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औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


पुरुष जंग करते हैं। युद्ध विजेता होने के बाद, पराजित फ़ौज के सामान वगैरह लूट लेते हैं। उनका जन्मस्थल, घर-द्वार, लोटा-कटोरी सब कुछ औरत! आदिकाल से पुरुषों में यही नियम प्रचलित है। पुरुष ने औरत का अस्तित्व कभी स्वीकार नहीं किया। चिरकाल से पुरुष, महिलाओं को अपनी निजी सम्पत्ति मानता आया है। पुरुष अपनी चीज़ों, अपने सामानों के साथ मनमानी करता है। वह समझता है कि उन लोगों को ऐसा करने का अधिकार है। जंग में सबसे ज़्यादा नुक़सान औरतों का ही होता है। जंग में शामिल हुए बिना, उन लोगों का खून हो जाता है, बलात्कार होता है; उन्हें उजाड़ दिया जाता है, अनाथ बना दिया जाता है। वे लोग निःसंग हो जाती हैं, सर्वहारा बन जाती हैं। जंगबाज़ पुरुषों का उतना दुर्भोग नहीं होता, जितना दुर्भोग औरतों को झेलना पड़ता है। विभिन्न जंग में पुरुष दम तोड़ देता है और जंगबाज़ पति की पत्नियाँ अपने बेटे-बेटियों के साथ दुर्भोग झेलती हैं। ऐसा कौन और कहाँ है जो उन दुर्भोगों में हिस्सा बँटाए?

मैं युद्ध विरोधी जीव हूँ। यह समूची दुनिया में परमाणु बम जैसा अमानवीय पदार्थ जैसे छा गया है। इस मारणास्त्र के निर्माण पर जितनी राशि खर्च होती है, उसमें अगर मामूली-सी भी राशि कम कर दी जाये, तो आज दुनिया भर के सभी लोगों के आहार, शिक्षा, चिकित्सा का इन्तज़ाम निश्चित किया जा सकता है। लेकिन जंगबाज़ पुरुष ऐसा नहीं करते। वैसे शान्ति-शान्ति कह कर, ज़ोर-ज़ोर से कम नारे नहीं लगाये जाते। समूची दुनिया में पुरुष चाहे जितनी भी अशान्ति मचाएँ, शान्ति पुरस्कार पुरुष को ही मिलना है भले ही शान्ति के लिए उन लोगों ने कछ भी न किया हो। आजकल तो शान्ति परस्कार भी पँजीवाद का पालत बन गया है। वैसे दरिद्रता को ठग कर. ठोंक कर बिना किसी बाधा-विघ्न के अगर दौलत का पहाड़ जमा कर लें, तो भी शान्ति पुरस्कार हस्तगत किया जा सकता है। ये पुरुष हैं, जो हथियार, मारणास्त्र, युद्ध वगैरह पसन्द करते हैं। उन्हीं लोगों को हिंसा, रक्तपात पसन्द है।

अमेरिकी प्रेसिडेण्ट ड्वाइट डेविड आइजनहावर को मैं पसन्द भले न करती होऊँ, मगर उनका यह कथ्य मैं अक्षर-अक्षर मानती हूँ-एक-एक बन्दूक-निर्माण में एक-एक युद्ध सृजन में, हर रॉकेट की उड़ान में जितने रुपयों की ज़रूरत होती है, वह उन लोगों से चुराये हुए पए होते हैं जो भूखे हैं, जिनके पास खाना नहीं है, जो लोग कड़कड़ाती ठण्ड में कँपकँपा रहे हैं, जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं हैं।

अभी उस दिन रवीन्द्र भवन के नन्दन अहाते में मैं टहल रही थी। मैंने देखा, रवीन्द्र भवन के प्रांगण में नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। कई हज़ार दर्शक जमा हुए थे। उससे कुछ ही फासले पर, मानवाधिकार संस्था द्वारा आयोजित सिंगुर में पुलिसिया अत्याचार के प्रतिवाद में आयोजित एक सभा में कुल पाँच-छह लोग बैठे हुए थे। यह देख कर मेरा मन खिन्न हो गया। नाच-गान में इतने सारे लोग और प्रतिवाद-सभा में इतने कम लोग! मानवाधिकार-सभा का यह हाल? तो क्या इन्सान के लिए इन्सान का मन नहीं रोता? इसके बावजूद मैं कहूँगी कि पश्चिम बंगाल के लोग, कम-से-कम इस सिंगुर के प्रसंग में एकजुट हुए हैं, आपस में चर्चा परिचर्चा कर रहे हैं। सभी लोग शान्ति चाहते हैं। सभी लोग न सही, अधिकांश लोग यही चाहते हैं। अति निष्ठुर लोगों के अलावा, दरिद्रों पर अत्याचार भला कौन चाहता है? मुझे यह सोचते हुए अच्छा लगता है कि पश्चिम बंगाल के लोग सहदय हैं।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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