विविध >> हम हिन्दुस्तानी हम हिन्दुस्तानीनाना पालखीवाला
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वर्तमान भारत की जनता तथा उससे संबंधित सभी सामयिक राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर निर्णयात्मक विचार और समाधान...
उन्होंने बंगलौर के एक भविष्यवक्ता का नाम बताते हुए उसकी कुछ
भविष्यवाणियों के विषय में बताया और कहा कि वे स्वयं इनसे चकित हैं। हम
दोनों के मध्य कुछ इस प्रकार का वार्तालाप हुआ।
उन्होंने कहा. ‘‘उस ज्योतिषी ने मई 1975 में मेरे
आश्रम से
चलने के समय मुझे बताया था कि प्रधानमंत्री इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जो
मुकदमा लड़ रही हैं, उसे हार जाएंगी, परंतु मुकदमा हारने के बावजूद वह
संसार की एक शक्तिशाली महिला बनेंगी।’’
मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा, ‘‘श्रीमती
गांधी और
शक्तिशाली कैसे हो जाएंगी जबकि वह भूंमडल के सबसे बड़े लोकतंत्र का
नेतृत्व करते हुए वैसे भी सर्वशक्तिमान हैं।’’
‘‘मुझे नहीं मालूम। मैं तो उसकी कही हुई बात दोहरा
रहा हूँ।’’
मैं इस बात से प्रभावित नहीं हुआ। मैंने ज्योतिषी का नाम तक स्मरण रखने का
यत्न नहीं किया। परंतु वार्तालाप जारी रखने के लिए मैंने फिर पूछा,
‘‘क्या उस भविष्यवक्ता ने और भी कुछ बताया था
?’’
‘‘हाँ, उसने कहा था कि वह विलक्षण सत्ता जो
वह अर्जित
करने वाली हैं, वह मार्च 1977 में समाप्त हो जाएगी।’’
‘‘क्या कोई और भविष्यवाणी भी उसने की थी
?’’
‘‘हाँ, उसने कहा था कि जयप्रकाश नारायण, जो आज भारत
के जनजीवन
में अत्यंत लोकप्रिय हैं, एक भयंकर रोग से ग्रसित हो जाएंगे तथा लगभग दो
वर्षों में उनका देहांत हो जाएगा। उसने यह भी बताया था कि श्री वाई. बी.
चव्हाण, जो भारत का प्रधानमंत्री पद संभालने के इच्छुक हैं, वे कभी भी यह
पद प्राप्त नहीं कर सकेंगे।’’
मैं चकित-सा सोचता हुआ घर वापस लौट आया कि देखें, भविष्य में क्या-क्या
होता है। इसके बाद 36 घंटों से कम समय में ही आपातकाल की घोषणा कर दी गयी।
जनता के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए तथा प्रधानमंत्री ने एकाधिपति
शासक की भांति असीमित अधिकार प्राप्त कर लिये। इस प्रकार जून 26. 1975 की
सुबह एक काले दिन का आरंभ सिद्ध हुई।
आपातकाल के पश्चात आनेवाले दिनों में मेरा ध्यान उन्हीं चार भविष्यवाणियों
की ओर लगा रहता था। मैंने ‘टाइम्स ऑफ
इंडिया’ के संपादक
तथा अन्य वरिष्ठ पत्रकारों को अपने निवास-स्थान पर एक सादे रात्रि-भोज पर
आमंत्रित किया और उनको वायुयान में गांधी आश्रम के कार्यकर्ता के साथ हुए
वार्तालाप से अवगत कराया। अगले मास मैंने यह कहानी ‘इंडियन
एक्सप्रेस’ के रमेश गोयनका के समक्ष भी दोहराई। उन्हें तो
आपातकाल
के दौरान कांग्रेस सरकार द्वारा अत्यधिक परेशान किया ही जा रहा था। वे
निराशा तथा विषाद के दिन थे तथा आशा की एक हल्की–सी किरण वही एक
भविष्यवाणी थी कि निंरकुशता मार्च 1977 में समाप्त हो जाएगी। मेरे लिए यह
कहना बेकार ही होगा कि सारी भविष्याणियां बिलकुल सत्य साबित हुई- जैसे
श्रीमती गांधी का प्रभुत्व प्राप्त करना जिसके कारण वह संसार की
सर्वशक्तिमान महिला के रूप में उभरी, मार्च 1977 में उस प्रभुत्व की
समाप्ति, अक्टूबर 1979 में जयप्रकाश नारायण की मृत्यु तथा यशवंतराव चव्हाण
की प्रधानमंत्री बनने की इच्छापूर्ति हुए बिना, नवंबर 1984 में मृत्यु।
मैंने श्रीमती गांधी से दोबारा मार्च 22, 1977 की संध्या को भेंट की जब
चुनाव के परिणामों से यह पता चला कि जनता पार्टी भारी जनमत से विजयी हो
गयी है तथा श्रीमती गांधी को प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा
है। उस दिन मैं दिल्ली में ही था। मैं श्रीमती गांधी से उनके
निवास–स्थान पर मिला। मैंने उनको जून 1975 में वायुयान में अपनी
उस
अजनबी से हुई बातचीत के विषय बताया और कहा,
‘‘इंदिराजी, अगर
मेरी बात से आपको सांत्वना मिल सकती है तो मैं कहना चाहूंगा कि आपके
विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर मुकदमे के बाद जो भी घटनाएं हुईं
वे सभी पूर्वनिर्धारित थीं।’’
इंदिराजी की आँखों में आंसू तैर रहे थे। पहली बार मैंने उनको इतना उदास
देखा था।
उपरोक्त घटनाओं के लिए किसी प्रकार का विवरण देना निरर्थक होगा। केवल उन
अनुमानों के विषय में ही चर्चा की जा सकती है जो पूर्वनिर्धारित तथा
पूर्वनिर्दिष्ट घटनाओं का आधार होते हैं।
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