बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
स्तब्ध अनिन्द्य, राम को देखता रहा। "श्रेष्ठतम काष्ठ-खंडों की। संभव हो तो चंदन के वृक्षों की।" राम का स्वर कांप रहा था, "मुझे तेजधर और उसके सैनिकों के प्रति अपना आभार व्यक्त करना है...। "
अनिन्द्य ने राम को मुखर और जटायु की मृत्यु पर भी व्याकुल होते देखा था, पर ऐसा...उसने आगे बढ़कर राम के कंधे को अपनी हथेली से थपथपाया ...राम ने अनिन्द्य की ओर देखा। अपनी आंखों में आए अश्रु झटक दिए और खड़े होते हुए बोले, "अपने नायक के शव की रक्षा करने के लिए भी तुमने किसी यौद्धा को प्राण देते देखा है...।"
वानर स्कंधावार मेघनाद के वध के कारण प्रसन्न भी था और पुत्रशोक से पीड़ित, क्रुद्ध रावण से कल होने वाले संभावित विकट-युद्ध के कारण आशंकित भी। राक्षस सेना के ध्वंस के कारण स्थान-स्थान पर एक प्रकार की असावधान शिथिलता भी दिखाई पड़ रही थी; राक्षसों की ओर से रात्रि के समय होने वाले कूट-आक्रमण के प्रति सतर्कता भी।
लक्ष्मण, हनुमान विभीषण, सुग्रीव, अंगद, मैंद, द्विविद, भूलर, भीखन तथा अन्य योद्धा अपनी चिकित्सा पूरी करवा कर राम के पास आ गए थे। कम आहत सैनिक और सेनापति अपना उपचार करवाने के लिए चिकित्सा-शिविर में चले गए थे। जाम्बवान के सभी पिछले घाव ही इस योग्य नहीं हुए थे कि वे पुनः युद्ध कर सकें, इसलिए उन्होंने आज के युद्ध में भाग नहीं लिया था। विभीषण ध्यान से उसकी बात सुनते रहे। वे अपने स्थान से उठकर राम के पास आए और उनके कान में वही बात दुहराई।
"उन्हें बुला लीजिए" राम बोले। प्रमति के संकेत पर उन्हें बुला लिया गया। आने वाले संख्या में दस थे। वे सैनिक अथवा योद्धा वेश में नहीं थे और न ही उनकी आकृति-प्रकृति सैनिकों जैसी थी।
"कहिए।" राम उनसे संबोधित हुए।
"हम लंका के सामान्य प्रजा-जन हैं।" उनका नेता आगे बढ़ आया, "हमें राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। अतः शासन चाहे रावण का हो अथवा आपका, हम केवल शांति चाहते हैं...।"
लगा, राम का धैर्य चुक गया है, वे कुछ कहने को व्यग्र हैं; किंतु उन्होंने स्वयं को बलात् रोक लिया।
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