लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
औरतों की हत्या हो रही है। सबसे ज़्यादा उनका क़त्ल होता है, उनके घर में पति द्वारा! निर्यातन, निष्पेषण, जो कुछ भी औरतों की ज़िन्दगी में घटता है। दुनिया भर में हर कहीं एक जैसी घटना, घर-घर घटती है। पति के घर जैसी असुरक्षित और अनिश्चित जगह औरत की ज़िन्दगी में और कुछ भी नहीं है। यहाँ पति को देवता मानने का रिवाज़ है। अब ये देवता ही फैसला करते हैं कि औरतों की प्रतिभा का तेज़ वे चाहते हैं या नहीं अगर परुष न चाहते हों तो औरत प्रतिभा के पोखर में चाहे जितनी गहराई में डूबी हो, पति की उँगली के एक इशारे पर उसे उठकर, किनारे पर आ जाना होगा। जो गृहस्थी औरत को नोच-खसोट कर खाती रहती है, उसी गृहस्थी में अपनी ज़िन्दगी कुर्बान करने के लिए औरत जो आकुल-व्याकुल रहती है, वह क्या औरत की निजी भावना है। या बाहर की? या सिखाई-पढ़ाई हुई?
मुझे पक्का विश्वास है कि यह सिखायी-पढ़ायी तालीम है। मेरा यह अटूट विश्वास है कि औरत अगर आत्मसम्मान अर्जित कर ले तो वह ज़रूर विद्रोह करेगी। वह अपने ढंग से जी उठेगी। औरत के अपने ढंग से जीने से ही तो पुरुष और उसका तन्त्र-मन्त्र, उसका शासित समाज. सबसे ज़्यादा डरता है। क्या आज भी पुरुष के डरने, टूट-फूट जाने, हाहाकार करने का समय नहीं आया? और कब तक औरतें पुरुष जात को गोद-कांख में ले कर अमानुष बनाती रहेंगी?
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं