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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


4. बहुतेरे लोग, यहाँ तक कि औरतें भी मुझसे कहती हैं, 'लोग आपको नारीवादी कहते हैं। आप विरोध क्यों नहीं करती?'

मैं अवाक् हो कर जवाब देती हूँ, 'विरोध क्यों करूँ,? मैं तो खुद नारीवाद में विश्वास करती हूँ।' बहुत से लोग यह जवाब सुन कर खिन्न हो उठते हैं। मैं उन लोगों को समझाती हूँ, 'मैं मानववाद में विश्वास करती हूँ। इसलिए तो नारीवाद में भी मेरा भरोसा है। नारीवादी हुए बिना, मानववादी नहीं हुआ जा सकता। ऐसी मैं कैसे हो सकती हूँ? मानव पर निर्यातन देखते हुए चुपचाप बैठे रहने भर से मानववादी नहीं हुआ जा सकता। यह सम्भव ही नहीं है।'

"भई, औरतें या तो फेमिनिस्ट होती हैं या मैसोकिस्ट, अपने को कष्ट दे कर मैसोकिस्ट ही खुश होते हैं। औरतें इन दोनों में से कोई एक होती हैं।'-किसी एक नारीवादी ने कहा था। हम सब भी इसी बात पर विश्वास करते हैं। अगर तुम मैसोकिस्ट नहीं होना चाहती, तो तुम्हें फेमिनिस्ट बनना ही होगा। मैं पुरुष हूँ और पुरुष शासित समाज द्वारा अपने को निर्यातित होने, कुचले जाने, पिसकर मरने, जला कर मरने को राजी नहीं हूँ। इसी वजह से मैं नारीवादी हूँ।

नारीवादी वही इन्सान होता है जो औरत और मर्द, दोनों को सम्पूर्ण इन्सान समझता है और मर्द-औरत के बीच समता तथा समानाधिकार में विश्वास करता है।

नारीवाद जैसी सहज-सरल, साधारण चीज़ के बारे में अधिकांश लोगों की कोई धारणा नहीं है। औरत-मर्द की राजनैतिक, अर्थनैतिक और सामाजिक समता का पक्षधर होना ही नारीवाद है। यह समझना क्या बहुत मुश्किल है?

बहुत-से लोग नारीवाद या फेमिनिस्ट-इन दो शब्दों से बेतरह नाराज़ हैं, सिर्फ़ दक्षिणी देशों के लोग ही नहीं उत्तरी देशों के लोग भी! उन सब देशों में किसी-किसी की तरफ से यह प्रस्ताव भी आया कि इस 'फेमिनिस्ट' शब्द को बदल दिया जाये और इसकी जगह कोई ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जाये, जिसमें कोई दाग या कालिमा न हो। लेकिन, नया कोई नाम देने भर से ही क्या सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा? नहीं, हरगिज़ नहीं होगा। असल में लोग 'नारीवाद' शब्द से नहीं डरते, उन्हें डर है, नारीवाद के ऐक्शन से! एक औरत, चाहे अपने को नारीवादी कहे या न कहे, अपना अधिकार अर्जित करने के लिए वह मज़बूती से खड़ी है, यह बात निश्चय ही पुरुष वर्ग के लिए संकट का सन्देश देती है।

एक ब्रिटिश लेखिका, रेबेका वेस्ट ने कहा था-'नारीवाद क्या है, सच्चे अर्थों में मुझे इसकी जानकारी नहीं है। मुझे तो सिर्फ इतनी-सी जानकारी है कि जब भी मेरे अन्दर का 'मैं' व्यक्त होता है और जो मुझे पैर पोंछने के पायदान या वेश्या होने के अहसास से अलग करता है, तभी लोग मुझे नारीवादी बुलाते हैं।'

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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