लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
इस 'छेडछाड' को भारतीय उपमहादेश में 'ईव टीजिंग' कहा जाता है। सेक्सअल छेडछाड या 'यौन छेड़छाड़' जैसी भयावह कत्सित हरक़त को 'ईव टीजिंग' कह कर इसे रूमानी बनाने के पीछे की वजह क्या इसकी भयावहता को, कायदे से कम कर देना नहीं है? रूमानी जोड़े, आदम-ईव में से ईव को उठा लाये और उसके साथ 'टीज़' करने या छेड़खानी करने का, बुरा मानने की कोई वजह नहीं थी, बल्कि सुनने में ख़ासा रूमानी ही लगता था। चूंकि यह बेहद रूमानी हरक़त है इसीलिए तो भारतीय फ़िल्मों में नायिका के पीछे लगने, उसे देख कर सीटी बजाने, आँख मारने, उसे तंग करने के लिए पुरुषों को बाक़ायदा हीरो दिखाया जाता है। उसके बाद, हीरोइन के साथ आराम से उनका इश्क भी हो जाता है और जल्दी ही दोनों, हीरो-हीरोइन, हाथ-पाँव नचा-नचाकर नाचना शुरू कर देते हैं और करोड़ों भारतीय दर्शकों के दिल में मज़ा और ठंडक की वर्षा करने लगते हैं। अस्तु, इस भारत देश में सेक्स-छेड़छाड़ को आखिर गुनाह कैसे समझ लें? जो लड़के सेक्सुअल शरारतें करते हैं, वे लोग तो इसे ही 'स्वाभाविक' समझकर करते हैं। बस लोग प्रतिवाद नहीं करते, बल्कि दो-चार लोग छेड़छाड़ करने वाले मनचले लोगों की जमात में शामिल हो जाते हैं, तब तो वे लोग और निश्चिन्त हो जाते हैं कि उन लोगों की हरक़तें बुरी नहीं, बल्कि भली हैं। जुबान पर ताला जड़े बैठे रहना एक किस्म का समर्थन ही होता है, यह बात छेड़खानी करने वाले भी जानते हैं और जुबान बन्द किये ख़ामोश लोग भी जानते हैं।
जो सज्जन लोग होते हैं उन लोगों को विस्मय होता है कि कोई विरोध क्यों नहीं कर रहा है। मुझे पक्का विश्वास है कि उस बस के मुसाफिरों ने इसलिए प्रतिवाद नहीं किया क्योंकि वे दोनों छोकरे जब उस अकेली लड़की से छेड़छाड़ कर रहे थे बाकी लोग खूब मज़ा ले रहे थे। चूँकि उन लोगों को मज़ा आ रहा था इसलिए विरोध करने का मौका ही नहीं मिला। बस में मौजूद औरतें भी इसका प्रतिवाद नहीं कर पायीं क्योंकि उन लोगों को डर था कि वे लड़के उनसे भी अश्लील हरकतें शुरू कर देंगे। अगर वे लड़के उनके भी पीछे पड़ गये तो उस बस में प्रतिवाद करने वाला कोई नहीं है, यह बात समझने में भी उन लोगों को कोई असुविधा नहीं हुई।
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- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
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- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
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- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं