लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
अधिकांश लोग आज भी औरत के ख़िलाफ़ निग्रह-निर्यातन निरन्तर यौन-शोषण को गलत नहीं मानते, क्योंकि समाज में जैसे यह रोजमर्रा की घटना है, उसी तरह, इन सब मामलों की आदत भी पड़ चुकी है। इन्द्राणी के मामले में भी लोगों का यही खयाल है कि तीर्थंकर ने उनका बलात्कार तो नहीं किया, ऐसी कोई कोशिश भी नहीं की, फिर वे उनके लिए सज़ा की माँग क्यों कर रही हैं। इन्द्राणी उन्हें सज़ा दे कर यह समझाना चाहती हैं कि 'लड़कियाँ मज़ाक या छेड़छाड़ की चीज़' नहीं हैं। औरत को देखते ही उन पर सेक्सी फिकरे कसने को पुरुष अपना अधिकार मानते हैं, लेकिन उन लोगों को यह अधिकार हरगिज़ नहीं है। वे औरतों के साथ मनमानी हरगिज़ नहीं कर सकते।
समाज प्रबल रूप से पुरुषप्रधान है। इसके बावजूद आजकल थोड़े-बहुत सभ्य नियम-कानून बनने लगे हैं। पुरुष की ग़लत हरकतों के लिए भी सज़ा का विधान किया जा रहा है, यह आशाप्रद क़दम है। यौन उत्पीड़न के विरुद्ध भी इस भारत देश में क़ानन मौजूद है, मर्दो को इसकी जानकारी भी है, मगर अधिकांश औरतों को बिलकल नहीं है। अगर जानकारी होती भी है तो शर्म से सिर झुकाये-झुकाये, हर तरह के शोषण लांछन बर्दाश्त किये जाती हैं। कितनी औरतें हैं जो मुक़ाबले के लिए खड़ी होती हैं?
इन्द्राणी खड़ी हुई हैं! उन्होंने जो मुकदमा दायर किया है, उससे मैं सौ प्रतिशत सहमत हूँ। हर औरत को इन्द्राणी की तरह अपने व्यक्तित्व और आत्मविश्वास के साथ जीना चाहिए। औरत देखते ही मर्द टीका-टिप्पणी, अश्लील हरक़तें शुरू कर देते हैं। उन लोगों को बलात्कार की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। बलात्कार का सुख वे लोग इन्ही हरकतों में पा लेते हैं। उन लोगों के गुनाहों को, औरत सदियों से क्षमा करती आयी है, और सुन्दर नज़रिये से देखती आयी है और इसी तरह उन लोगों को बढ़ावा दे-दे कर अपने सिर पर बिठा लिया है। आजकल मर्द यह समझते हैं कि औरतों के साथ बदमाशी करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।
निर्बोध औरतें भी लाइभरे लहजे में कहती हैं, 'है तो मर्द ही न! थोड़ा-बहुत वैसा तो होगा ही। मर्द, उन लोगों में, वो क्या कहते हैं...उसकी वो...ललक तो ज़्यादा होगी ही।'
'यह 'वो' क्या है?' मैं पूछती हूँ।
'अरे, वो ही सेक्स-बेक्स...।'
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- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
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- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं