया है। अगर वे औरत के रूप में पैदा न हुई होती तो चाहे दस लाख पैराट्रपर प्रशिक्षकों को भी आलिंगन किया होता, तो भी कोई उनके नाम फ़तवा जारी नहीं करता। अगर वे औरत न होती तो उन्हें मन्त्री पद से इस्तीफा नहीं देना पड़ता।
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं