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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


लड़कियों को पढ़ा-लिखा लेने से भी कन्या-शिशु-हत्या बन्द नहीं की जा सकती। शिक्षित औरतें अशिक्षित औरतों से कहीं ज़्यादा अपनी कोख मंग पलते हुए जीव की हत्या की योजना बनाना बखूबी सीख गयी हैं। पढ़ी-लिखी औरतें, जो आराम से जी रही हैं वे औरतें भी यह काम क्यों कर रही हैं? इसके पीछे वजह इतनी-सी है-'आत्मविश्वास की कमी। कई-कई शताब्दियों से औरतों में हीनता की चर्चा होने लगी है इसलिए अब यह बात औरतों के खून-मांस-मज्जा-नसों में पैठ गयी है। प्रचलित शिक्षा द्वारा इसे निर्मल नहीं किया जा सकता। औरत अगर राजनैतिक, सामाजिक और अर्थनैतिक क्षेत्रों में क्षमतावान न हो पाये, तो यह सब तथाकथित शिक्षा औरत के ज़ख्मों पर और अधिक नमक छिड़केगी, और कुछ नहीं करेगी।

आजकल पुरुष पढ़ी-लिखी औरत चाहते हैं। इसीलिए आज औरतें शिक्षित हो रही हैं ताकि शादी के बाज़ार में ऊंचे दामों में बिक सकें। औरत अगर शिक्षित हो तो दुकान-बाज़ार करना, बिल वगैरह चुकाना, बच्चों को पढ़ाना-लिखाना, स्कूल की समस्याएँ खुद ही निपटा सकती है। पुरुष ने तो इसी अन्दाज़ में कहा, 'मेरी बीवी के पास गणित में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री है। यह भला ही हुआ। वह मेरे बच्चों के होमवर्क में मदद कर सकती है इसीलिए घर में ट्यूटर रखने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। मेरी बीवी बाहर नौकरी करने क्यों जाये? मेरी गृहस्थी में अतिरिक्त रुपयों की तो ज़रूरत है नहीं। घर में उसके जिम्मे सैकड़ों काम होते हैं।'

यानी, अन्त में शिक्षित औरतों का यह हाल होता है। उनके उपार्जित रुपये 'अतिरिक्त रुपये' होते हैं। उनके विश्वविद्यालय की डिग्री अपने बच्चों का होमवर्क कराने के काम आती है, और कहीं काम नहीं आती। मध्यवित्त औरतें शादी के बाद नौकरी नहीं करतीं-यही रिवाज़ है। औरतों का काम है घर-गृहस्थी चलाना। सिर्फ़ वे औरतें ही घर से बाहर काम करने की अनुमति पाती हैं, जिन्हें ज़िन्दा रहने के लिए रुपयों की बेहद ज़रूरत होती है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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