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कामतानाथ संकलित कहानियां

कामतानाथ

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6427
आईएसबीएन :978-81-237-5247

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आम जनजीवन से उठाई गई ये कहानियां कथाकार के रचना-कौशल की वजह से ग्रहण के स्तर पर एक तरफ बतरस का मजा देती हैं तो दूसरी तरफ प्रभाव के स्तर पर उद्वेलित करती हैं...


'पति कहां था उसका? वह साथ नहीं रहता था?'

'ससुराल वालों से कुछ झगड़ा हो गया था। इसी लिए मायके में रहती थी। मेरे सामने एक बार उसका पति आया भी था उसे लेने। लेकिन वह गई नहीं।'
'आपने रोक लिया होगा।'
'मैं क्यों रोकता?'
'फिर क्यों नहीं गई?ट
'क्या पता? न संतुष्ट होगी अपने पति से।'
'बच्चे भी थे उसके ?'
'और कौन-कौन था घर में?'
'मां-बाप थे और एक छोटी बहन थी।'
'छोटी बहन से भी आपका कुछ रहा होगा?'
'वह बहुत छोटी थी। सात-आठ वर्ष की।'
'तब तो आपको खुली छूट रही होगी। उम्र क्या थी उसकी?'
'मुझसे कुछ बड़ी ही थी। छब्बीस-सत्ताइस रही होगी।'
'फिर तो अच्छी-खासी बड़ी थी।'
'क्यों, छब्बीस-सत्ताइस बड़ी उम्र होती है क्या?'
'और क्या?'
'तुम्हारी क्या उम्र है?'
'बीस-इक्कीस होगी।'
'तब तो तुम अभी बच्ची हो।'
'हि...अच्छा नहीं कहूंगी।'
उसका हाथ बीच में ही रुक गया। वह फिर खिलवाड़ करने लगा।
'अच्छा अब तुम बताओ। थोड़ी देर बाद उसने कहा।
'मैं क्या बताऊं? मेरा कभी किसी से कुछ रहा ही नहीं।'
'देखो, झूठ मत बोलो।'
'कसम खाती हूं मैं।'
'कसम-वसम में तो मैं पहले ही कह चुका हूं, मुझे विश्वास नहीं।'
'फिर कैसे विश्वास दिलाऊं आपको?'
'विश्वास होगा ही नहीं मुझे।'
'मानिए तो आप।'
'मानने की इसमें क्या बात है! मैं तुम्हारे ऊपर कोई दोष तो मढ़ नहीं रहा। मैंने नहीं सब बता दिया तुमको। जैसा कि मैंने कहा इसमें किसी का कोई दोष होता ही नहीं। यह तो बस संपर्क की बात होती है।'

'मैं कब कहती हूं संपर्क की बात नहीं होती। लेकिन मेरा कभी किसी से संपर्क रहा ही नहीं।'
'तुम्हारे अड़ोस-पड़ोस में कोई लड़का नहीं रहता था?'
'कई रहते थे। लेकिन मेरे यहां कोई आता-जाता नहीं था। मेरे पापा इस मामले में बड़े स्ट्रिक्ट हैं।'
'अच्छा, पढ़ीं तुम कहां?'
'दयानन्द ऐंग्लों गर्ल्स कालेज में।'
'को-एजूकेशन नहीं थी वहां?'
'न।'
'घर पर कोई पढ़ाने नहीं आता था?'
'हाई स्कूल में एक मास्टर साहब आते थे।'
'क्या उम्र थी उनकी?'
'रही होगी साठ-पैंसठ वर्ष।'
'रिश्तेदारी वगैरह में भी कभी किसी लड़के से कोई संपर्क नहीं हुआ।?'
'न।'
'सहेलियों के यहां तो आती-जाती होगी?'
'आती-जाती क्यों नहीं थी।'
'उनके भाई-वाई नहीं थे?'
'थे क्यों नहीं।'
'तुमसे बातचीत नहीं होती थी उनकी?'
'मुझसे क्यों होगी?'
'क्यों का क्या प्रश्न है? आजकल तो सब चलता है। बल्कि आजकल तो लड़कियां खुद अपने भाइयों के लिए प्रेमिकाएं जुटाती हैं ताकि उनको छूट मिल जाए।'

'मेरी सहेलियां ऐसी नहीं हैं।'
'तो कभी तुम्हारा किसी से कोई भी संपर्क नहीं रहा?'
'न।'
'बड़ी बदकिस्मत हो तुम।'
'क्यों?'
'प्यार में क्या आनंद होता है यह तो करने वाला ही जानता है। या फिर यह जिसे प्यार किया गया हो।' वह एक क्षण चुप रहा तब बोला, 'अच्छा ऐसा भी नहीं हुआ कि तुम किसी को चाहती हो लेकिन तुम्हें अवसर न मिला हो?'

'न।'
'या फिर कोई तुम्हें चाहता हो और उसे अवसर न मिला हो?'
'अब इसका मुझे क्या पता?'

'सब पता चल जाता है।'
वह चुप रही।
'बताओ न। मैंने नहीं बता दिया सब। आखिर अब कोई तलाक तो दे नहीं दूंगा तुम्हें। और फिर अगर किसी ने तुम्हें चाहा तो इसमें तुम्हारा क्या कसूर?'
वह फिर भी चुप रही।
'नहीं बताना चाहती हो तो मत बताओ।'
'वैसे तो मुझे पता नहीं', उसने कुछ देर बाद कहा, 'हां, कालेज जाती थी तो एक लड़का मुझे अक्सर दिखाई पड़ता था। दो-चार बार मेरे पीछे-पीछे आया भी कालेज तक। लौटते समय भी दिखा दो-एक बार।'
'बात नहीं की कभी तुमसे?'
'न।'
'वैसे ही बगल से निकलते हए कोई डायलाग बोला हो कभी?'
'न। बस देखता था और कभी-कभी पीछे-पीछे या फिर सड़क की दूसरी पटरी पर चलता रहता था। काफी सीधा था।'
'इसके मायने तुम्हारे दिल में जगह थी उसके लिए।'
'मेरे दिल में क्यों जगह होने लगी?'
'सीधा, शरीफ कह रही हो न तुम उसे।'
'तो क्या बदमाश कहूं? कभी ऐसी हरकत तो की नहीं उसने।'
'लड़कियों का पीछा करना शरीफ आदमियों का काम है?'
'तब तो फिर बदमाश ही कहेंगे।'
वह कुछ देर चुप रहा। तब बोला, 'कभी कोई लेटर नहीं दिया उसने?'
'न।'
'कसम खाके कह रही हो?'
'हां।'
'अच्छा मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो।'
'आप तो कह रहे थे कसम में विश्वास ही नहीं करते।'
'तुम तो करती हो?'
'मैं भी नहीं करती।'
'फिर पहले क्यों कसम खा रही थीं?'
'वह तो वैसे ही बोलचाल में आदमी के मुंह से निकल जाता है।'
'खैर, तुम मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो कि उस लड़के से तुम्हारी कभी कोई बातचीत नहीं हुई। न कोई खत-किताबत हुई।'
'किस लड़के से?' उसने अपना हाथ उसके सिर पर रखते हुए कहा।
'उसी लड़के से जिसके बारे में तुम अभी बता रही थीं।'

'आपकी कसम नहीं हुई।'
'पूरी बात कहो।'
'आपकी कसम उस लड़के से मेरी कभी कोई बातचीत, चिट्ठी-पत्री नहीं हुई। उसने शब्दों को चबाते हुए साफ-साफ कहा।
लड़का कुछ बोला नहीं। उसको अब भी विश्वास नहीं हो रहा था।
कुछ क्षण खामोशी के बीते। तब 'नाराज हो गए क्या?' लड़की ने कहा।
'नहीं तो।'
''फिर चुप क्यों हो गए?'
'तो क्या सारी रात बक-बक करता रहूं?'
लड़के का स्वर काफी बदला हुआ था। लड़की अचानक सहम-सी गई। उसकी समझ में नहीं आया वह क्या कहे।

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