लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
जिस देश ने किसी औरत को राष्ट्रपति बनाने में लम्बे साठ साल लिये, वह देश कोई दूसरी महिला को राष्ट्रपति बनाने में, कितने साल लेगा, इसका जवाब देश की मजाल कि 'पति' शब्द वर्जित कर दे। 'पति' पद की गद्दी पर बैठकर पतियों को बेहद आराम मिलता है। 'पति' पद दुनिया में, गृहस्थी में सबसे ऊपर है। समाजपति के तौर पर भी, पति ही, सबसे ऊपर है। सर्वोच्च है, उनका स्थान! अगर कहीं वे राष्ट्र के पति हो जायें, तब तो पूछो ही मत! सबसे ऊपर पति सत्य, उसके ऊपर कोई नहीं! लेकिन सती वर्ग भले न समझें, पति वर्ग बखूबी समझते हैं कि सती को पति बनाने के पीछे राजनीति काम कर रही है, यह औरत की यानी सती की कोई गति नहीं करेगा, बल्कि नुक़सान ही करेगा।
पुरुष के पद में लीन हो जाने में कोई वाहवाही नहीं है बल्कि अपने पद का नाम पुरुष से अलग करके, अपने अलग अस्तित्व की याद दिलाना ही सार्थक और काम जैसा काम होगा। इस समाज में औरत के अलग अस्तित्व को स्वीकार करने का रिवाज़ नहीं है। इस 'नहीं' को चुनौती देनी चाहिए। नाम में क्या कुछ आता-जाता नहीं? नाम में बहुत कुछ आता-जाता है। नाम की वजह से अपने अलग अस्तित्व से परिचित कराना, विराट घटना है। यह क्या कम है? औरत अगर औरत की तौर पर और नारी-पद पर प्रतिष्ठित होने का सम्मान अगर अर्जित न करे या सम्मान पाने के लिए अगर उसे पुरुष जैसा होना पड़े या पुरुष के पद पर आरोहण करना पड़े तो वह औरत के लिए तो सम्मानजनक तो नहीं ही होगा, बल्कि घोर अपमानजनक होगा।
बहुत-से लोगों का कहना है कि 'राष्ट्रनेत्री' शब्द नया है, लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे। यह सही नहीं है। 'गर्लहुड' शब्द का अर्थ समझाने के लिए, इतने अर्से तक बांग्ला में कोई शब्द नहीं था। इस शब्द को समझाने के लिए 'बचपन' का अर्थ समझाने के लिए 'ब्वायहुड' का सहारा लेना पड़ता था। सन् अस्सी के दशक में जैसे ही मैंने 'लड़कियाना उम्र' शब्द का इस्तेमाल शुरू किया, लोगों ने उस शब्द को उत्साह के साथ ग्रहण किया। असल में पद तैयार करने के लिए, पद को ज़रा बढ़ाना पड़ता है। नया पदक्षेप न रचा गया तो नये पद की रचना कैसे होगी? मानसिकता में बदलाव कैसे आयेगा? अगर बदलाव न आया, तो पद में भी बदलाव नहीं हो सकता।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं