बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
"सौमित्र!" सीता के मुख से पुराना विशेषण सुनकर राम मुस्कराए, "चिकित्सा शिविर में हैं। वृद्ध सुषोग और प्रभा उसका उपचार कर रहे हैं। सौमित्र ने इस युद्ध में अनेक बार बड़े गम्भीर घाव खाए हैं। कई बार वह मृत्यु के मुख में जा-जाकर लौटा है। बहुत रक्त बहाया है उसने...।"
"रक्त तो तुमने भी बहुत-बहाया हैं प्रिय!" सीता ने राम के संपूर्ण शरीर पर दृष्टि फेरी, "देख रही हूं प्रत्येक अंग पर कोई-न-कोई घाव लगा ही है।"
"ये तो मेरी निष्ठा के प्रमाण हैं...।" राम मुस्कराए।
"मेरे प्रति?"
"तुम्हारे प्रति। तुम्हारे प्रेम के प्रति।" राम गम्भीर हो गए, "सत्य और न्याय के प्रति। अंधकार के विरुद्ध होने वालें अनवरत और शाश्वत संघर्ष के प्रति।" राम ने तनिक रुककर सीता को देखा, "घाव खाए बिना, कोई अंधकार के विरुद्ध लड़ कैसे सकेगा...। यह प्रमाण सौमित्र ने भी दिया है। हमारे एक-एक सैनिक ने दिया है। कइयों ने तो हमसे भी अधिक मूल्य चुकाया है...।" राम का कंठ भारी हो आया।
राम एक विशाल चिता के पास रुक गए, "सीते! यहां उस सैनिक टुकड़ी के योद्धा सो रहे हें, जिसका नाम उनके नायक के नाम परः 'तेजधर टुकड़ी' रखा गया है। इन वीरों ने अपने नेताओं के शवों की रक्षा के लिए अपने प्राण दिए हैं।"
सीता के हाथ जोड़कर चिता को प्रणाम किया।
राम का स्वर विषादाच्छादित संकल्प की दृढ़ता लिए हुए था, "हम अपने वीर साथियों की स्मृति को अमर बनाने के लिए अनेक स्मारक बनवाएंगे...यहां लंका में, पंचवटी में, अयोध्या में...।"
चिकित्सा-शिविर के सामने आकर राम रुक गए।
"अपने देवर उग्रदेव से मिल लो, मैं दो-एक आवश्यक काम कर लूं।" राम ने मुस्कराकर कहा, "किंतु सीते! सौमित्र अब बहुत बदल गया है। तुम्हारे हरण पश्चात् से ही उसकी चंचलता और उग्रता का स्थान गम्भीरता और दृढ़ता ने ले लिया है।"
सीता जैसे कुछ सोचने लगी, बोली कुछ नहीं।
लक्ष्मण काठ की एक चौकी पर लेटे हुए थे और प्रभा तथा सुषेण उनके घाव साफ कर उन पर औषधि लेपन कर रहे थे। चौकी नए प्रकार की थी। यह शिल्पी-सैनिकों ने विशेष रूप से इसी प्रयोजन के लिए तैयार की थी।
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