लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
दो वर्ष पहले मेरी एक यूरोपियन समकामी महिला-मित्र कलकत्ता आयी थी। किसी एन जी ओ के काम से वह शहर-शहर जाने के अलावा गाँव-गंज में भी दो महीनों तक घूमती फिरी। यूरोप लौट जाने से पहले, वह मुझसे भी मिलने आयी। वह बताती रही कि उसने भारत-प्रवास के दौरान क्या-क्या किया। उसी ने बताया कि कम-से-कम बारह लड़कियों के साथ उसका सेक्स-सम्पर्क हुआ।
'अरे, यह तुम क्या कह रही हो?' मैं अचकचा गयी, 'वे लड़कियाँ राज़ी हो गयीं?'
'बेशक, राज़ी हो गयीं।' उस लड़की ने जवाब दिया।
'शादीशुदा थीं?'
'हाँ शादीशुदा थीं। उनमें कई एक कुँवारी भी थीं।'
'वे लोग ज़रा भी नहीं सकुचायीं?'
'बिलकुल भी नहीं।'
'बिस्तर पर ले जाने में भी कोई परेशानी नहीं हुई?'
'बिलकुल भी नहीं! उनके होठ चूमते-चूमते, वक्ष को हौले-हौले सहलाते हुए, दुलार करते ही, मैंने देखा, वे सब पिघल गयीं।'
'और बिस्तर पर? कुछ जानती-समझती भी थीं?'
'ज़रा गाइड करते ही परफेक्ट हो गयीं।'
'और ऑर्गेज़्म?
'अरे, बेभाव ऑगेज्म मिला! ऐसा लगा, मर्दो से भी उतना मज़ा कभी नहीं मिला।'
मेरी उस मित्र की राय में उन असमकामी या हेट्रोसेक्सुअल के विशेषण से परिचित उन लड़कियों का आचरण अतिशय स्वाभाविक था, लेकिन मैं बेहद चिन्ता में पड़ गयी। ये औरतें सालोंसाल अपनी सेक्स-वासना कचलती-पीसती रही हैं. सिर्फ एक छुअन के इन्तज़ार में। दो बूंद जल के इन्तज़ार में आग हो आयी थीं।
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- इतनी-सी बात मेरी !
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- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
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- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
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- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
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- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं