लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
चूँकि यह धारणा उनके दिल में इतने गहरे घर कर गयी थी कि तीर्थंकर इतनी आसानी से उसका यूँ अपमान कर पाये। यह बात भी वे बखूबी जानती थीं कि अगर कोई मर्द होता तो इस अपमान का जवाब ज़रूर देता, लेकिन औरत में अपमान का जवाब देने की औकात नहीं है। इसलिए परेशानी क्या है? इसके अलावा अपमानित पुरुष के पक्ष में इन्सान खड़ा होता है, अपमानित औरत के पक्ष में नहीं क्योंकि आम धारणा यही है कि औरत अपमानित और पद दलित होने के लिए ही पैदा हुई है। अपमान का बदला लेने की चाह जागे, तो ये 'शुभाकांक्षी' मर्द इसे अतिशयता मानते हैं। उन लोगों को प्रोत्साहन देने के बजाय, इस खयाल से भी दूर रहने की सलाह देते हैं। उन लोगों का कहना है कि आवाज़ चढ़ाना, आँखें तरेरना, तेज़ दिखाना, औरत जात को शोभा नहीं देता। वाह-वाह! पुरुषों के लिए इससे बेहतर इन्तज़ाम भला और क्या हो सकता है? यह पुरुष-प्रधान समाज पुरुषों को निश्चिन्त मन से औरत के यौन उत्पीड़न के लिए प्रोत्साहित करता है।
औरत की विलक्षणता, दक्षता, मेधा, प्रतिभा-इन सबका आज भी कोई मोल नहीं है। एक औरत माली हो कर भी जो होती है, मालिक हो कर भी वही की वही रहती है। सुपर से ले कर स्वीपर तक, यानी मालिक से ले कर मेहतर तक, औरत के जिस्म से खेलते हैं। वैसे पुरुषों में भी श्रेणी-भेद है। ऊँच जात और नीच जात।
औरत की ही कोई श्रेणी नहीं होती, कोई जात नहीं होती।
उन लोगों की एक ही जाति होती है, एक ही वर्ण होता है. औरत जात! औरत वर्ण! अगर कोई औरत अपने को ऊँच जात, उच्च वर्ग या शिक्षित या आत्मनिर्भर या प्रतिभावान कहती है तो उस औरत के लिए कोई माफी नहीं है, इस पुरुष-प्रधान समाज में सारी औरतें बराबर हैं। हर औरत 'माल' होती है। सभी औरतें ‘मखौल उड़ाने' का सामान होती हैं।
यह जो समाज है, उसमें तीर्थंकरों की कमी नहीं है। अगर तमाम औरतें इन्द्राणी होती तो यह अपमान कभी क़बूल नहीं करतीं। ये लोग कभी अपना सिर नहीं झुकातीं। काश! औरतों में इन्द्राणी जैसा आत्मविश्वास होता। काश! वे बुरे मर्दो को माफ न करतीं। काश! उन लोगों में समाज या लोगों का भय न होता तो वाक़ई यह दुनिया बदल जाती।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
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- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
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- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
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- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
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- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
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- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
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- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
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- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं