लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
तापसी का बलात्कारी और खूनी जिस दिन गिरफ्तार किया गया और लोगों को यह पता चला कि तापसी ने दरअसल आत्महत्या नहीं की बल्कि उसका बलात्कार किया गया था और बलात्कार के बाद उसका खून किया गया था, उस दिन इसी शहर के एक गण्यमान पुरुष ने नाक-भौं सिकोड़कर, होठ टेढ़े करके विद्रूप किया, 'छिः-छिः, तापसी जैसी औरत भी भला बलात्कार लायक चीज़ थी? मुझे तो कोई सात सौ करोड़ रुपये देता तो भी मुझसे उसका बलात्कार नहीं किया जाता। उसे देख कर भला उत्तेजित हुआ जा सकता है? छिः!'
यह मन्तव्य सुनकर मैं सोचती रही कि यह क्या सिर्फ उसी मशहूर व्यक्ति के दिल की बात है या और भी ढेरों पुरुषों के मनोभाव हैं? मेरा विश्वास है कि यह मन्तव्य बहुत-से पुरुषों के मनोभाव ज़ाहिर करता है।
कोई लड़की जब बलात्कार का शिकार होती है और बाद में उसकी हत्या कर दी जाती है-इस मार्मिक दुखद संवाद पर दुखी होने के बजाय, पुरुष मन ही मन उस लड़की के बलात्कारी की जगह अपने को बिठाकर, उस बलात्कार का मज़ा लेते हैं और मज़ा लेने के बाद, उसकी हत्या कर डालते हैं। अन्दर ही अन्दर वह मज़ा लेने के बाद ये पुरुष जो हाय-हाय के अफसोस भरे शब्द व्यक्त करते हैं, उसमें कोई बनावटीपन नहीं होता। अगर होता तो ऐसे बलात्कार होते ही नहीं।
बलात्कार की अधिकांश ख़बरें दबा दी जाती हैं। उन्हें गुप्त रखा जाता है। बलात्कार के सत्तर प्रतिशत मामले दर्ज़ ही नहीं होते। सरकारी तौर पर भारत में प्रति घंटे एक औरत बलात्कार की शिकार होती है।
मर्द बलात्कार आखिर करते ही क्यों हैं? अपनी शारीरिक ताकत के दम पर करते हैं। उन लोगों का सबसे बड़ा ज़ोर पुरुष होने का है। वैसे बलात्कार को आदिकाल से ही अपराध नहीं माना गया है। हाँ, अब यह क़ानून की नजर में अपराध है, लेकिन समाज की नजरों में नहीं। चूँकि समाज की नजरों में यह अपराध नहीं है, इसलिए बलात्कारी खुलेआम घूमें-फिरें भी तो चलता है लेकिन बलात्कार की शिकार औरत को ही मुँह छिपाना पड़ता है। बलात्कार के मामले में बलात्कारी कभी शर्मिन्दा नहीं होता, शर्मिन्दा होती है औरत। यही समाज का विधान है। इस विधान की वजह से ही बलात्कार की शिकार अधिकांश औरतें अदालत नहीं जाती, बलात्कार की शिकार औरतों से कोई भी पुरुष, यहाँ तक कि बलात्कारी पुरुष भी विवाह करने को राज़ी नहीं होता। जिनका बलात्कार किया जाता है वे औरतें ही समाज में निषिद्ध होती हैं, बलात्कारी पुरुष नहीं। लोग अत्याचार की शिकार औरत के पक्ष में खड़े नहीं होते अत्याचारी के पक्ष में होते हैं। इस समाज में अत्याचारियों के साथ सत्ता का एक अविच्छेद सम्पर्क होता है। क्षमता के प्रति आकृष्ट होने और क्षमता के वश में होने की परम्परा आज भी भयंकर रूप से जीवन्त है।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
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- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
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- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
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- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं