बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
उनकी वाणी रुद्ध हो गई। आंखें लक्ष्मण के चेहरे से हटा लीं। दो चार बार पलकें झपकाकर स्वयं को संतुलित किया। राम अनिन्द्य, भूलर, भीखन, धर्मभृत्य, आनन्दसागर तथा जल-सेनानायकों से मिले। वे भी कहीं-न-कहीं से आहत अवश्य थे। युद्ध ने सबको अपने चिह्न प्रदान किए थे। और सुषेण की ओर देखकर राम बोले, "तात सुषेण! इन वीरों
को विशल्य कीजिए। इनमे क्षतों पर औषधियों का लेप कीजिए। इन्हें पीड़ा रहित कर दीजिए। कल इन्हें अभी एक और भयंकर युद्ध लड़ना है।"
अपने भीतर उठते हुए भावों के अनेक ज्वारों को संयत करने के लिए राम इधर-उधर टहलते रहे। आज उनके भीतर असाधारण आवेश उठ रहे थे...अपने प्राणों पर खेलकर सौमित्र ने आज मेघनाद का वध किया था...। आज तीसरी बार वे मृत्यु के मुख से जीवित बचकर निकले थे...सीता, अब राम की पहुंच में थीं...हाथ बढ़ाने की देर थी...बस, एक या दो दिनों का युद्ध और-किंतु रावण का वध करना था।
"अनिन्द्य।" सहसा राम रुक गए, 'सब लोग चिकित्सा-शिविर में चले गए?"
"हां आर्य।"
"तुम नहीं गए? तुम्हें कोई घाव नहीं लगा?"
"राम।" अनिन्द्य निकट चला आया, "ऐसा कोई घाव नहीं लगा, जिसका उपचार सबसे पहले होता। अन्य लोग मुझसे बहुत अधिक घायल हैं।"
"भूलर कहां है?"
"उसके कुछ घाव गंभीर हैं। उसे भी चिकित्सा-शिविर में भेज दिया गया है।"
"अच्छा किया। अनिन्द्य, मेरे बंधु।" राम जैसे किसी और लोक से बोल रहे थे, "मेरा एक काम कर दो।"
अनिन्द्य ने आश्चर्य से राम को देखा, वे ऐसे भावुक तो कभी नहीं हुए..."एक विशाल चिता तैयार करो..." राम एक शिला पर बैठ गए।
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