लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
मैंने अपने को सहज किया और हाल के दरवाजे की ओर देखा जहाँ संयोजक रिकार्ड के
संगीत पर पैर हिलाता खड़ा दूर किसी ओर देख रहा है। शायद उधर से कुछ लोग आ रहे
हों। कुछ देर बाद सचमुच दो व्यक्ति आए और नेता के बिलकुल पीछे आकर बैठ गए। वे
लोग चेहरे से बड़े प्रसन्न और सन्तुष्ट लग रहे थे। वे शायद इस बात से प्रसन्न
थे कि सभा आरम्भ होने के पूर्व आ गए हैं। वे सन्तुष्ट थे कि वे समय से हैं।
दोनों महिलाएँ बोर होने लगी थीं। उनमें एक, जो स्वेटर नहीं बुन रही थी,
बार-बार मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखती थी कि सभा कब शुरू होगी। मैं
जवाब में उसी तरह संयोजक की ओर देख लेता था। वे लोग आपस में किसी बात पर हँस
भी रही थीं। उनके इस तरह हँसने से मैं न जाने क्यों अपमानित अनुभव कर रहा था।
जब संयोजक अन्दर आया तब उससे मैंने कहा-''मुझे लगता है कि आज मीटिंग नहीं हो
सकेगी। बेहतर है, तुम किसी अगली तारीख की घोषणा कर दो!''
''यह कैसे हो सकता है, साहब, यह कैसे हो सकता है? आज के लिए हमने हाल बुक
किया है। हमारा बहुत खर्च हुआ है। हमारी संस्था की इज्जत का सवाल है, ''वह
मुझ पर नाराज होने लगा।
नेता मुस्कुराए और उन्होने मेरा हाथ दाबा-''ऐसा होता है जी, अक्सर होता है।
मीटिंगों में आजकल लोग नहीं आते। हम तो राजनीति करते हैं। हम सब जानते हैं।
चौराहे पर सभा करो तो वहाँ भी लोग नहीं आते। निराश होने से काम नहीं चलता।
पिछली बार चौक में हमने आम-सभा की तो काफी देर तक भीड़ इकट्ठी नहीं हुई। हमें
एक मदारी को बुलाकर रीछ का नाच करवाना पड़ा। जब लोग उस बहाने इकट्ठे हुए तब
सभा शुरू की। ऐसा होता है।''
सभाओं के मामले में एक नेता लेखक की अपेक्षा अधिक अनुभवी होता है। मैं चुप रह
गया। मैंने उस महिला की ओर कनखी से देखा-देखो, सभा देर से शुरू होने की जितनी
पीड़ा तुम्हें है, उतनी ही मुझे भी।
संयोजक दोनों हाथ फैलाए कह रहा था-''जनाब, अगर 25 लोग भी इकट्ठे हो जाएँ तो
सभा आरम्भ कर दूँगा। मैं नहीं रुकूँगा, मैं तुरन्त आरम्भ कर दूँगा!'' फिर वह
दाँत पीसता हुआ हाल की ओर देखने लगा।
मैंने अनुभव किया कि उसका संकल्प दृढ़ है। आँखों में विश्वास की चमक है। चाहे
मुट्ठी-भर लोग हों, वह सभा करेगा। सभा होगी, निश्चित होगी। उसके विश्वास ने
मुझे बल दिया। मैं सोफे से पीठ टिकाकर दरवाजे की ओर देखने लगा।
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