लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
समाज औरतों के लिए बुरा है, इसलिए लड़की पैदा करना ही सही नहीं है-यह युक्ति काफ़ी कुछ उसी तरह है, जैसे कोई कहे-'बहुत ज़्यादा चीख-चिल्लाहट हो रही है, ध्वनि-प्रदूषण है, इसलिए सिर-दर्द हो रहा है, अस्तु सिर ही काट फेंकना चाहिए' बहुत-से लोगों का यह भी कहना है कि अगर औरतें खुद अपनी पसन्द के लिंग का चुनाव करके बच्चे पैदा करें तो बहुत-से अनचाहे गर्भ से बच जायेंगी। लेकिन अन्त में इससे भी नहीं बचतीं बल्कि दम तोड़ देती हैं। ज़रा सोचें, औरत किस हद तक असहाय हो आती है जब अपनी ही कोख में बढ़ते हुए भ्रूण पर उसका कोई नियन्त्रण नहीं रहता। सामाजिक और पारिवारिक दबाव में उसे गर्भपात के लिए विवश होना पडता है। अनेक अनचाहे गर्भपात भी उतने भयंकर नहीं होते. जितनी भयंकर होती है औरत की निःस्व निरुपाय, मान-मर्यादाहीन हालत!
देश में अगर ऐसा ही चलता रहा, जैसे अभी चल रहा है तो ज़्यादा दशकों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जब नज़र यह आयेगा कि देश में एक भी लड़की या औरत नहीं बची सिर्फ़ पुरुष ही रह गये हैं। चलो, अच्छा ही होगा। ऐसी स्थिति में निर्यातन के लिए, शोषण के लिए, बलात्कार के लिए, हत्या करने के लिए पुरुषों के सामने कोई भी औरत नहीं बचेगी। लेकिन शायद तब भी पुरुषों में समझ नहीं जागेगी।
यह लज्जा भारत की है और किसी की नहीं है। जब तक भारत की नारियों को इस राष्ट्र में, निर्विघ्न जन्म लेने का गणतान्त्रिक अधिकार नहीं मिलता, उतने दिन इस राष्ट्र को 'गणतन्त्र' मानना भूल होगी।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं